पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०८१

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अन्नी दिया । हम जबलपुर लिखंगा । रात भर तो से मैने भली भाँत देखा नहीं पर दो तीन बात यहाँ नह देखने में आई । एक प्रत्येक चौराहे। एक भाइटगे है। जैसड़क उस स्थान पर मिलता है उतना ही लालटेन एक खंभे में लगी है। दसरे यह कि भोजन काराया और आदरपूर्वक विदा किया। जबलपुर से फिर हम लोगों ने ३/-11 दे देकर इटारसी का टिकट लिया और प्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे कंपनी की गाड़ी पर सवार हुए । यह गाड़ी एक विचित्र प्रकार की होती है । ईस्ट इंडियन रेलवे की माड़ी मेंकई विभाग रहते है परंतु यहाँ सरासर एकी रहती है और सूरत भी बहुत मही होती है। यह तो तीसरी क्लास की गाड़ी है। यहाँ एक लोकल गाड़ी होती है जिसमें कुली आदि नीच लोग भेड़ की भांति भर दिए जाते है । उसमें बैठने के १९भा स्थान नहीं बने रहते । किराया उसमें एक पैसे कोस है । यह तो गाड़ी की प्रशंसा है। स्टेशन का प्रयंष ऐसा है कि खाने की वस्तु का तो नाम न लेना, लोग पानी पुकारा करते। तीन मनुष्य मेरी गाड़ी में बहुत चिल्ला रहे थे कि एक गार्ड आया तो एक पारसी ने कहा Sir They (are) Complaining very much for water" (साहब लोग पानी पानी बहुत चिल्लाते है तो गार्ड ने उत्तर दिया मकुछ नहीं कर सकता) अब कहिये ज्येष्ठ की दपहरी में यदि कोई पानी बिना मर जाय तो क्या ता यही प्रगट होता है । जबल पुर और इटारसी के बीच में स्टेशन ( चियारा, नृसिहपुर, गदाधराए माकेडी सोहागपुर, बाना और इटारसी) पड़ते है । परतु रेल पथ के दोनों उगल और पहाडों के कुछ दृष्टि नहीं पड़ता । कोसा पर्यन्त कोई गाँव नहीं दिखाई देता । इससे आप समझ कैसा देश है। इटारसी और वाया के बीच यहां भी एक सुरंग है जिसके भीतर से गाडी जाती है आती हे तो किचित अंधकार हो जाता है पर उसमें इधर से उधर तक बराबर प्रकाश रहता है । परन्तु अनेक तु यह सुरंग जमालपुर के सुरंग से बड़ा है क्योंकि इसमें जिस समय गाड़ी जाती है तो किचित अंधकार हो लोग कहते हैं कि वही बड़ा है । इटारसी के स्टेशन से जो बाहर आकर मैने एक बेर दृष्टि फेरी तो ज्ञात हुआ कि कैसे देश में आया है क्योंकि चतुर्दिक जंगल और मैदान दीखने लगा । इसके आगे मार्ग ऐसा है कि केवल सागर और घोडे के कुछ नहीं जा सकती। हम लोगों ने भी एक गाड़ी पांच रुपये पर माहे की ओर बढ़कर इले । बागे का समाचार दूसरे पत्र में लिखेंगा । मेशन है और उसके किनारे किनारे डावनी सी बनी है पर यह क्या था मालूम नहीं क्योंकि यात्री सब उसी मेवन में विस्तरा लगाए पड़े थे । चौधरी के पास गए । (यहाँ भठियारे नहीं है। तो वह मारे मिजाज के किसी । कुछ सुनता ही न था । घर बड़ी देर के अनंतर जब हम लोगों ने पृष्ठा कि यहाँ चारपाई इत्यादि मिलेगी कि होका वा उसने कहा जाकर अनिए से पूछो और धनिए की वहाँ की सूरत भी नहीं दिखाती थी । अंत को असक्त एक हलवाई था उससे कुछ लेकर हम लोगों ने खुधा शात्त किया और एक एक्केषाले को बुलाकर पुल पर पंडित गोपालराय, एक्सट्रा असिस्टेंट नरसिंहपुर के घर पर गए । परंतु इसके पूर्व यह प्रकाश करना पित कि यहाँ पैसा साढ़े पंद्रह आने तो विकतई है दो अन्नी और चरअन्नी भुजाने में भी एक एक पैसा भुजाना लगता है । ऐसा अँधेर हमने और किसी स्थान में नहीं देखा था । एक्केवाले चरअन्नी दिया तो वह कहता कि यह तो पंद्रही पैसे हुए एक पैसा और चहिए । एक और लड़के को सात पैसे के पलटे ना जानते कि सरकार इन बातों को जानती है या नहीं जानकर कान में तेल डाले बैठी है । अभी तक यहाँ लालटेन एक सड़क अहुत परिष्कृत और प्रशस्त है । फिरती बार ईश्वर चाहेगा तो नगर को भली भाँति देखकर आप के पास न महाराज जी (उक्त महाशय के शाले) के यहाँ रहे दूसरे दिन उन्होंने बड़े आतिथ्य है। - तीन द्वार के एक और तीन दूसरी ओर । इन गाड़ियों के एक कोने में एक शौच गृह में कंपनी पकड़ी न जावी 1? इस उत्तर . के र छ: वेच लगे रहते है (पायखाना) भी बना रहता है और गाड़ी for लिए का है कोई दो घेर सुनता नहीं । एक Can't help तौजिये कि परत एक मध्यदेश यात्री जबलपुर १०३७