पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०६७

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परेशान रक्खे जिससे अपनी कोशिशों का सुख भोगने के बदले उसे रात दिन दुख उठाना पड़े हमेश : हुकुमा जब अमीरों से उन के तरददात की शिकायत करते है तो उनको रहम की नजर से देखते हैं मगर वे उमरा अपने से छोटे दर्जे वालों को कभी रहम की नन से नहीं देखते बल्कि हिकारत की । इसका यही सबब है कि उलमा अपनी कोशिश से कामयाब होकर खुशी के दर्जे को पहुँच गये है और किसी किस्म के तरद्दुद बाकी न रहने से वह दूसरों की मदद में अपने औकात सर्फ कर सकते हैं। वाखिलाफ इसके उमरा अपनी कोशिशों को नाकामयावी से दूसरों पर हमेश: हसद किया करते हैं। मतवे का खासफायदा ऊंचा हौसला और बड़ी बड़ी खुशियों में शामिल रहने का खयाल है और यह वह खुशियाँ है जो हर हालत में एक सू रहती हैं । और इन सुशियों का नतीजा यह होता है कि आसूद: लोग अपने कौम वतन और दुनिया की तरक्की की तदावीर के हौसले का मौका पाते हैं । बरखिलाफ इस के हैवानी खुशी के जोयाँ उमरा आपस में दुश्मनी बढ़ाये, हसद फैलाये बगैर हज जिंदगी उठाये अपनी जिंदगी मुफ्त बरबाद करते हैं। मेरे ऊपर के बयान से आप लोगों पर जाहिर हो गया होगा कि खुशी इमारत पर मुस्तसना नहीं बल्कि एक खुदादाद चीज है । अब मैं बयान करता हूँ कि खुशी किस चीज़ में है । अब उनकी हासिल करने की और बादह उसके कायम रखने की तदबीर सोचनी जुरूर हुई । खुशी हासिल करने का तरीका जानने के लिये सबके पहिले लियाकत की जुरूरत है ! बहुत सी ऐसी हालतें हैं जिनमें खुशी हासिल करने की कोशिश की जाती है मगर उसका नतीजा उलटा होता है और अकसर रंच के मौकों में यकायक खुशी हासिल हो जाती है इसी से खुशी हासिल करने की स्वास तदबीरों का बयान करना मुश्किल है। सिर्फ अपनी हाजतों को पूरा करना खुशी नहीं कही जा सकती क्योंकि बहुत सी हाजतें ऐसी होती हैं जो महज गलत वसूलों पर कायम होती है । अकसर उलमा का कौल है कि खुशी मुहब्बत में है ! दुनिया में खुदा ने मुहब्बत के सजावार भाई, जोरू, लड़के, रिश्त :दार और दोस्त वगैरह : बहुतेरे बनाए हैं । अक्सर इन लोगों की अदममौजूदगी में खुशी न हासिल होने से लोग फकीर हो जाते हैं या दुनिया में रहते हैं तो परेशान रहते हैं। चंद लोग दूसरों की हाजत रफअ करने को खुशी कहते हैं क्योंकि दूसरे लोग खुशी हासिल करने को कोशिश करते हैं उन को अपनी कोशिश में कामयाब बनाकर खुश कर देना गोया उनकी खुशी में शरीक होना है बाज उलमा खुशी हासिल करने की कोशिश ही को खुशी कहते हैं मगर इस में मुश्किल यह है कि पहिले से उस कोशिश के खीर नतीजे की कामयाबी को बखूबी जांच कर लेना चाहिए । दूसरे जब तक कि उस काम का अंजाम बखूबी न हो जाय बराबर मुस्तअदी की भी जुरूरत है । पेली का कौल है कि खुशी जितनी अपने इरादों की मजबूती में है उतनी सिर्फ खयालात और कोशिश में नहीं । इस कौल की तसदीक बहुत साफ है ! जो अपने इरादों पर मजबूत है वह हमेश : अपनी कामयाबी को अपनी आँखों के सामने देखता है और अगर ऐसा शख्स अपना काम पूरा किये हुए भी मर जाय तो उसको वही खुशी हासिल रहेगी जो कि कामयन्नी पर हो सकती थी। वही मजबूत की खुशी हासिल करने के वास्ते काम के पीछे लगे रहना निहायत जुरूर है ख्वाह वह अपने फायदे के वास्ते हों या आम फायदे के वास्ते हों । अक्लमंद लोग इसी काम में लगे रहने को दिल्लगी कहते हैं और यह वह दिल्लगी है जो आदमियों को अपने इरादों पर कामयाब करके खुशी ही नहीं बख्शती है बल्कि रूहानी व जिस्मानी सिहत को भी कायम रखती हैं। इन में खुशी के चंद वसीले ऐसे हैं जिन का असर आदमी अपनी मौत के बाद भी छोड़ जा सकता है की जमाअतो का कायम करना, स्कूल और शफाखानों की बुनियाद डालना वगैर : मसलन् मुल्की . . . वगैर: । जाती फायदों की खुशी भी बाज हालत में आदमी के मरने के बाद भी कायम रह सकती है मसलन अपने खान्दान के खुद व नोश की सूरत बेखलिश कायम कर जाना । किसी काम की तरफ मजबूती से दिल लगाने में एक फायदा यह भी है कि बीच में छोटी छोटी तकलीफे जो इत्तिफाक से सरजद होती हैं उन को आदमी अपनी होनहार खुशी की धुन में बिल्कुल खयाल में नहीं लाता । खुशी की एक उमदः हालत यह भी है कि अपनी बुरी आदत को बदल देना । वह आदमी कैसा खुश होगा जब वह अपने को बुरी आदत से छूटा हुआ देखेगा । Xekc खुशी १०२३