पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०६४

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खुशी यह सहज और शुद्ध उर्दू भाषा में लेकिन नागरी लिपि मे लिखा लेख है। बाद में 'खुशी' खंग विलास प्रेस बांकीपुर पटना से भी छपी। सं. हस्वदिल ख्वाह आसूदगी को खुशी कहते हैं याने जो हमारे दिल की ख्वाहिश हो वह कोशिश करने से या इत्तिफाकिय : बऔर कोशिश किये बर आवे तो हम को खुशी हासिल होती है । खुशी जिंदगी के फल को कहते हैं, अगर खुशी नहीं है तो जिन्दगी हराम है क्यों कि जहाँ तक ख्याल किया जाता है मालूम होता है कि इस दुनिया में भी तमाम जिंदगी का नतीजा खुशी है । इसी खुशी के हम तीन दर्जे कायम कर सकते हैं याने आराम, खुशी और लुत्फ - आराम वह हालत है हिस्सा तकलीफ के मेकदार से ज्याद: हो जाय । और लात्फ वह हालत है जिसमें तकलीफ का नाम भी न बाकी रहे । खुशी तीन किस्मों में बँटी है याने दीनी खुशी, दुनियाबी खुशी और गलत खुशी । दीनी खुशी अपने अपने मजहब के उकदे के मुताबिक कुछ कुछ अलग है मगर नतीजा सबका एक ही है याने इतात दुनियवी से छुट कर हमेश : के वास्ते परमेश्वर की कुर्वत मयत्सार होनी हो असली खुशी है।हम लोगों में परमेश्वर का नाम सत् चित आनंद है और हम लोगों के नेक अकीदे के मुताबिक परमेश्वर का नाम रूप सब बिल्कुल लतीफ है इसी से उस की याद में लुत्फ हासिल होता है । उपनिषद् में एक जगह सब की खुशी को मुकाबिला किया है । वह लिखते हैं कि खुशी जिन्दगी का एक जुजे आजम है और दुनिया में जितने मखलूकात हैं सब खुशी ही के वास्ते मखलूक हैं । इसी सब खिलकत में जानदारों की बनावट और लियाकत के मुताबिक खुशी बंटी हुई हे कीड़ा सिर्फ इस बात में खुश होता है एक पत्ते पर से दूसरे पत्ते पर जाय, चिड़ियों की खुशी का दर्जा इस से कुछ बढ़ा है याने इधर उधर परबाज करना बोलना वगैर : । इसी तरह अखीर में आदमी की खुशी बनिस्बत और जानवरों के बहुत बढ़ी चढ़ी है । आदमियों में भी बनिस्बत बेवकूफों के समझदारों की खुशी का दर्ज : ऊंचा हैं । आदमियों की खुशी से देवताओं की खुशी बहुत ज्याद : है । इस लंबी चौड़ो तकरीर का खुलासा उन्होंने यह निकाला है कि सबसे ज्याद : और लतीफ परमेश्वर है । उस में कितना लुत्फ और खुशी है जो हम लोग नहीं जान सकते । इसी से अगर हम लोगों को खुशी और लुत्फ की तलाश है तो हम लोगों को उसी का भजन करना चाहिए। इस के पहिले दुनियवी खुशी का बयान किया जाय उस खुशी का बयान आप लोग सुन लीजिए जो अब हम हिंदुओं को खास कर साकिनाने बनारस के मयत्सर हैं। सबसे बड़ी खुशी बेफिकरी है । अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न दास मलूका यों कहें, कि सबके दाता राम" ।। ऐसे ही खूब भाँग पीना, झन्नाटे इक्के पर सवार होकर बहरी ओर जाना, कभी-२ कुछ गाना सुन लेना, बरसात के दिनों में अगर फोलनी दाना मयस्सर हो तो क्या बात है । अगर इस खुशी का दर्जा बहुत बढ़ गया काम । भारतेन्दु समग्र १०२०