पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०५

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मने ।२२ समर्पन । 10* आशाय आशाय भालो जातना दिने । मने पडे जेन सदा से नील रतन । त्राओ तथा गुन-मनि जथा निर्माश पोहाईले । मृगमः सिरे कज्जल नयन तीरे. से र्धान तोमार नि तुमि तार प्रमे र्रािण, नित्य नील वर्ण चीरे आच्छादित तन । बांधा आछ गुनमनी तवे हेथा केन आसिले।२१ 'हरिश्चंद्र' मुख सदा कृष्ण नामे आछे साधा तोमाय भुलिब केमने । से पेमे अंतर बाधा कृष्ण पदे आछे मन ।२९ अंकित छबि अति यतने 1 जाओ ओहे गुनिमनि ऐ कि काज करिले । दिवा निशि मुख देखि हृदय आदरे राखि आमार प्रानेर छबि काड़िते बसिले । प्रान सदा एई वासना ममाधिक प्रान-प्रिय के आछे तोमार प्रिय । एक बार भाव ओरे मन । आमार भाल बासा छबि कारे दिते निए छिले । शेषेर से दिन तव निकट 'चांद्रिका' बले बल ना केन करहे छलना । दिन दिन हीन बल मन हाछे दुर्वन रक्षित छबि ते मम तुमि केन हाथ दिले ।३० रोगेर अति प्रबल भये भीत हएछ जीवन ।२३ राखो हे प्रानेश ए प्रेम करिया जतन । एतेक जीवने केन मरन बासना । तोमाय करेछि बुझि कपालेर दोषे बिधिर विडम्बना । जत दिन रबे प्रान श्रीचरने दिओ स्थान, केन रे अबोध मन कर कामना एमन. हरिश्चंद्र प्रान-धन एई अकिंचन । से दु:ख तव कारन बुझि ताहा जान ना ।२४ 'चंद्रिका' हृदय-धन नाहिक तोमा बिहन, एखनि एमन हवे स्वपने छिल ना जान । नब करे ते आपने करेछि जीवन मन ।३१ ना होते मिलने सुखि आगे ते जाइबे प्रान । थाकिते जीवन मन नाथ ए कि करिले । जन्म जन्मातरे जेन पाई प्राननाथ हेन । आमार आशार प्रेम कारे तुमि दान दिले । बिधिर काछे एई मोर शेष अकिंचन ।२५ 'चद्रिका' ह्रदय-मन तब करे समर्पन । किछ सुख होलो जीवने तार हृदि हरिधन कारे प्राण दिते निले ।३२ भुलाएछे सेई नवीने । प्राननाथ आमाय भालो बेशे आर तोमार काज नाई। आमार अभाव काले बिरह बेदना ज्वाले. तुम अन्य प्रान ज्वले आमाय भालो बास बोले । आघात हवे ना तार कोमल हृदय- सदा भासि ऑखि जले हृदे नाना दु:ख पाई। स्थाने भेवे सुखमने ।२६ विदाय दाओ गुनमनी सजब एबे सन्यासिनी । वासना. हब नाथ विदेशिनी सुख पथे दिया छाई । हरिश्चंद्र प्रान-धन 'चंद्रिकार' निवेदन. बासना एमन मन विदेशे ते प्रान जाई ।३३ ऐ प्रेम राखिते केन करिछ जतनो रे । सेई प्रेम राखा गिया जथा बाँधा मनोरे । सेई विनोदिनी धनि तुमि तार प्रमे रिणी, बाँधा आछो गुनमनि ताहारई प्रम-डोरे । सेई जे आमाय तोमाय छिल कथा मने आछे कि ना बल । छाड़ो एई प्रेम आशा जाना गेल भालो बासा, सेई जे छिल जत भाल बासा मने आगे कि ना आछे बल। हृदय सब नैराशा 'चंद्रिकार' एखनो रे ।३४ कत कत छिल मने आशा कत छिल हृदे भालो बासा । शेषे होली आशा नैराशा मने आछे कि या आछे बल । मिछा केन दिते आश प्रमेरे परिचय । हृदये दिए छ कतेक त्र्यधा मने आछे कि ना आछे बल । सतिनेर छबि ऑकि आपन हृदय । तुमि हे कि कछु किछुई जान ना मम मने आछे सब बेदना। प्रेम कथा बलि प्रान कोरो ना आर जालातन, आमि हृदये पेवेछि ब्यथा नाना मने आछे कि ना आछे बल। राख गिया प्रानधन ताहार जा आज्ञा हय । दिए छिल-तक 'चंद्रिका' बाजा ओहे चंद्र तव प्रमे बाधा। हरिश्चंद्र प्रान-पति तुमिरे निर्दय अति, आछे मन प्रान सब साधा मने आछे कि ना आछे बल।२८ 'चांद्रकार' नाहे गति जानिनु निश्चय ।३५ हेरिब सतत सखी कालई बरन । आज आमार होलो सुप्रभात । 1 नव प्रमे प्रेमी होते बल बल ओरे प्रान मोरे बल ना । एई प्रमे प्रेमी होले मम चिंता जाबे चले. ईहा तेई जाबे मोर हृदि-बेदना । तोमाय पाब जन्मान्तरे एई आशा हृदे कोरे । प्रान जावे आर जावे हृदि जानना ।२७ प्रम तरंग ६५