पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०४३

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रमधे । म में। पांचों पकवान नहीं नीक लागत तिल के चेहरा क तोरे 'तेग' भुखायल बाड़ें ।। बनारस के गुंडों की बोली सुनते ही बैसवारे के तिलंगा भाई को भी फुरफुरी आई और ढोलक बजाकर गाने ही लगे कि - फुरै कहत हौं महिते जो जइहौं रिसाय के । भरूका म बिख भरा है मैं मर जैही खाय के ।। सारन आज सार भंवरी बताय लैहौं करेजा दूध बकेना पियाय के ।। खरिहान माँ जो रात के रइहो तुम आय के । दैहों उकांव गोहुँ क तुम कै उठाय के ।। सूरज के कुछ न लीन न तुम हन गुनहगार । काहे क हम के मारथी घामे डहाय के। बौरान फिर्त हौं बारी बगैचा टोला म हमरें आएव न एक दिन भुलाय के ।। धरहू प आय तेग क दरसन नहीं हो द्यात । औरन ते तो मिलत हो रजा धाय धाय के। इन सब को रे रे के पीछे एक नये ढंग के शायर कबरिस्तान के फकीर मरघट के बाम्हन एक नई अनोखी चाल की शायरी ले उठे। यह ढंगही सबसे निराला । रेखती फेखती सबसे अलग मरसिये का भी चचा। माशूक ही को कोसना । फिर उन्हें हैजा हुआ फिर सब बदन नीला हुआ। फिर न आने का मेरे घर में नया हीला हुआ ।। कहरे हक नाजिल हुआ पत्थर पड़े वह मर गए । अब्र का टुकड़ा उनहें तबरम अबाबीला हुआ ।। फिर उन्हें आया पसाना सब बदन ठंढा हुआ । मुफलिसी में फिलमसल आँटा अजी गीला हुआ ।। नाम सुनते ही टिकस का आह करके मर गए । जानली कानून ने बस मौत का हीला हुआ ।। आप शेखी पर चढ़े थे मसले अफगानाने बद । खूब शुद गदकों के मारे सब बदन ढीला हुआ ।। कैसरे हिन्दोस्तां अब जान इनकी वखश दो। देख लो रंजिश से सब इनका बदन पीला हुआ ।। अफसोस कि अ. फालेन' इस मौके पर नहीं थे नहीं तो कई नए मोहावरे उनके हाथ लगते । १. खुदा का कोप २. उतरा ३. एस. डब्ल्यू. फैलों FOK मुशायरा ९९९