पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दिल्लगी की बातें। एक सौदागर किसी रईस के पास एक घोड़ा बेचने लाया और बार बार उस की तारीफ में कहता "हजूर यह जानवर गजब का सच्चा है" रईस साहिब ने घोड़े को खरीद कर सौदागर से पूछा कि घोड़े के सच्चे होने से तुम्हारा क्या मतलब है । सौदागर ने जवाब दिया "हजूर जब कभी मैं इस घोड़े पर सवार हुआ इसने हमेशा गिराने का खौफ दिलाया और सचमुच इस ने आज तक कभी झूठी धमकी न दी" ।। एक दिल्लगीबाज़ शख्स एक वकील से जिसने किसी मजमून पर एक वाहियात सा रिसाला लिखा था राह में मिला और बेतकल्लुफी से कहा 'वाह जी तुम भी अजब आदमी हो कि मुझसे अब तक अपने रिसाले का जिकर भी न किया - अभी कुछ वरक जो मेरी नज़र से गुजरे उनमें मैंने ऐसी उम्दा चीजें पाई जो आज तक किसी रिसाले में देखने में न आई थीं' । यह शख्स एक लाइक आदमी की ऐसी राय सुन कर खुशी के मारे फूल उठा और बोला "मैं आप की कद्रदानी का निहायत ही शुक्रगुज़ार हुआ – मिहरबानी करके बतलाइये कि वह कौन कौन सी चीजे हैं जो आपने उस रिसाले में इस कदर पसंद की' । उसने जवाब दिया आज सुवह को मैं एक हलवाई की दूकान की तरफ से गुज़रा तो क्या देखा कि एक लड़की आप के रिसाले के वरकों में गर्मागर्म समोसे लपेटे लिये जाती थी" ।। बात की धुन। हाईकोर्ट के एक वकील साहब अपने स्पीच के जोर में ऐसे बढ़ चढ़ चले कि जमीन को छोड़ कर आसमान की बातें करने लगे । जज ने घबड़ा कर अपना रूल टेबल पर पटका और बोले बस साहब बस अब आप हमारी हुकूमत के बाहर हो गए । भला सरकार का राज छोड़कर किसी दूसरे राज में चले जाते तब तो हमको सुनने का अखतियार ही न था कहाँ अब तो आप इस दुनिया के ही बाहर पहुंचे ।। न्याय शास्त्र। मोहिनी ने कहा "न जानें हमारे पति से जब हम दोनों की एकही राय है तब फिर क्यों लड़ाई होती है। क्योंकि वह चाहते हैं कि मैं उनमें दबू और यही मैं भी ।। मिहमान रामेश्वरदत्त के घर एक दिन जगदेव सिंह गए. बैठने के वास्ते चटाई वटाई कुछ नहीं थी बिचारे खड़े रहे । पंडित जी बड़े चाव में बोले "ठाकुर साहब देखिए आप कैसे भाग्यवान है कि जहां जाते हैं यहां बैठने को जगह नहीं मिलती" ।। मुफतखोर। एक मुसलमान अमीर के दीवानखाने में एक मुफ्तखोरे खाने की ताक में टहल रहे थे । जब देर हुई तो आप खिदमतगार मे पूछने लगे "बेगू दस्तरखान कब बिछैगा?' नौकर ने जवाब दिया 'ज्योंही तुम जाओगे'। गुरू के गुरू। बाबू प्रहलाददास से बाबू राधाकृष्ण ने स्कूल जाने के वक्त कहा "क्यों जनाब मेरा दुशाला अपनी गाड़ी पर लिये जाइयेगा" उन्होंने जवाब दिया "बड़ी खुशी में" मगर फिर आप दुशाला मुझमें किस तरह पाइएगा । राधाकृष्ण जी बोले "बड़ी आसानी से क्योंकि मैं भी तो उसे अगोरने साथही चलता हूं" ।। अचूक जवाब। एक अमीर से किसी फकीर ने पैसा मांगा उस अमीर ने फकीर से कहा "तुम पैसों के बदले लोगों से लियाकत चाहते तो अब तक कैसे लायक आदमी हो गए होते" फकीर चट पट बोला "मैं जिसके पास जो देखता हूं वही उससे मांगता हूं ।। परिहासिनी १०७१