पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१११४

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तुम्हें शतं के मुवाफिक देना पड़ेगा, क्योंकि औवल मुकद्दमा जीतने पर रुपया अदा करने का तुम ने वादा किया है । शागिर्द ने (जिस पर यह मिसरा सादिक आता है "उस्दाद जो आफत है तो शगिर्द गजब है") जवाब दिया उस्ताद मैं आपको एक कौड़ी दिवाल नहीं हर सूरत में मेरी ही जीत है अगर मैं जीता तो आपको अदालत न दिलवायेगी और अगर हारा तो शर्त के मुताबिक न दंगा, क्योंकि शर्त तो यह है कि जीतूं तो दूंन कि हारू तो आ० मि० एक दिल्लगीबाज आदमी में कोई बेवकूफ जरा सी हंसी की बात पर खफा होकर कहने लगा "तुम अशराफ नहीं हो" । इस हंसोड़ने पूछा कि "आप अशराफ हैं ?"वह बेवकूफ बड़ी तेजी से बोला "बेशक" । इस शख्स ने जवाब दिया "तो हम खुदा का शुक्र करते हैं कि हम अशराफ नहीं है।" एक जज किसी गवाह का इजहार ले रहे थे । गवाह शरारत से अक्सर हिकलाता था । जज ने खफा होकर कहा मैं समझता हूं कि तुम बड़े पाजी हो" । गवाह ने जवाब दिया 'उतना पाजी हगिंग नहीं है जितना कि हुजूर-मु-मु-मुझे खयाल करते हैं ।। एक वकील ने बीमारी की हालत में अपना सब माल और असबाव पागल दीवाने और सिड़ियों के नाम लिख दिया । लोगों ने पूछा यह क्या तो उसने जवाब दिया कि यह माल ऐसेही आदमियों से मुझे मिला था और अब ऐसे ही लोगों को दिये जाता हूं। आय॑मित्र एक काने ने किसी आदमी से यह शर्त बादी कि जो मैं तुमसे जियादा देखता हूं तो पचास रुपय जीतूं और जब शत पक्की हो चुकी तो काना बोला कि लो मैं जीता, दूसरे ने पूछा क्यों ? इसने जवाब दिया कि मैं तुम्हारी दोनों आंखें देखता हूं और तुम मेरी एकही ।। एक अन्धा वैरागी काशी के बीच मनिकनिका घाट पर बैठा गहन में दही पेड़े खा रहा था, कि देख कर किसी पण्डित ने पूछा, सूरदास जी ! यह क्या करते हो ? बोला, महाराज दही पेड़े खाता हूं । कहा गहन में ? उत्तर दिया, बावा ! मेरे गुरू को दया से सदाही गहन है । यह सुन पण्डित हंसकर चुप हो रहा । कोई राजपूत बहुत अफीम खाता था, दैवी उसे विदेश जाना पड़ा. और किसी अड्डे में जाकर उतरा, वहां के लोगों ने आकर इस से कहा, कि ठाकुर साहिब ! यहां चोरी बहुत होती है आप चौकसी से रहियेगा । यह बात सुन कर रात तो उसने जाग कर काटी, पर यह बात बी में रखी, कि चोरी बहुत होती है । भोर होतेही घोड़े की पीठ लगा एक नगर के बीच चला जाता था, कि एका एकी पीनक से चौंक कर पुकारा, ऊरे रमचेश ! अरे रमचेरा ! घोड़ा कहाँ ? वह बोला महाराज ! घोड़े पै तो बैठेही जाते हो, और घोड़ा कैसा ? कहा बेटा ! इस बात की कुछ चिन्ता नहीं पर सावधान रहना अच्छा है ।। दो कलावत दक्षिण से कमाई किये दिल्ली को चले आते थे, कि वाट में दौड़ों ने आय लिया, और लगे बरछिया भाले उठाय उठाय मार मार डाल डाल पुकारने । उस काल ये दोनों भी झट गाड़ी से उतर, चट परतल के टट्टू पर जा बैठे, और लगे उनसे पूछने, कि वलैया लों, मार मार डार डार ही कर जान्यो है, कै कभू चौपड़हू खेले हौ । उनमें से एक बोला, कि क्यों ? इन्हों ने कहा कि कहूं जुगहू मार्यो जातु है ? इस रहस से बहुत मगन हुए और इन्हें न लूट हंस कर चले गये ।। मथुरा क चौबे बड़े ठठोल होते हैं एक दिन कोई चौंबे हाट में मारू बैंगन मोल लाया, देख कर उसकी जीरू ने पूछा, कहा भरता करूं ? यह बोला मोतें कहा चूक परी ? उसने उत्तर दिया, लोग तुम्हें जोय सी कहत हैं, यह सुन चौबे निरुत्तर हुआ । एक कायथ अनपढ़ घोड़े पर बैठा हाट में चला जाता था, किसी घुड़चढ़े ने उसे मेंड़की से भी पीछे हटा बैठा देख के कहा भैया जी ! कुछ आगे हट बैठो, क्यों ? कहा, आसन खाली है । उसने उत्तर दिया, क्या तुम्हारे कहे से हट बैठेगे ? जैसे साईस ने बैठा दिया है, तैसे बैठे चले जाते हैं ।। किसी बड़े आदमी के पास एक ठठोल आ बैठा था, और इनके यहां कहीं से गुड़ आया, उसने ठठे में कहा, कि महाराज ! मैंने जनम भर में तीन बिरिया गुड़ खाया है । बोला, बखान कर, कहा । एक तो छठौ के दिन जनमधूंटी में खाया था ; और एक कान छिदाये थे तब ; और एक आज खाऊंगा । उन्ने कहा, जो मैं न दूं? बोला, दोही बार खाया सही ।। भारतेन्दु समग्र २०७०