पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११०५

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OFF* महापुराण है । न्यायालयों और महापुरुष कैसे कहता है । न्याया पहिन सर्दी आये हैं परन्तु आज कल हम यह क्या सुनते हैं - "वह लेखक है, वह महापुरुष है ।' पहिले चार के विषय में तो हमने आने नागरी जगत में अतीत कहानी मात्र सुना है और अन्तिम पञ्चन के विषय हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जानते हैं कि जो ३६ कोटि मनुष्यों के एक मात्र कुर्ता, धर्ता और विधाता है वह अपश्य एक मडापुरुष है, इसमें सन्देठ डी क्या !- इसलिये वर्तमान समय में किसी राजपुराण को "महापुरुष न मानते हुए भी हम अपने सम्राट् महाराज एडवर्ड को एक महापुरुष समझते हैं । परन्तु - "वह लेखक है, वह है ।" यह ध्यान कान में पड़ते ही बन आश्चर्य होता है कि एक साधारणस्थिति के मनुष्य को जगत और कार्यालयों में जिसका पद कि जिसे न्यायाध्यक्ष (हाकिम) और काय्याध्यक्ष (आफिसर) ही की नहीं, बरन कभी कभी उसके अर्दली और चपरासी तक की फटकार सहनी पड़ती है उसी नकल नणीस, मोहिरिर और आज कल के के पांचषाची शब्द के "लेखक" नामधारी मनुष्य ने जगत महापुरुष क्यों कर मानता है ? किन्तु जब हम वर्तमान समयकी ओर देखते हैं और यह समझते हैं कि "लेखक" सामयिकसृष्टि का यथार्थ में महापुरुष है तो हमारा आश्चर्य नहीं रहता, क्योंकि रात दिन देखते है कि वर्तमान समय में अनेकाकानेक असम्भव आते' सम्भव हो रही है । यदि वर्तमान सृष्टि की विचिन्न गति को देखकर हम यह समभ ले कि हिन्दुओं को पवित्र पुस्तकों के लेखानुसार कलिकाल में जो भगवान का कल्कि अवतार होना माना जाता है तो वह स्यात् इन्डी' महापुरुषों के वेश में हो, इसमें कुछ आश्चर्य नहीं माना जा सकता क्योंकि इस समय विलासप्रियवगत में इन महापुरुषों के अतिरिक्त और कोई ऐसा हमारी दृष्टि में नहीं आता है जो चना पौधेके तले बैठने की नाई. रूखा सूखा, मोटा फटा ह कर "परोपकाराय सतां विभूतयः" के उपदेश में लगा रहे । आ हम आप से पूछते है कि आप क्या ऐसे महापुरुष की कथा नहीं सुनना चाहते हैं। "वथा नाम तथा गुणः" की प्रेसी विलक्षण सिद्धि "लेखक" के जीवन वृत्तान्त में दीख पड़ती है वैसी स्यात ही को दीख पड़ेगी । भविष्यत् में कुछ हो परन्तु अभी तक लिखने की सिद्धि प्राप्त किये बिना कोई लेखक नहीं कहल सका है । ब्रह्मज्ञान के विना शासन अहमस्वरूप दैहिक वासनाओं के रखते हुये अवतार रूप कत्थक भाने और वेश्याओं के लिये, अनर्थ में फसानेवाले विषय वासना की चाण्डालिनी मूर्ति के प्रति लक्ष्य कर के दो चार पद निर्माण करने वाले कपि, धर्म के ज्ञान से शून्य केवल नाना आडम्बर द्वारा अपने पेट की पूजा कराने वाले आचार्य और प्रजा के संरक्षण एवं राजनीति के मर्म से शूनय राजा, भले ही मनुष्य बन जायें, परन्तु जब तक ऐश्वरीय ज्ञान प्रदपत्र प्रतिभा मय लेखन शक्ति मनुष्य को प्राप्त न होगी वह कभी "लखक" नहीं कह सकेगा। उपरोक्त यहां पुरुषों को परीक्षा में उत्तीर्ण न होने देने की अनेक वाते बाधक कही जा सकती हैं । परन्तु जब तक शरीर में प्राण है, तब तक जगत की कोई वस्तु "लेखक" का अवरोध नहीं कर सकती है, इस लिये लेखक की परीक्षा के के लिए किसी समय सामग्री की आपश्यकता नहीं है । जब से जगत में आक्षर की सृष्टि हुई है, तभी से हमारे लेखक महापुरुष का अवतार हुआ है । यो तो इस परिवर्तनशील जगत में अनेक वस्तुए अनेक बार बनती गाड़ी के पहिये को देखो ज्यों ही यह एक वार धूम जाता है और दूसरी फेरी में पड़ता है त्यो हमें उसकी पहली बार की गति और उसपर बीती हुई बातें भूल जाती है । इस से हम लेखक की आयु का निर्णय नहीं कर ।। से हम लेखक की आयु का निर्णच नहीं कर सकते । परन्तु जो कि हमें केवल "नागरी-लेखक से ही सम्बन्ध है इस लिये हम कह सकते है कि गत शताब्दि के आरम्भ से प्रथम कोई "नागरी-लेखक" अपना वर्तमान गौरव-सूचक "लेखक नाम सार्थक नहीं सका है । कडना नाही' होगा, मुद्रण यन्त्र के प्रचार के साथ ही साथ महायुक्तब 'लेखक' की उन्नति हुई जैसे विष्णु चक्र और महादेव त्रिशूल के सहारे संसार पर विवय पाते है वैसे ही "लेखक'मानो' अपने मुद्रणयन्त्र से ही जगत में अपनी दुन्दुभी बजाते है । जब तक संसार में मुद्रण यन्न रूपी उनका अस्ता रक्षित रहेगा, तब तक वह जगत में महापुरुष कहला कर ही पुजते रहेंगे हमें तो स्मरण नहीं होता क किसी नागरी लेखक ने १९ वी शताब्दि के पहिले अपने उच्च विचारों को लिखकर और छापेखाने में छपवा कर सर्व साधारण के सामने धरा हो । यद्यपि हमारे पास कोई ऐसा ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है जिस से हम यह सिद्ध कर सकेगे कि जितने लेखक इस समय प्रसिब हो रहे हैं उन के ht लेखक और नागरी लेखक २०६१