पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०६५

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तो एक आध सैल हो गई कुछ खाना कुछ पीना कुछ नाच कुछ तमाशा हो गया और अगर यही खुशी 'सिविलाइज्ड' की गई तो उसकी छोटी छोटी कुमेटियों या बर्फ की दावत से बदल दिया । इस से मेरा यह मतलब नहीं है कि इन बातों में बिल्कुल खुशी नहीं है । बेशक तफरीह में खुशी है मगर उन्हीं लोगों को जो हमेश : बड़ी खुशी की तलाश में रहते हैं और जो दुनियवी खुशी के बयान में हम दिखायेंगे। जिनकी तबीयत तहकीकात की तरफ रुजुञ्ज है और जो लोग हर शय और हर फेल का सबब और नतीजा दरयाफ्त करने की ख्वाहिश रखते हैं और यह भी जानना चाहते हैं कि इस दुनिया में जिन्दगी की हालत में इंसान को किस चीज की ज्याद : जुरूरत है उन पर यह बात बखूबी रौशन होगी कि इस किस्म के ख्यालों को तहजीब के कायदों के पैरों रह कर दलीलों से सुलझाने में और बसबूत कामिल इस अम्र का तस्फिय : करने में कैसे वक्त दरपेश होते हैं । नुनांचे जब हम खयाल करते हैं कि दुनिया में हम को किस खास चीज़ की जरूरत और वह जरूरत लाबुदी क्यों है तो दिल में मुखतलिफ वजूहात के साथ कई किस्म के खयाल पैदा होते हैं और मुखतलिफ हाजतों के रफअ करने की मुखतलिफ सूरतें दरपेश आती हैं मगर इस मौकअ पर हम रूह की उस खास हाजत का जिक्र करेंगे जिस जिन्दगी का वसूल और अक्ल का नतीजा कहना चाहिये याने खुशी । यह वह चीज है जिसके हासिल करने की कोशिश हम पर उतनी ही लाजिम है जितना उस के तहसील के तरीकोंके मालूम करने की मी जुरूरत है । इसी से इस लाजिम मल्जूम जरूरत की कैफियत को हम खुशी के नाम पुकारते हैं । अब यह सवाल पैदा हुआ कि हमारी जिंदगी के वसूल का यह लतीफ हिस्सा याने खुशी क्या चीज है और क्यों कर हासिल हो सकती है । इस सवाल का जवाब अकसर बड़े बड़े आलिमों ने अपने अपने तौर पर दिया है जिन सभों को इस्जिसार से पहिले बयान कर के तब जो कुछ होगा हम अपनी राय जाहिर करेंगे। मशहूर फिलासफर पेली का कौल है कि खुशी दिल की वह हालत है कि जिसमें तअदाद राहत की रंज से ज्यादा बढ़ जाय । खुशी का शुखअ हालत ख्वाहिश के मुताबिक काम शुरू करना. बाद अजओं और कामियाब होता है वह काम चाहे किसी किस्म का क्यों न हो मसलन इल्म व हुनर सीखना, मुल्क फतह करना, बाग लगाना, गाना, खाना वगैर : वगैर : इसी खुशी के हासिल करने के वास्ते पहिले हम लोगों को चन्द दर चंद तकलीफे इन कामों में कामयाब होने को उठानी पड़ती हैं । मुमकिन है कि वगैर खुशी हासिल होने तकलीफ रफअ हो जाय अगर जब तकलीफ होगी तब खुशी ख्वाह न ख्वाह जाय : हो जायगी । हाँ बिल्कुल तकलीफ के दूर हो जाने को हम बेशक खुशी कह सकते हैं और इसी सबब से खुशी हासिल करने का गोया यह वसूल है कि पहिले की तकलीफ को कोशिश की तकलीफ से बदलना और कामयाबी की खुशी से उसी कोशिश की तकलीफ को कामयाबी की खुशी से जाय : कर देना । इसी से अगर खुशी की बतौर सरसरी के तहकीकात की जाय तो यह बात साबित होगी कि खुशी उस हालत का नाम है जिस में रंज का हिस्सा राहत से दब गया है । केट साहब का कौल है कि खुशी हमेशा : तकलीफ का नतीजा है और इस की मिसाल मकान बनाने से साफ जाहिर है । यह बात हम लोगों की आदत में दाखिल है कि अपनी मौजूद : हालत को कभी नहीं पसंद करते और हमेश : अपनी हालातअसलीसे बढ़ने की कोशिश करतेहैं।तकलीफ मौजूद : को दबा कर खुशी के हिस्से को बाया चाहते हैं । अगर हमारी खुशी हमेश : कयाम पजीर होती तो हम हालत मौजूद : से कहीं घटे हुए होते क्योंकि हमलोग किसी किस्म की कोशिश न करते और जिस का नतीजा यह होता कोई नई बात न जाहिर होती इसी से गोया उसी कारसाज हकीकी ने दुनिया की तरक्की के वास्ते यह कायदा मुकर्रर किया है कि आदमी पहिले जैसी तकलीफ उठावे पीछे से आराम हो और इसी बुनयाद पर आदमी को खासियत भी ऐसी ही बनाई है । हाँ यह बात बेशक है कि किसी को कम तकलीफ है और किसी को ज्याद : और कोई उसे थोड़ी कोशिश में हासिल करता है और किसी को अपनी उम्र का एक हिस्सा उसके हासिल करने में सफ करना होता है । इसी को तफरीह हम लोग कहते हैं कि यह आदमी खुश है और यह ज्याद : खुश है । इसी सबूतों से कहा जाता है कि खुशी खुद कोई चीज नहीं बल्कि तकलीफ के उलटे अक्स का नाम स्खुशी और यही सबब है कि रज और राहत लाजिम मलम हैं । बल्कि इसी से हमेश : यह एक मुअइअन कायदा है कि कोई काम बगैर तकलीफ के शुरूअ नहीं होता। खुशी १०२१