पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०७९

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काली हो रही है। केसरबाग भी देखने योग्य है। सुनहरे शिखर धूप में चमकते है। बीच में एक बारादरी रमणीय बनी है और चारों ओर अनेक सुंदर सुंदर बंगले बने हैं। जिसका नाम लंका है उसमें कचहरी होती उसने मेरी आमदनी गाँव रुपया पहिले पूटा और नाम पीछे । वरन बहुत से आदमी संग में न लाने की निदा सबने किया पर जो लोग शिक्षित है वे सभ्य हैं। परतु रडियाँ प्राय: सबके पास नौकर हैं। और मुसलमान सब वाइय सभ्य हे, बोलने में बड़े चतुर है । यदि कोई भी मांगता है या फल बेचता है तो वह भी एक अच्छी चाल से । चोड़ी अवस्था के पुरुषों में भी स्त्रीपन झलकता है। बातें यहाँ की बड़ी लंबी चौड़ी बाहर से स्वच्छ पर भीतर से मलीन । स्त्रियाँ सुंदर तो ऐसी नहीं पर आंख लाने में बड़ी चतुर । यहा भगेडिने रडियों के भी कान काटती है । हुक्के की भंग की दुकानों पर सब सज के बैठती है और नीचे चाहनेवालों की भीड़ खड़ी रहती केवल दो स्थान है। पहिला हुसेनाबाद और दूसरा कसर बाग । हुसैनाबाद के फाटक के बाहर एक षट्कोण तालाब सुबर और भी यहाँ अमीनाबाद, हजरतगंज, सौदागरों की दुकाने, चौक, मनशी नवलकिशोर का छापाखाना ईश्वर यहां के लोगों को विद्या का प्रकाश दें और पुरानी बातें ध्यान से निकालें । WA MAAYE दुख हुआ। मैंने उनसे पूछा कि कडिये कितना महसूल हूँ। आप नाक गाल फुला के बोले कि मैं कुछ वहिरी नहीं है कि इन अंगूठियों का दाम जानू मोहर करके गोदाम भेजूंगा वहाँ सुपरिटेंडेट साहब सांझ को आकर दाम लगायेंगे | मैंने कहा कि सांझ तक भूखों कोन मरेगा । बोले इससे मुझे क्या ? कहाँ तक लिखू इस दुष्ट ने हम लोगों को बहुत छकाया । अत में मुझे क्रोध आया तब मैंने उसको नृसिंह रुप दिखाया और कहा कि मैं तेरी रिपोर्ट करूंगा । पहिले तो आप भी बिगड़े पीछे ढीले हुए. ओले अच्छा जो आपके धरम में आने ६ दीजिए । तीन रूपये देकर प्राण बचे तब उनके सिपाहियों ने इनाम माँगा । मैंने पूछा क्या इसी घंटो दुख देने का इनाम चाहिये । किसी प्रकार इस विपत से छूटकर नगर में आए । नगर पुराना तो नष्ट हो गया है जो अचा हे यह नई सड़क से इतना नीचा है कि पाताल लोक का नमूना सा जान पड़ता है । मसजिद बहुत सी है, सकरी और कीचड़ से भरी हुई बुरी गदी दुर्गन्धमय । सड़क के घर सुथरे बने हुए है । नई सड़क बहत चौड़ी में किया डाकघर कहीं । अस्पताल कहीं छापा खाना हो रहा है । रूमी दाजा नवाब आसिफुदौला की मसजिद और मटीभवन का सर्कारी किल बना है । बेदमुश्क के होजों में गोरे मूतते दो स्थान देखने योग्य बचे और एक बारहदरी भी उसके ऊपर है और हुसैनाबाद के फाटक के भीतर एक नहर बनी है और आई और ताजगंज का सा एक कमरा अनाहुआ है । वह मकान जिसमें बादशाह गडे हे देखने योग्य है । बड़े बड़े कई सुंदर भाड रक्खे हुए हैं और इस हुसैनाबाद के दीवारों में लोहे के गिलास लगाने के इतने अंकुड़े है। और औध के पेड़ खेत रंग का देखने योग्य है। र के तअल्लुके दारों को मिले हैं । जहाँ मोती लुटते थे वहाँ धूल उड़ती है । वहाँ एक पीपल का यहाँ के हिंदू रईस धनिक लोग असभ्य है और पुरानी बातें उनके सिर में भरी है । मुझसे जो मिला है पर सुंदर कोई नहीं नवाब मशकूरुदौला की चित्र की दुकान इत्यादि स्थान देखने योग्य है। जैसा कल है फिर भी अच्छा है। हे लगे हैं कि दीपार । आपका चिरानुगत यात्री SER X14 68 लखनऊ १०३५