पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०७५

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हरिद्वार कविवचन सुधा खण्ड ३ अंक १,३० अप्रैल सन् १८७१ के अंक में छपा, सम्पादक के नाम पत्र। -सं. श्रीमान् क. व. सु. संणदक महोदयेषु ! श्री हरिद्वार को सड़की के मार्ग से जाना होता है । रुड़की शहर अंगरेजो का बसाया हुआ है । इसमें दो तीन वस्तु देखने योग्य हैं एक तो (कारीगरी) शिल्प विद्या का बड़ा कारखाना है जिसमें जल चक्की पवन चक्की और भी कई बड़े बड़े चक्र अनवर्त खचक्र में सूर्य, चंद्र, पृथ्वी मंगल आदि ग्रहों की भांति फिरा करते है और बड़ी बड़ी धरन ऐसी सहज में चिर जाती है कि देखकर आश्चर्य होता है। बड़े बड़े लोहे के खमे एक क्षण में ढल जाते हैं और सैकड़ों मन आटा घड़ी भर में पिस जाता है । जो बात है आश्चर्य की है । इस कारखाने के सिवा यहाँ सबसे आश्चर्य श्री गंगाजी की नहर है, पुल के ऊपर से तो नहर बहती है और नीचे से नदी बहती है। यह एक बड़े आश्चर्य का स्थान है । इसके देखने से शिल्प-विद्या का बल और अंगरेजों का चातुर्य और द्रव्य का व्यय प्रगट होता है । न जाने वह पुल कितना दृढ़ बना है कि उस पर से अनवर्त कई लाख मन वरन करोड़ मन जल बहा करता है और वह तनिक नहीं हिलता । स्थल में जल कर रक्खा है । और स्थानों में पुल के नीचे से नाव चलती है यहाँ पुल के ऊपर नाव चलती है और उसके दोनों ओर गाड़ी जाने का मार्ग है और उसके परले सिरे पर चूने के सिंह बहुत ही बड़े बड़े बने हैं । हरिद्वार का एक मार्ग इसी नहर की पटरी पर से है और मैं इसी भार्ग से गया था। विदित हो कि यह श्री गंगाजी की नहर हरिद्वार से आई है और इसके लाने में यह चातुर्य किया है कि इसके जल का वेग रोकने के हेतु इसको सीढ़ी की भाँति लाए हैं । कोस कोस डेढ़ डेढ़ कोस पर बड़े बड़े पुल बनाये है वही मानो सीढ़ियाँ हैं और प्रत्येक पुल के ताखों से जल को नीचे उतारा है । जहाँ जहाँ जल को नीचे उतारा है वहाँ बड़े बड़े सीकड़ों में कसे हुए दृढ तखते पुल के ताखों के मुंह पर लगा दिये हैं और उनके खींचने के हेतु ऊपर चक्कर रक्खे है । उन तखतों से ठोकर खाकर पानी नीचे गिरता है वह शोभा देखने योग्य है । एक तो उसका महान शब्द दूसरे उसमें से फुहारे की भाँति जल का उजलना और छींटों का उडना मन को बहुत लुभाता है और जब कभी जल विशेष लेना होता है तो तखतों को उठा लेते हैं फिर तो इस वेग से जल गिरता है जिसका वर्णन नहीं हो सकता और ये मल्लाह दुष्ट वहाँ भी आश्चर्य करते है कि उस जल पर से नाव को उतारते हैं या चढ़ाते हैं । जो नाप उतरती है तो यह ज्ञात होता है कि नाव पाताल को गई पर वे बड़ी सावधानी से उसे बचा लेते है और क्षण मात्र में बहुत दूर निकल जाती है पर चयने में बड़ा परिश्रम होता है । यह नाव का उतरना चढ़ना भी एक कौतुक ही समझना चाहिए । इसके आगे और भी आश्चर्य है कि दो स्थान नीचे तो नहर है और ऊपर से नदी बहती है । वर्षा के कारण वे नदियाँ क्षण में तो बड़े वेग से बढ़ती थी और क्षण भर में सूख जाती हैं । और भी मार्ग में जो नदी मिली उनकी यही दशा थी । उनके करारे गिरते थे तो बड़ा भयंकर शब्द होता था और वृक्षों को जड़ समेत उखाड़ MOSES हरिद्वार १०३१