पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०८९

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दशाननः । HAR कैलाशशिखरे देवी यदा मानवती सती। तस्मिन काले दसग्रीवद्वारस्थोन निवारयन् ।।५।। दोभिजग्राह शैलेंद्र सिंहनाद चकार सः। तेन संत्रासिता देवी मान तत्याज भामिनी ।।१०।। तस्मिन्नुपरते शब्द जहास परमेश्वरः। श्रीडामवाप महती दशग्रीव चुकोप सा ।।११।। शाश्वत् प्रीतिमना भूत्वा दैत्यराजाय में पूरा । वर ददी शभूलड़कागमनकारणम् ।।१२।। तिम्र: कोट्यो कोटिश्च देवा: समासमाययुः । स्मरन्ति देषों संस्सूय कालरात्रिस्वरूपिणीम् ।।१३।। कामरूपं परित्यज्य सा संध्या तमुपागता । हरिद्वापीठमासाथ वासश्चक्र दशानन ।।१४।। एतस्मिन्तनतरे राजन दिजरूपधरी हरिः । हस्ते कृत्वा तु तल्लिग क्षणमात्रं स्थितस्तदा ।।१५।। प्रसाथ कर्तुमारंभे यायदंड तावत्स विप्रस्त्वरितो लिग तत्याज भूतले ।।१६।। करततिभिरकर्यच्चैकवार विचार तृतयमपि गृहीत्वा कुठिता तत्र शक्ति: । करकलित शिरोन जीवताते तुरीयं दशवदन भुजाना जातु मन्युबभूव ।।१७।। मुषित इव तटस्थ सोसिद्धनिरस्त : स्मरजिशनिवड सप्तपातालविदः । त्रिदिश-युवतिभाले दत्तमंदारमालो दशवदनविदारीप्रादुरासीदयोध्याम् ।।१८।। गते किमपि काले नृप। निमित्त जहास परमेश्वरी ।।१९।। नात परतर' स्थान गुह्यमुक्त' तु शभुना । चतुरस' क्रोशमिदं चतु: किष्कुसमुन्छितन् ।।२०।। यदा यदा भवेद् ग्लानि : स्थानेस्मिन् मनुजाधिप तवा तदावतरते राम यस्यैषा मानिनी देवी मातेष हितकारिणी । स एव रामो विज्ञेयो मठ' कारयिता चतो ।।२२।। श्रीवैद्यनाथ चरणाज स रघुनाथ प्राप्य प्रसादमजसीसमिदं विधायि प्रसाद सेतु बनवारि मठादि सर्वम् ।।२३।। गुणार्णवेन । मंदिर के चारों ओर देवताओं के मंदिर है । कहीं प्राचीन जैन मूर्तियाँ हिंदू मूर्ति बनकर पूजती हैं । एक पञ्चावती देवी की मूर्ति बड़ी सुंदर है जो सूर्यनारायण के नाम से पुजती है । यह मूति पद्य पर बैठी हे और दे बड़ी सुंदर कमल की लता दोनों ओर बनी है ।इस पर अत्यंत प्राचीन पाली अक्षर में कुछ लिखा है जो मैंने श्री बाबू राजेद्रलात के पास पढ़ने को भेजा है। दो भैरव की मूर्ति, जिससे एक तो किसी जैन सिद्ध की और एक जैन क्षेत्रपाल की है, बढ़ी ही सुंदर है । लोग कहते हैं कि भागलपुर जिले में किसी तालाब में से निकली थी । काले तु रावणं भक्षितु राममासाथ कमललोचन: ।।२१।। मधुनतेन विप्रावत वैद्यनाथ की यात्रा १०४५