पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०८४

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मेहदावल बहुत आबाद है। फैजाबाद का । अभी एक गंवार भाट आया था तब लगा और बस्ती से मेहदावल तक ३111) पालकी अच्छी तरह से हाल दर्याफ्त किया तोलाजए। कल मजहब का हाल दसने नीचे लिखा था । उसका कल डाँक ही नहीं मिली कि जायें । मेहदावल की कच्ची सड़क है इससे कोई सवारी नहीं मिलती आज कहार ठीक हुए है । भगवान ने चाहा तो शाम को रवाना होंगे । कल तो कुछ तबीअत भी गपड़ा गई थी इससे आज खिचड़ी खाई । पानी यहाँ का बड़ा बातुल है । अकसर लोगों का गला फूल जाता है, आदमी का ही नहीं कुते और सुग्गे का भी । शायद गला फूल कबूतर यहीं से निकले है । बस अब कल मिंहदावल से खत लिखेंगे। आज सुबह सात बजे मेहदावल पहुंचे । सड़क कच्ची है. राह में एक नदी उतरनी पड़ती है उसका नाम आमी है । छ: आना पुराना महसूल लगा । रात को ग्यारह बजे पालकी पर सवार हुए । पदन खूब हिला । अन्न भी नहीं पचा । इस वक्त वहाँ पड़े है । यहाँ मक्खी बहुत है और आबादी बहुत है । दो लड़कों के स्कूल है और एक लड़कियों का स्कूल है और एक डाक्त्तरखाना है । अस्ती शहर है मगर उससे यह मेहदावा गाँव ५) वस्ती तक बका । फूहर औरतों की तारीफ में एक भारी पचड़ा पढ़ा। यहाँ गरमी बहुत है और मक्खियाँ भी जियादा । दिन को बड़ी बेचैनी है। यहाँ की औरतो' का नाम श्यामतोला, रामतोला, मनतोरा इत्यादि विचित्र विचित्र होता है और नारंगी को भी यही श्यामतोला कहते है जो संगतरा का अपभ्रंश मालूम होता है क्योंकि यहीं के गवार संतोला कहते हैं । यहाँ एक नाऊ बड़े पंडित थे । उनसे किसी पडित ने प्रश्न किया कि दूध" (तुम कौन जात हो) र नाई ने जवाब दिया 'चटपटाक्क चटपटाक' (नाई) तय प्राहमण ने कहा 'तंदूर' (तुम दूर जाजो), तम नाई ने जवाब दिया 'कि छोर" (तब मूड कोन मूड़ेगा) । एक का आप डूबकर मर गया उसके आप का पिडा इस मंत्र से कराया गया 'आर गंगा पार गंगा बीच। गई रेत । तहाँ मर गए नायका चले बुज धुजा देत, घर दे पिंडया ।' कुछ फुटकर हाल भी यहाँ का सुन था। । तो मालूम हुआ कि हमारे ही मजहब की शाखा है। इनके ग्रंथों में हमने । एक श्री मडाप्रभु जी की सुबोधिनी की कारिका का देखा, इसी से हमको संदेह हुआ । फिर हमने बहुत खोद खाद कर पूछा तो वह साफ मालूम हुआ कि इसी मत से यह मत निकला। है क्योंकि एक बात वह और बोले कि हमारा मत श्री वल्लभाचारज की टीका में लिखा है। इन लोगों के उपास्य श्री कृष्ण हैं और एकादशी, शालग्राम, मूर्तिपूजा, तीर्थ किसी को नहीं मानते । इनके पहिले आचार्य देवचन्द पी थे, जो जात के कायय थे और दूसरे प्राणनाथ जी जो कच्छ के क्षत्री (माटिया) ये । हमारे ही मत की शाखा सही पर विचित्र Reformed मत है। पैष्णव होकर मूर्तिपूजा का खंडन करने वाले यही लोग सुने यहाँ बूढ़े को सपीस, ब्रत को बेनी राम, भोजन को बुलनी, जात को दूध, ऐसे ही अनेक विचित्र-विचित्र बोली है गांव गन्दा बड़ा है और लोग परले सिरे के बेवकूफ । मील पर एक मोती झील या बखरा ताल नामक झील है । दर हकीकत देखने के लायक है । कई कोस लम्बी भोला है और जानवर तरह तरह के देखने में आते हैं । पहाड़ से चिडियाँ हजारों ही तरह की आती है और मछली भी इफरात । पेड़ों पर बंदर भी । मेदापल में कोई चीज भी देखने लायक नहीं । जहाँ देखो वहाँ गन्दगी । लोग वज्र मूख, क्षत्री ब्राह्मण जियादा । एक यहाँ प्रान नाथ का मजहब है और दस बीस लोग उसके मानने वाशे है । ये लोग एकादशी तीर्थ वगैरह को नही मानते और सुने सुनाए दो तीन श्लोक जो याद कर लिये और "गोविन्द गोकुलानन्द मक्केश्वर" यह श्लोक पढ़ के कहते हैं कि वेद में मक्का मदीने का वर्णन है । ऐसे चूर हो । 'मबीनास्था शरदा शत" बहुत वाहियात वात कहते है और कोई कितना भी कहै कुछ सुनते नहीं । कहते है कि गोलोक का नाश है और गोलोक ऊपर एक 'असंड मण्डलाकार" लोक है, उसमें मेरे कृष्ण है । इनका मजाय एक प्राणनाथ नामक एक क्षत्री ने पन्ना में करीब तीन सौ बरस हुए चलाया था । यहाँ चैत सुदी भर रात को औरतें जमा होकर माता का गीत गाती है और बड़ा शोर करती हो । असभ्य बकती है । व्यभिचार यहाँ प्रेतकल्लुफ है । सरयू पार के ब्राहमण बड़े विचित्र है । मांस मछली सब साते है । कुँए के जगत पर एक आदमी जो पानी भरता हो दूसरा भारतेन्दु समग्र १०४०