पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तबी नहीं हबस बुझाई । मूंजी माँग नहीं घर भीतर का पहिनी का खाई। टिकस पिया मोरी लाज का रखल्यो ऐसे बनो न कसाई ।। तुम्हें कैंसर की दोहाई । कर जोरत हौं बिनती करत हैं छाँडो टिकस कन्हाई । आग लगौ ऐसो फाग के ऊपर भूखन जान गंवाई ।। तुम्है कुछ लाज न आई । लाला साहब के गाने के बाद ही ललाइन साहब से भी न रहा गया । कुछ जो मेम साहब की तालीम ने तुन्दी किया सो चट से कूद परदे के बाहर बेतकल्लुफ तशरीफ लाई और मटक मटक कर कहने लगीं। देत्यो ।। लागे। देत्यो ।। उबटन लगैवे । देत्यो ।। पीटों। "लिखाय नाहीं देत्यो पढ़ाय नाहीं देत्यो । सैयाँ फिरंगिन बनाय नाहीं लहंगा दुपट्टा नीक न मेमन का गौन मंगाय नाहीं देत्यो ।। वै गोरिन हम रंग सँवलिया । रंग में रंग मिलाय नाही हम ना सोहवे कोठा अटरिया । नदिया प बंगला छवाय नाहीं देत्यो ।। सरसों का हम ना साबुन से देहियाँ मलाय नाहीं देत्यो ।। डोली मियाना प कब लग डोलों । घोड़वा प काठी कसाय नाहीं देत्यो ।। कब लग बैठी काढ़े घुघटवा । मेला तमासा जाये नहीं लीक पुरानी कब लग नई रीत रसम चलाय नाहीं देत्यो ।। गोबर से ना पोतब । चूना से भितिया पोताय नाहीं देत्यो ।। खुसलिया छदम्मी ननकू हन काँ। विलायत का नाहीं देत्यो ।। धन दौलत के कारन बलमा । समुंदर में बजरा छोड़ाय नाही देत्यो ।। बहुत दीनां लग खटिया हिंदून का काहें जगाय नाहीं देत्यो ।। दरस बिना तरसत हमरा । कैसर का काहें देखाय नाहीं देत्यो ।। हिज्रपिया तोरे पय्याँ पड़त पंचा माँ एहका द्वपाय नाहीं देत्यौ ।। ललाइन साहब की आजादी देखते ही साहो जी साहब मुतहैय्यर हो घबड़ा कर यो रेके का आवा राम जमाना कैसा । कैसी मेहरारू है ई हाय जनाना १. निस्संकोच लीपव काहे पठाय तोडिन । जिय भवा कैसा ।। २. चकित भारतेन्दु समग्र ९९६