पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०९१

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कविवचन सुधा के सम्पादक के नाम पत्र शृंगार रत्नाकर नाम का एक अन्य तत्कालीन काशिराज ने सं० १९१९ में प्रकाशित कराया। लेखक थे प्रसिद्ध विद्वान पं० ताराचरण तर्करत्न । तर्करत्न जीने इस ग्रन्थ में एक स्थान पर लिखा है: हरिश्चन्द्रास्तु वात्सल्य संख्य भक्तयानन्दाख्ययधिक रस चतुष्टयं मन्यते। जब यह ग्रन्थ छपा उस समय भारतेन्दु बाबू की उम्र १२ वर्ष थी। निश्चित ही उसके कई वर्ष बाद अपने अकाट्य तर्कों से भारतेन्दु जी ने तर्करत्न जी को प्रभावित किया होगा। कविवचन सुधा जि० ३ नं० २२ शुक्रवार ५ जुलाई १८७२ के अंक में सम्पादक के नाम लिखे इस पत्र से भारतेन्दु बाबू का आचार्यत्व प्रकट होता है। सं० श्री क० व० सु० सम्पादकेषु शृंगार रत्नाकर नामक श्रीताराचरण तर्करत्न ने जो नया प्रबंध बनाया है उसमें मेरा मत लिखा है कि 'हरिश्चंद भक्ति, सख्य, वात्सल्य और आनंद यह चार रस और भी मानते हैं" इस पर काशी विद्यासुधानिधि नामक मासिक पत्र के सम्पादक (पूर्व के किसी पत्र में) ने बड़े चढ़ाव से आनंद रस की हंसी किया है और उनके लिखने से ऐसा जाना जाता है कि आनंद रस हास्य के अन्तर्गत है और मानने के योग्य नहीं है तथा श्रीनृसिंह शास्त्री ने काव्यात्मसंशोधन नामक ग्रंथ निर्माण कर के बहुत सा कागज का व्यय किया है उसमें भी इन चारों रस को व्यर्थ और शृंगारादि रसों के अन्तर्गत किया है तथा इन्दुप्रकाश समाचार पत्र में भी आनंद रस को तुच्छ लिखा है और ये महात्मा लोग इसमें कारण यह लिखते हैं कि प्राचीन लोग नहीं मानते । वाह वाह ! रसों मानना भी मानो' वेद के धर्म का मानना है कि जो लिखी है वहीं माना जाय और उसके अतिरिक्त करे तो पतित होय रस ऐसी वस्तु है जो अनुभव सिद्ध है इसके मानने में प्राचीनों की कोई आवश्यकता नहीं यदि अनुभव में आवै मानिये न आवै न मानिये । आज इस स्थान पर चारों रसों को पृथक पृथक स्थापन करते है। भक्ति-कहिए इस रस को आप किसके अन्तर्गत करते है क्योंकि इस रस की स्थाई पता है और इसके आलम्बन भक्त और इष्ट देवता हैं और उद्दीपन पुराणादिक भक्तों के प्रसंग और सत्संग है अब तो जो इसे शांत के अन्तर्गत कीजियेगा तो शांत की स्थाई बैराग्य है और इसकी भक्ति है आसक्ति से और वैराग्य से जो अंतर है सो प्रसिद्ध है बैराग्य उसे कहते है जो संसार से विरक्तता होय और सब सुखों को त्याग करे और भक्ति उसे कहते हैं जो गृहस्थ लोग भी कर सकते हैं और भक्ति देवता के सिवा माता पिता गुरु राजा और स्वामि की भी मनुष्य कर सकता है तो जहाँ ऐसे प्रसंग जिसमें शुद्ध भक्ति का वर्णन है और हनुमान जी इत्यादि भक्तों के प्रसंग में यह कौन कह सकता है कि यह शांत रस है क्योंकि इन वर्णनों में स्थाई रूप वैराग्य नहीं है स्थाई रूप भक्ति है और दास्यत्व की मुख्यता है फिर कौन कह सकता है कि शांत और भक्ति एक है। सख्य-इस रस को लोग शृंगार के अन्तर्गत करते हैं हम उन लोगों से पूछते हैं कि जहां श्रीकृष्ण और अर्जुन का प्रसंग और इसी भांति अनेक मित्रों के विपत्ति में मित्रों के संग देने के प्रसंग में शंगार रस किस भांति आवैगा क्योंकि शृंगार की स्थाई रति है और यहां मित्रता में रति का क्या कार्य है ।। सम्पादक के नाम पत्र १०४७