पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०९४

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अब देखिये यह कैसी भोड़ी कविता है मैने इस का कारण सोचा कि खड़ी बोली में कविता मीठी नहीं बनती तो तुझ को सबसे बड़ा कारण यह जान पड़ा कि इसमें क्रिया इत्यादि में प्रायःदीर्घ मात्रा होती है इससे कविता अच्छी नहीं बनती । आप लोगों को ऊपर के उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगा कि कविता की भाषा निस्संदेह व्रजभाषा ही है और दूसरे भाषाओं की कविता इतना चित्त को नहीं पकड़ती । यदि हमारे पाठक लोग हच्छा करेंगे तो कविता में नायिका भेद, अलंकार और कवियों के स्वतंत्र प्रयोग कैसे-कैसे बदल गये इनका वर्णन फिर कमी करूंगा। हिन्दी कविता--संस्कृत यद्यपि परम मधुर है तथापि भाषा की मधुरई में किसी प्रकार से घट के नहीं है-इसके उदाहरण में हम एक श्रीजयदेव जी की अष्टपदी और एक उसका अनुवाद देते है अब हमारे पाठक लोग दोनों भाषा की माधुरी का प्रमाण जान लें। अब लिखने की भाषा के उदाहरण भाषा का तीसरा अंग लिखने की भाषा है और इसमें बड़ा झगड़ा है कोई कहता है कि उरदू शब्द मिलने चाहिए कोई कहता है कि संस्कृत शब्द होने चाहिए और अपनी अपनी रुचि के अनुसार सब लिखते हैं और इसके हेतु कोई भाषा अभी निश्चित नहीं हो सकती ।" इन सब माषाओ के नीचे उदाहरण दिखाते हैं। वर्षावर्णन। नं०१-जिसमें संस्कृत के शब्द बहुत हैं अहा पर कैसी अपूर्व और विचित्र वर्षा ऋतु साम्प्रत प्राप्त हुई है अनवत्ते आकाश मेघाच्छन्न रहता है और चतुर्दिक कुझझटिका पात से नेत्र की गति स्तम्भित हो गई है प्रतिक्षण अम्र में चंचला पुश्चली स्त्री की भांति नर्तन करती है और वैसे ही बकावली उडडोयमाना होकर इतस्ततः भ्रमण कर रही है मयूरादि अनेक पक्षिगण प्रफुल्लित चित से रव कर रहे हैं और वैसे ही दर्दगण भी पंकाभिषेक करके कुकवियों की भांति कर्णविधक ढक्का झकार सा भयानक शब्द करते हैं 1 नं० २-जिसमें संस्कृत के शब्द थोड़े हैं। सब विदेशी लोग घर फिर आये और व्यापारियों ने नौका लादना छोड़ दिया पुल टूट गये बांध खुल गये पंक से पृथ्वी भर गई । पहाड़ी नदियों ने अपने बल दिखाये वृक्ष कूल समेत तोड़ गिराए सर्प बिलों से बाहर निकले महानदियों ने मर्यादा भंग कर दी और स्वतंत्रता स्त्रियों की भांति उमड़ चली । नं. ३- जो शुख हिन्दी है। पर मेरे प्रीतम अब तक घर न आए क्या उस देश में बरसात नहीं होती या किसी सौत के फेर में पड़ गये कि इधर की सुध ही भूल गये । कहा तो वह प्यार की बातें कहां एक संग ऐसा भूल जाना कि चिट्ठी भी न भिजवाना । हा ! मैं कहां जाऊं कैसी करूँ मेरी तो ऐसी कोई मुंहबोली सहेली नहीं कि उससे दुखड़ा रो सुनाऊ कुछ इधर उधर की बातों ही से जी बहलाऊं । नं०४- जिसमें किसी भाषा के शब्द मिलने का नेम नहीं है। ऐसी तो अंधेरी रात उसमें अकेली रहना कोई हाल पूछने वाला भी पास नहीं रह रह कर जी घबड़ाता है कोई खबर लेने भी नहीं आता और न कोई इस विपत्ति में सहाय होकर जान बचाता । नं०५-जिसमें फारसी शब्द विशेष हैं। खुदा इस आफत से जी मचाये प्यारे का मुंह जल्द दिखाए कि जान में जान आए । फिर वहीं ऐश की चड़िया आए शबोरोज दिलवर की मुहबत रहे । रंजोगम दूर हो दिल मसरूर हो । कलकत्ते की शोभा नं०६-जिसमे अंगरेजी शब्द हिन्दी के ही मिल गये हैं। वहां हौसों में हजारों बक्स माल रखे हैं-कम्पनियों के सैकड़ो' बक्स इधर से उधर कुली लोग

भारतेन्दु समग्र १०५०