पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०४१

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साहेब । कैसा ।। लोग क्रिस्तान भए जायें बनथै कैसा अब घरम गंगा नहाना कैसा ।। हाल रोजगार गवा धूल में बेवहार मिला। का सराफी रही हुडी चलना कैसा ।। घोय के लाज सरम पी गए सब लरकन लोग । काहे के बाप मतारी रहे नाना आँखी के आगे लगे पीये सभै मिल के शराब ।। हाय आब कहाँ पंच में जाना पगड़ी जामा गवा अब कोट औ पतलून रही । जब चुस्ट है तो इलइची का है खाना कैसा ।। सब के उप्पर लगा टिक्कसकि उड़ा होस मोरा । रोवै के चहिए हँसी ठठाना जात कैसा । ठीठी कैसा ।। साहो जी की बनारसी सुनते ही लखनऊ के एक शोहदे साहब चार अंगुल की टोपी दिए एक कोने में अँकड़े हुए इँटे थे बहुत ही परीशान हुए क्योंकि उनके समझ में यह कुछ भी न आया तो चिटख कर बोले "बनिए क्या जो है सो नाहक की बक बक लगाई है एक कनगुज्झा' इंघे और एक नागइभिन्नी ऊंधे और चपतगाह' प एक गुदकी जमाऊँगा जो है सो कि बताना निकल पड़ेगा" और कहने लगे । क्यों बे सुनता नहीं सोहदे की तकरीर को आँ। कहीं नकभिन्नी की आऊ न तेरे पीर को आँ ।। लोगों ने बढ़ावा दिया कि हाँ साहब यह भी तो बड़े शायर हैं कुछ फर्माएं । इतना इशारा पाना था कि लगे शोहदे जी गाने । सान सौकत तेरे आसिक की मेरी जान जे है। होंगे सुलफाई इसी दरवाजे प अरमान जे है ।। कहीं सुहदे भी पिचकते हैं भला झाँपो के। आ तो डंट जा अभी सम ठोंक के मैदान जे है। गैर के कहने पै हजरत को न मुतलक हो खेयाल । एक को बहकाता है सैतान जे है।। लोगों से मांगें टिकस मोटे मल । रख दूं धुन के उन्हें बनियों प फकत सान जे है।। आज आलम के नमूदारों में। लुत्फ अल्लाह का सर पर तेरे खाकान शुहदे की बातचीत सुन कर हमारे बनारस के भैवा लोगों से कब रहा जाता है यह भी अपनी चरी बूकने बज्चो एक आके हम न मामूर है ही लगे। चाई चकार चोर और नटखट तोरे बदे। होय गैल सारे रामधै चौपट तोरे बदे।। घर से नगर से बात कुटुम' संगी माई से । कैसे भयल बिगार न खटपट तोरे बदे।। १. चपेटा, थप्पड़, २. इस ओर ३. नाक भन्ना देनेवाला थप्पड़ ४. उस ओर ५. चपत मारने का स्थान ६. जला देना ७. एक गाली ८. प्रकट लोगों ९. राजा । मुशायरा ९९७