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(बलिया में व्याख्यान)

 

भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो
सकती है?

बलिया वाला भाषण


यह नवम्बर सन् १८८४ में बलिया के ददरी मेले में आर्य देशोपकारिणी सभा में दिया गया भाषण है। बाद में नवोदिता हरिश्चन्द्र चन्द्रिका जि. ११ नं. ३,‌ ३ दिसम्बर सन् १८८४ में छपा।

–– सं.

इस साल बलिया में ददरी का मेला बड़ी धूम-धाम से हुआ। श्री मुंशी बिहारीलाल, मुंशी गणपति राय, मुंशी चतुर्भुज सहाय सरीखे उद्योगी और उत्साही अफसरों के प्रबंध से इस वर्ष मेले में कई नई बातें ऐसी हुईं, जिनसे मेले की बड़ी शोभा हो गई। एक तो पहलवानों का दंगल हुआ, जिसमें देश देश के पहलवान आए थे और कुश्ती का करतब दिखलाकर पारितोषिक पाया। दूसरे मेले के थोड़े दिन पूर्व ही से एक नाट्य समाज नियत हुआ था, जिसने मेले में कई उत्तम नाटकों का अभिनय किया। श्री भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र जी नाट्य समाज के प्रबंध-कर्ताओं के आग्रह और अनुराग से यहाँ विराजमान थे। उक्त बाबू साहब कृत प्रसिद्ध नाटक "सत्यहरिश्चंद्र" और "नीलदेवी" बड़ी सुथराई से खेले गए। संपूर्ण दर्शक-मंडली मोहित हो गई और इन नाटकों के कवि बाबू हरिश्चन्द्र जी की, जो संयोग से नाट्यशाला में उस समय विद्यमान थे बार बार सराहना करने लगी। बाबू साहब का नाम सुनकर इस जिले के मैजिस्ट्रेट आदिक अनेक साहिबान और मेम लोग भी थियेटर में उपस्थित थे और "सत्य हरिश्चन्द्र" "नीलदेवी" का अभिनय देखकर बड़ी प्रसन्नता प्रगट की। वरंच रॉबर्ट्स साहब मैजिस्ट्रेट ने कहा कि इनके नाटक कवि शिरोमणि शेक्सपियर से भी उत्तम हैं। बलिया की सज्जन-मंडली ने बाबू हरिश्चन्द्र जी का योग्य आदर संमान किया। श्री बाबू जी साहेब के स्वागत संमानार्थ यहाँ "बलिया इंस्टिट्यूट" की एक सभा की गई जिसमें इस नगर के सब प्रतिष्ठित अफसर और रईस एकत्र थे। इस जिले के मान्यवर, सर्व प्रिय कलेक्टर मि. डी. टी., रॉबर्ट्स साहेब बहादुर सभाध्यक्ष के उच्चासन में इस अवसर पर सुशोभित थे। श्री मुंशी बिहारीलाल जी सेक्रेटरी बलिया इंस्टिट्यूट ने संक्षिप्त आदर सूचक वाक्य द्वारा बाबू साहेब का सभा से परिचय कराया। यद्यपि इसकी कुछ ऐसी आवश्यकता न थी क्योंकि कौन ऐसा देश और नगर है जहाँ भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र जी का नाम नहीं प्रसिद्ध है? यहाँ एक पृथक् सभा "आर्यदेशोपकारिणी सभा" के नाम से स्थापित है। उसके सेक्रेटरी पं. इंदिरादत्त उपाध्याय जी बी. ए. ने एक छोटा ऐड्रेस बाबू साहेब की प्रशंसा में किया। तदुपरांत बाबू हरिश्चन्द्र जी ने एक बड़ा ललित, गंभीर और समयोपयोगी व्याख्यान इस विषय पर दिया कि "भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?" सभासदगण बाबू साहेब का लेकचर सुनकर गद्‌गद्‌ हो गये। व्याख्यान समाप्त होने पर श्रीमान् सभापति साहेब ने बाबू साहेब को धन्यवाद दिया और गुणानुवाद किया और सभा विसर्जित हुई। लेकचर तथा ऐड्रेस पाठकों के अवलोकनार्थ नीचे प्रकाशित होता है।

रविदत्त शुक्ला

भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है १००९