पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११०

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सेवा भाव अनेक गुप्त इन प्रगट दिखाए। । तैसेहि गोविंदलाल गोकुलाधीस पियारे । श्री युगल नित्य रस-रास कीरतन बहुत बनाए। | जीवन जी जनि-जीवन-करन विविध ग्रंथ घिरचे नए। *शुद्धि पुष्टि अनुभवत उच्छलित रस हिय माहीं । ये बल्लभ कुल के रत्न-मनि बालक सब भुव में भए ।७४ है समनेहु जिनकी वृत्ति कबहुं लौकिक-मय नाहीं । अघ-निकर सूर-कर सूर-पथ सूर-सूर जग मैं उयो । श्री वल्लभ को सिद्धांत सब थित वल्लभ सागर बिट्ठल जाहि जहाज बखान्यौ । जिनके चित नित विमल । जन-कवि-कुल-मद हरयौ प्रेम नीके पहिचान्यो । श्री द्वारकेश व्रजपति व्रजाधीश भए निज कुल-कमल ।६९ एक वृत्ति नित सवा लाख हरि-पद रच गाए । श्री श्री हरिराय स्व-भक्ति-बल थानहि फिर बोलवाइयो। श्री बल्लभ वल्लभ अभेद करि प्रगट जनाए । रसिक नाम सौं ग्रंथ रचे भाषा के भारे ।। जा पद-बल अब लौ नर सकल गाइ गाइ हरि गुनि जियो। नाम राखि हरिदास तथा संस्कृत के न्यारे । | अघ-निकर सूर-कर सूर-पथ सूर-सूर जग मैं उयो ७५ परम गुप्त रस प्रगट बिरह अनुभव जिन कीनो । श्री कुंभनदास कृपाल अति मूरति धारे प्रेम मनु । सेवा महँ सब त्यागि सदा हरि के चित दीनो । राधा-मानव बिनु कोउ पद जिन कबहूँ न गायो । हरि-इच्छा लखि बिन समयह मंदिर इन खुलवाइयो। बिरह-रीति हरि-प्रीति-पंथ करि प्रगट दिखायो । श्री श्री हरिराय स्व-भक्ति -बल: सुनत कृष्ण को नाम सवन हियरो भरि आवत । नाहि फिर बोलबाइयो ।७० प्रम-गमन नित नव पद रचि हरि सनमुख गावत । जो अनभव श्री विद्रल कियो सोड दोऊ जी में उघट । | श्री वल्लभ-गुरुपद-जग-पदुम प्रगट सरस मकरंद जना सात सरूपहि फिर श्री जी पासहि पधराए । श्री कुभनदास कृपाल अति मूरति धारे प्रेम मनु ७६ पहिले ही की भाँति अन्नकूट भोग लगाए । परमानंददास उदार अति परमानंद ब्रज बसलयो । सब रिपु उच्छव प्रगट एक रितु माहिं दिखाए। | हिय हरि-रस उच्छलित निरखि गुरु कर धरि रोक्यौ। हुन परस करि सो कर फिर नहिं प्रभुहि छुआए। जिनके दुग जुग जुगल रूप रसिकन अवलोकन करि लाखन व्यय सेवा करी किय गोकुल मेवाड़ अट । लाखन पद रचि कहे बिरह व्यापी अनुछिन गति । जो अनुभव श्री विठ्ठल कियो सोइ दोऊ जी मैं उघट ७१ सखी सखा वात्सल्य महातम भाव सिद्ध श्रुति । श्री वल्लभ प्रभु-पद प्रेम जों जागरूक जग जसलयो। लखि कठिन काल फिर आपुही आचारज गिरिधर भए ।। बालकपन खेलत ही मैं पाखान तरायो । परमानंददास उदार अति परमानंद व्रज बसि लह्यौ।७७ बादी दक्षिण जीति पंध निज सुदृढ़ दृढ़ायो । । श्री कृष्णदास अधिकार करि कृष्ण-दास्य अधिकार लह। श्री मुकुंद भव-दंद-हरन काशी पधराए । अंतरंग हरि-सखा स्वामिनी के एकंगी । थापी कल-मरजादा अनुभव प्रगट दिखाए । जासु गान मुनि नचत मुदित ह्वै ललित तृभंगी । पूरे करि ग्रंथ अनेक पुनि आपहु बहु बिरचे नए । जगत प्रीति अभिमान द्वेष हरि को अपनावन । लखि कठिन काल फिर आपुही इनके गुन औगुन प्रगटे तनहू तजि पावन । आचारज गिरिधर भए ७२ नव बार-बधूहरि भेंट करि बल्लभ-पद कर सुदढ गह। बारानसि प्रगट प्रभाष श्री स्यामा बेटी को भयो । । श्री कृष्णदास अधिकार करि श्री गिरिधर की सुता सतोगुन-मय सब अंगा। हरि-सेवा मैं चतुर पतित-पावनि जिमि गंगा । खट मृतु छप्पन भोग मनोरथ करि मन-भायो । वृंदाबन को अनुभव कासो प्रगटि दिखायो । थिर थापी करि सब रीति निज सुत्रस दसहु दिसि मैं छयो। । बारानसि प्रगट प्रभाव श्री स्यामा बेटी का भया ।७३ गाइ रिझावत हरिहि प्रेम जग में विस्तारत । वै सै बावन पद जुगल रस-केलि-मए बिरचे नए । ये वल्लभ कुल के रत्न-मनि बालक सब भुव मैं भए। गोबिंद स्वामी श्रीदाम-बपु सखा अंतरंगी भए ।७९. मोम चिरैया रचि के श्री रनछोर उड़ाई । श्री नंददास रस-रास-रत प्रान तज्यौ सुधि सो करत । पुरुषोत्तम प्रभु-पद रचि लीला ललित सुनाई। बिट्ठलनाथ दयाल सतोगुन-मय बपु धारे । ' तुला । तुलसिदास के अनुज सदा बिट्ठल-पद-चारी । BReetic भारतेन्दु समग्न ७० कृष्ण-दास्य अधिकार लह ।७८ गोविंद स्वामी श्रीदाम-वपु सखा अंतरंगी भए । हरि सँग खेलत फिरत तुरग बनि कबहूँ धावत । भूख लगत बन छाक लेन तब इनहिं पहावत । अनुछिन साथहि रहत केलि परतच्छ निहारत ।