पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०६८

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बहुत से लोग गैर मामूली ख्वाहिशों के पूरे होने को खुशी कहते हैं जैसा कि जो शरस हमेश : तनहाई में रहता है उसे अगर दोस्तों की सुहबत नसीब होती है तो उसको गनीमत जानता है । मगर कोशिश कुनिन्द : को ऐसे मौकअ में बनिस्वत सुस्त लोगों के ऐसे हालत में भी जयाद : खुशी हासिल होती है । मसलन जो फिलासफी की बड़ी बड़ी किताबों के पढ़ने में हमेश: अपना वक्त सर्फ करता है उसे अगर छोटी मोटी कोई किस्से की किताब मिल जाय तो वह बड़ी खुशी से पढ़ेगा बरखिलाफ इस के जो हमेश : किस्से कहानियों से जी बहलता है उस को अगर फिलासफी की किताब दे दी जाय तो उसका जी उलझेगा और वह उसे फेक देगा । गैर मामूली खुशी अमीरों पर भी असर करती है । मसलन किसी अमीर की सालाना आमदनी हजार रुपया है मगर किसी साल इत्तिफाक से दस या बारह आ जावें तो, उस को खुशी हासिल होगी । यही मिशाल इस बात की दलील है कि अगरचे दौलतमंदी खुशी की मूजिब है मगर उस में भी तरक्की ज्याद : खुशी देती है । खुशी का एक बड़ा भारी सबब तंदुरुस्ती भी है और यह तंदुरुस्ती तब ही दुरुस्त रह सकती है जब आदमी रूहानी या जिस्मानी तकलीफ से बच सकता है । खुशी है वह जिस का बदन बलगम या रीह या चरबी से नहीं तैयार है । बल्कि किसी किस्म की तकलीफ न होने की आसूदगी से तैयार है । मगर यह खयाल जुरूर है कि यह तंदुरुस्ती उस किस्म की बेफिक्नी से न पैदा हो जिससे कि तमाम कोशिश और हौसले पस्त हो जायं जैसा कि हमारे हज़रत बनारस की खुशी है । हम पहिले कह चुके हैं कि सच्ची खुशी के लिये लियाकत की जुरूरत है मगर इस लियाकत के साथ दुनियवी तहजीव और दीनी ईमानदारी की भी निहायत जुरूरत है । अक्सर लोगों को बहुत सी ऐसी बातों में खुशी हासिल होती है जो दर हकीकत ईमान, तहजीब, आकबत, आबरू, बल्कि जान. माल और जिस्मी आराम को भी गारत करनेवाले होते हैं । तो क्या हम ऐसी खुशी को भी अस्ली खुशी कहेंगे ? मसलन् मूजी को ईजारसानी में बदकार को बदी में, किमार बाज को जुए में और ऐसे ही बहुत सी बातों में खुशी मान ली जाती है जो हिकमतन, शरहन और यकीनन, हर सूरत से सिवाय जरर के फायदा नहीं पहुंचाती । इस सूरत में तो बल्कि यह सोचना लाजिम आता है कि ऐसी खुशियों के नजदीक भी न जाय क्योंकि जब कोई शय तुम्हारी अल्क पर गालिब आ जाय तो तुम नशे के आलम की तरह, अपने हवास पर काबू न रख कर झूठी खुशी की तलाश में जाहिरी लज्जत के धोखे से जहर का प्याला पी जाओगे । हकीकी खुशी वही है जिसका अंजाम व आगाज दोनों खुश हैं । अस्ली खुशी सुफहए दिल से रंज का नाम यककलम हटा देती है और तमाम जिस्म को, हवा से खमस: को और जान को ऐसी राहत देती है कि उस हालत महवीयत में उसी सामाने खुशी की निस्बत हर लहज: में दिल की नई नई उलफते और नए नए शौक पैदा करता है । इस कैफियत का ठीक ठीक जाहिर करना जबान की कूव्यत से बाहर है इससे तड्रिब :कार लोगों के कयास ही पर छोड़ दिया जाता है । पेली ने लिखा है कि खुशी तहजीब वाकिय : जमाअतों की मुतफरिंक लोगों में करीब करीब बराबर हिस्सों में बँटी है और इसी से बुराई करने वाला हमेश : बमुकाबल : ईमानदार दुनियवी खुशी से भी महरूम रहता है, खुशी से गम को अलाहिद : करने के लिए एक खास किस्म की लियाकत की जुरूरत होती है जो हर शख्स में नहीं पाई जाती हसी से खालिस खुशी का लुत्फ हर शख्स को नसीब नहीं होता । दुनिया में तकलीफ भी जब अपनी हद को पहुँचती है खुशी का मजा चखाती है । जब आदमी पर हद से ज्याद : जुल्म होता है या हालत सकरात पहुँचती है तब नई खुशी से बदल जाता है और यही सबब है कि आदमी | जितना छोटी छोटी तकलीफों से तंग आता है उतना बड़ी तकलीफ से नही घबराता । सच्चे आशिकों की हिजरत की तकलीफ जब हद से ज्याद : बढ़ जाती है तब फिराक में वस्त से ज्याद : मजा मिलता है । सुई गड़ने में जो तकलीफ होती है वह बल्कि नहीं बरदाश्त होती मगर जंग में मुतवातिर चोटों को आदमी बेतकलीफ बरदाश्त कर सकता है । अफरीक : के मशहूर सैयाह डाक्टर ल्यूंगशटन (लिविंगस्टोन) ने लिखा है जब वह बेर के जंगल में फंस गए थे तो उनको मायूसी के साथ एक किस्म की खुशी हुई थी । इसी तरह अक्सर मौत शदीद के वक्त लोग खुश पाये गये हैं । इसका सबब यह है कि जब आदमी की हालत बिल्कुल ना उमैदी को पहुँचाती है तो उस तकलीफ का खौफ का बाकी नहीं रहता मसलन जब तक आदमी को जीस्त की उम्मैद है, उसका मौत का खौफ रहेगा मगर जिस वक्त कि जीस्त की उम्मैद बिल्कुल मुनकतझ हो गई फिर उसको किस बात का खौफ रहा । यही सबब भारतेन्दु समग्र १०२४