पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०७२

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जातीय-संगीत मई,सन्न १८७९ में “कविवचन सुधा" में इस लेख का विज्ञापन छपा था । इससे भारतेन्दु बाबू की लोक व्यापी दृष्टि और सामान्य जन से उनका लगाव सहज ही मालूम पड़ता है। इस लेख से लगता है कि सबसे पहले ग्राम गीतों का महत्व भारतेन्दु जी ने ही समझा था और वे लोक गीतों को समाज सुधार का अच्छा माध्यम समझते सं. भारतवर्ष की उन्नति के जो अनेक उपय महात्मागण आजकल सोच रहे हैं उनमें एक और उपाय भी होने की आवश्यकता है । इस विषय के बड़े बड़े लेख और काव्य प्रकाश होते हैं, किंतु वे जनसाधारण के दृष्टिगोचर नहीं होते । इसके हेतु मैंने यह सोचा कि जातीय संगीत की छोटी छोटी पुस्तकें बनें और वे सारे देश गाँव गाँव, मे साधारण लोगों में प्रचार की जायँ । यह सब लोग जानते हैं कि जो बात साधारण लोगों में फैलेगी उसी का प्रचार सार्वदेशिक होगा और यह भी विदित है कि जितना ग्रामगीत शीघ्र फैलते हैं और जितना काव्य को संगीत द्वारा सुनकर चित्त पर प्रभाव होता है उतना साधारण शिक्षा से नहीं होता । इससे साधारण लोगों के चित्त पर भी इन बातों का अंकुर जमाने को इस प्रकार से जो संगीत फैलाया जाय तो बहुत कुछ संस्कार बदल जाने की आशा है । इसी हेतु मेरी इच्छा है कि मैं ऐसे ऐसे गीतों को संग्रह करूँ और उनको छोटी छोटी पुस्तकों में मुद्रित करूँ । इस विषय में मैं, जिनको जिनको कुछ भी रचनाशक्ति है, उनसे सहायता चाहता हूँ कि वे लोग भी इस विषय पर गीत वा छंद बनाकर स्वतंत्र प्रकाश करें या मेरे पास भेज दें, मैं उनको प्रकाश करूँगा और सब लोग अपनी मंडली में गानेवालों को वह पुस्तक दें । जो लोग धनिक हैं वह नियम करें कि जो गुणी इन गीतों को गावेगा उसी का वे लोग गाना सुनेंगे । स्त्रियों की भी ऐसे ही गीतों पर रुचि बढ़ाई जाय और उनको ऐसे गीतों के गाने का अभिनंदन किया जाय । ऐसी पुस्तकें या बिना मूल्य वितरण की जाये या इनका मूल्य अति स्वल्प रक्खा जाय । जिन लोगों को ग्रामीणों से संबंध है वे गाँव में ऐसी पुस्तकें भेज दें । जहाँ कहीं ऐसे गीत सुनैं उसका अभिनंदन करें इस हेतु ऐसे गीत बहुत छोटे छोटे छंदों में और साधारण भाषा में बनें वरच गवारी भाषाओं में और स्त्रियों की भाषा में विशेष हों । कजली. ठुमरी, खेमटा, कहरवा, अदा, चैती, होली, साँझी, लंबे, लावनी, जाँते के गीत, बिरहा, चनैनी, गजल इत्यादि ग्रामगीतों में इनका प्रचार हो और सब देश की भाषाओं में इसी अनुसार हो, अर्थात् पंजाब में पंजाबी, बुदेलखंड में बुंदेलखंडी, बिहार में बिहारी, ऐसे जिन देशों में जिन भाषा का साधारण प्रचार हो उसी भाषा में ये गीत बने । उत्साही लोग इसमें जो बनाने की शक्ति रखते हैं वे बनावें, जो छापने की शक्ति रखते हैं वे छपवा दें और जो प्रचार की शक्ति रखते हैं वे प्रचार करें । मुझसे जहाँ तक हो सकेगा मैं भी करूंगा । जो गीत मेरे पास आवैगे उनको मैं यथाशक्ति प्रचार करूँगा । इससे सब लोगों के निबेदन है कि गीतादिक भेजकर मेरी इस विषय में सहायता करें और यह विषय प्रचार के योग्य है कि नहीं और इसका प्रचार सुलभ रीति से कैसे हो सकता है इस विषय में प्रकाश करके अनुगृहीत करेंगे । मैंने ऐसी पुस्तकों के हेतु नीचे लिखे हुए विषय चुने है । इनमें और भी जिन विषयों की आवश्यकता हो लिसें । ऐसे गीतों में रोचक बातें जो स्त्रियों और गवारों को अच्छी लगे होना चाहिए और APRIK भारतेन्दु समग्र १०२८