पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०८५

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आदमी चला आवे तो अपना बड़ा फोड राले और उससे पड़े का दाम ले । बड़ा कोई कहे तो घड़ा छु जाय क्योकि घटा मुसलमानी नपज है, दाल कहे तो छ आय क्योंकि दाल मुसलमानी है । सूरज पंशी छत्री राजा बाबू को छाता नहीं लगता है क्योंकि वे तो सूरज वंशी है. सूरज से क्या छाता लगावे । नेम बड़ा धरम बिल्कुल नाहीं । एक ब्राह्मण ने कोहार से नई सनहकी मोल लेकर उसमें पूरी बनाकर चाया, इससे वह जात से निकाल दिया गया क्योंकि जैसे बर्तन में मुसलमान खाना बनावें उस आकार के बरतन में इसने हिंदू होकर खाना बनाया । ह हा हा ! और मजा यह कि ताजिये को सब मानते हैं । मेहदावल में एक बादशाह हैं। एक डाक्तर खाना व भी है । वह बड़ा सकार का पुन्य है । बस हमको तो सकार के युन्य में कसर यही मालूम होती है कि पुलो पर महसूला लिया जाता है क्योंकि भला नाव या ऐसे पुल महसूल लगे तो ठीक है, जिसकी हर साल मरम्मत हो, पक्के पर भी महसूल । अस्ती में अगरवाला नहीं, एक है सो जूता उतार कर लायची खाते हैं । मेहदावल में एक अगरवाले है । मुसलमान फर्श पर यहाँ नहीं बैठते । पिण्डारे जिनको इस जिले में जमीन मिली हैं अब नपाध हो गए हैं और उनकी मुस्तैदी आराम से बदल गई है । यहाँ वाही कही धारू लोगों का रक्खा सोना खोदने से आ तक मिलता है यहाँ के आबू ऐसी हठी कि बंगला गिर पड़ा पर जूला उलटा था, खिदमतगार को पुकारा यह न आया. इससे आप वहाँ से न चले और दबकर मर गए । गोरखपुर अहो बरनि नहिं जात है आब लयो जो वेद । आतप उष्मा वायु सो चल्यो नखन सो स्वेद ।।१।। प्रिय दुरगा परसाद गृह ठहरे हैं इत बाट विलोकत दुष्ट की रहे उसहि विलगाय ।।२।। आवत स्वैहे दुष्ट सो सीने नग निज साथ । पै निकस्यो जो खोट तो रहिहें हम धुनि माय ।।३।। करम लिखी सो होय है यामैं कछु न संदेह । था लोभ घस लोग सब छाडत सुख मैं गेह ।।४।। "करम कमंडल कर गहे तुलसी जहं बह जाय । सरिता सागर कूप जल बूंद न अधिक समय ।।५।।" सऊ सोन नहि कछु करिय मम प्रभु मंगल गम । करिहें सब कल्यान ही यामे कदुन कलाम ।।६।। पत्र इक गयो होहहे ताहि जतन करि राखियो गिरि नहि शव अत्र ।।७।। जेहि छन सो खल आइहै ताही छन दिखराइ । ताहि तुरतहि लौटिटे तितहि पहुँचिों राग्रिही रहिही हवे कीलो रच्छा अंग की करि आवत है हम उपाय हर बार ।।९।। यामें संसय नाहिं। अति व्याकुलता तित विना मेरेहू जिय माहि ।।१०।। प्रति पद माधव की प्रथम रस शिवम ग्रह चन्द । संपत मंगल के दिवस लिख्यो पत्र हरिनन्द ।।११।। रजिस्टरी को तत्र। आइ 110 तित हुसियार । वेग ही RUSYA

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सरयूपार की यात्रा १०४१