पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११११

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जादूगरनी। दो कुमारियों को एक जादूगरनी ने खूब ठगा, उससे कहा कि हम एक रुपये में तुम दोनों को तुम्हारे पति का मुख दिखा देंगे और रुपया जट कर उन दोनों को एक आईना दिखा दिया, बिचारियों ने पूछा "यह क्या तो वह डोकरी बोली "बलैया ल्यों जब व्याह होगा तब यही मुंह दूल्हे का हो जायगा" ।। खुशामद। एक ना मुराद आशिक ने किसी ने पूछा 'कहो जी तुम्हारी माशूकः तुम्हें क्यों नहीं मिली" बिचारा उदास होकर बोला "यार कुछ न पूछो मैंने इतनी खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच परी समझ लिया और हम आदमियों से बोलने में भी परहेज किया" ।। मुंहतोड़ जबाब। एक ने कहा "न जाने इस लड़की में इतनी बुरी आदतें कहां से आई ? हमें यकीन है कि हमसे इसने कोई बुरी बात नहीं सीखी' लड़का चट से बोल उठा "बहुत ठीक है क्योंकि हमने आपमें बुरी आदतें पाई होती नो आप में बहुत सी कम हो जाती" ।। लाला साहब का राम चेरा। लाला रामसरन लाल ने देर होने पर रामचेरवा से खफा होकर कहा "क्यौं बे नामाकूल आज तू इतनी देर कर आया कि और नौकरों जो काम शुरू किये एक घटे से जियाद: गुज़र गया" यह नटखट झट पट बोला "तब लला साहब ओमें बात को हो सांझ के आज हम और लोगन से एक घंटा अगौंऐं चल जाब बराबर होय जाइब'" ।। अंगहीन धनी॥ एक धनिक के घर उसके बहुत से प्रतिष्ठित मित्र बैठे थे, नौकर बुलाने को घंटी बजी,. मोहना भीतर दौड़ा, पर हसता हुआ लौटा, और नौकरों ने पूछा "क्यों बे हंसता क्यौ है ?" तो उसने जबाब दिया, "भाई, सोलह हट्टे कट्टे जवान थे उन सभों से एक बत्ती न बुझे, जब हम गये तब बुझे" अद्भुत संबाद। 'ए ज़रा हमारा घोड़ा तो पकड़े रहो" "यह कूदेगा तो नहीं" "कूदेगा! भला कूदगा क्यों ? लो संभालो" "यह काटता है ?" "नही काटेगा, लगाम पकड़े रहो" "क्या इसे दो आदमी पकड़ते हैं तब सम्हलता है" "नहीं" "फिर हमें क्यों तकलीफ देते हैं ? आप तो हई है" ।। पंच का प्रपंच॥ अरी कलारिन दौर तू चोखोप्यालो लाव । भयो जात बेहोस में दै एक और चिताव ।। देखु न इतने दिवस लों हम मुरक्षित हे जान । मानहुं तन मैं नहिं रहयो मो गरीब के प्रान ।। तेरे पायल की झनक सुनत उठे अकुलाय । गए प्रान बहुरे बहुरि अमृत दियो छिरकाय ।। अमृत सों का काम नहिं इधर सुध की आस । मेरी तो प्यारी बुझे मदिराही तें प्यास ।। दे प्यालो इक और तू करि मति कछू बिचार । दाम न मारी जायगो तेरो री सुकुमार ।। जोखिम कछु यामें नहीं दिये जाइये आप । दाम दाम चुक जायगो मरिहै जब मम बाप ।। देखति नहि मोहि गांव है कोठी बंगला बीस । बग्गी घोड़ा भाड़ मैं फानूसन को ईस ।। दाम दाम सब देइहौं तेरी रकम चुकाय । नहिं वसूल करि लीचियो सब नीलाम कराय ।। पै इन बातन सों कहा तू तो परम उदार । दै प्यालो बिन दाम को करिहैं जै जै कार ।। जब लौं सूरज चंद हैं जब लौं सागर भूमि । जब लौं कमलन को भ्रमर रहत मत्त मुख चूमि ।। तब लौ तुव जीवन बढ़े मैखानो थिर गोयं । अघट होहिं घट मद्य के पूरन प्यालो होय ।। होली बीती परिहासिनी १०६७ 70