पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०७४

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लेवी प्राण लेवी कविवचन सुधा सं. २ नं. ५ कार्तिक शुक्ल १५ सबत् १९२७ (१८७०) में। प्रकाशित । १८७० में श्रीयुत लार्ड म्यो साहब जब काशी पधारे तब वहां पर एक लेबी दरबार हुआ था। उसी समय" कविवचन सुधा' में उस दरबार के संबंध में यह लेख छपा। इसी लेख के कारण भारतेन्दु को सरकार का कोपभाजन भी बनना पड़ा। -सं. श्री युत लार्ड म्यौ साहिब बहादुर गवर्नर जेनरल हिंद ने काशी में १ नवम्बर को एक "लेवी" का दर्बार किया था । यद्यपि 'दर्बार' और लेवी' में बहुत भेद है पर यह लेवी' और 'दबरि" दोनों के बीच की अपूर्व वस्तु थी । श्री मन्महाराजाधिराज काशिराज को कोठी में इस 'लेवी' के हेतु एक डेरा दल बादल खड़ा किया गया था । जो सूर्य नारायण और श्रीयुत लार्ड साहिब के तेज और प्रताप परम सुशीतल खसखाने की भाँति हो गया था और गरमी भी मारे गरमी के इसी खसखाने में आ छिपी थी, डेरे के बीच में चंदवा के नीचे एक सोने की कुरसी घरी थी । नाम लिखने वाले मुंशी बद्रीनाथ फूले फाले अबा पहिने पगड़ी सजे पुराने दादुर की भांति इधर उधर उछलते और शब्द करते फिरते थे और बाबू भी पैसे ही छोटे तेंदुए बनें गरज रहे थे । पहिले लोगोंने यह प्रगट किया कि जूता पहिन कर जाने की आज्ञा नहीं है । फिर कोलाहल हुआ कि चाहो जैसे आओ तिस पर भी शाहजादों के अतिरिक्त केवल चार रईस जूता पहिरे हुए थे। इतने में बंगाली बाबू सबका नंबर लगाने लगे और पंडितों को दक्षिणा बटने वाली सभा को ६. एक एक का नाम लेकर पुकार के बल्लमटेर की पल्टन की चाल से सबको खड़ा कर दिया । जनारस के रईस भी कठपुतली बने हुए उसी गत नाचते रहे । जब खड़े खड़े बड़ी देर हुई और पैर टूटने लगे और इस तपस्या पर भी प्रोयुत लार्ड साहिब के दर्शन न हुए तब राय नारायण दास आनरेरी मजिस्ट्रेट हौलदार की भाँति बोल उठे "सिट डौन" (बैठ जाओ) । सब लोग खड़े खड़े थक तो गए ही थे भुंड के बल बैठ गये परंतु राय साहब को यह 'कवायद' कराना तभी अच्छा लगता जब उनके हाथ में एक लकड़ी भी होती । लार्ड साहब की 'लेवी' समझ कर कपड़े भी सब लोग अच्छे अच्छे पहिन कर आए थे पर वे सब उस गरमी में बड़े दुखदाई हो गए । जामे वाले गरमी के मारे जामे के बाहर हुए जाते थे, पगड़ीवालों को पगड़ी सिर का बोझ सी हो रही थी और दुशाले और कमखाब की चपकन वालों को गरमी ने अच्छी भांति जीत रक्खा था । सबके अंगों से पसीने की नदी बहती थी मानों श्रीयुत को सब लोग आदर से "अयं पाय" देते थे । कोई खड़ा हो जाता था तो कोई बैठा ही रह जाता था कोई घबड़ा कर डेरे के बाहर घूमने चला जाता था कि इतने में कोलाहल हुआ "लाट साहब आते हैं" । रायनारायण दास साहिब ने फिर अपने मुख को खोला 'स्टैंड अप' (खड़े हो जाव) । सब के सब एक साथ खड़े हो गए । राय साहिब का "सिट डौन कहना' तो सबको अच्छा लगा पर स्टैंड-अप" कहना तो सबको बुरा लगा मानों भले बुरे का फल देने वाले राय साहिब ही थे । इतने में फिर कुछ आने में देर हुई और फिर सब लोग बैठ गये । वाह वाह दर्बार क्या था "कठपुतली का तमाशा' था या बल्लमटेरों की 'कवायद' थी या बंदरों का नाच था या किसी पाप का फल भुगतना था या 'फौजदारी की सजा थी" । बैठने देर न हुई थी कि श्रीयुत लाई साहिब आये फिर सबके सब उठ खड़े हुए । श्रीमान् के संग श्री काशीराज और उनके चिरजीव बीच में खड़े हो गये । उनकी दाहिनी ओर श्री काशीराज और उनके राजकुमार शोभित हुए । पहिले तैमूर के वंशवालों की मुलाकात हुई फिर महाराज विजयानगरम् और उनके कुँअर की । इसी भांति सब लोगों का नाम बोलते गए और सलाम होती गई । श्री महाराज विजयानगर भी बाई ओर खड़े हो गए थे । जब सब लोगों की हाजिरी हो चुकी श्रीयुत लार्ड साहिब कोठी पधारे और सब लोग इस बंदीगृह से छूट छूटकर अपने अपने घर आए । रईसों के नंबर की यही दशा थी कि आगे के पीछे और पीछे के आगे अंधेरनगरी हो रही थी । बनारस वालों को न इस बात का ध्यान कभी रहा है और न रहेगा । ये विचारे तो मोम की नाक है चाहे जिधर फेर दो, हाय -पश्चिमोत्तर देश वासी कब कायरपन छोड़ेंगे और कब इनकी उन्नति होगी और कब इनको परमेश्वर वह सभ्यता देगा जो हिंदुस्तान के और खंड वासियों ने पाई है।

भारतेन्दु समग्र १०३०