पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११२

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  • ange Sy9E%teपुरुषोत्तमदास सुसेठ-वर छची श्री काशी रहे। | प्रगटे डाकर औरन लगे भये विषय में तब विरत 100 नाम दान सनमान जासु गिरिजापति कोने । | बेनीदास माधवदास दोउ श्री नवनीत-प्रिया निरत ।९. निसि दिन मैरो द्वारपाल सिव सासन दीने। हरिबंस पाठक सारस्वत ब्राहमण श्रीकासी निवस । अन्याय गत विरज मदनमोहन अनुरागी। दै दिन पटने रहे तहाँ हाकिम चित ऐसी । महाप्नभुन की कृपापात्रता जिन सिर जागी। अनुसार हम तुरत करें ये आशा जेसी । जिन पर नंददिक कूप सो प्रर्गाट जनम उत्सव लहे। | सपने ठाकर कही डोल भवन हम पाहत । पुरुषोतमदास सुसेठ-पर छत्री श्री काशी रहे ।९१ | हाकिम तें ये बिदा तयारी करी बचन रत । जाई पुरषोत्तमदास की रुकमिनि मोहन-मदन-रत । । श्री काशी में आए तुरत डोल मुलाए प्रेम-बस । गंगा-स्नानहु सों यदि विन सेवा गुनि लीनी। हरिवस पाठक सारस्वत ब्राह्मण श्री काशी निवस। श्री गोस्वामी श्री मुख जासु बड़ाई कीनी । | गोविंददास भल्ला तज्यौ प्रानहु प्रिय निज इष्ट हित । गहन नहानी एक बार चोचीस वरष में । चारि भाग निज द्रव्य प्रभुन आज्ञा ते कीने । सेठों सुनि मे मगन भवन सुख-सिंधु हरष में । एक भाग श्री नाथे इक निज गुरु कहं दीने । सेवक स्वामी एक अहें याते नित एकते रहत ।। एक भाग दे तजी नारि एक आपहिलीने । जाई पुरुषोत्तमदास की रुकमिनि मोहन-मदन-रत ।१२ सोउ वैष्णवन हेत कियो सब व्यय भय होने । गोपालदास तिन ननय को सुमिरत श्री मोहन-मदन । तवि देव अंस गुरु अंस लहि सेवा केसवराय नित । भगवद नामस्मरन हुँकारी प्रगट आप भर । गोविंददास भल्ला तन्यो प्रानहु प्रिय निज इष्ट हित ।९८ श्री गोस्वामी श्री मुख जिनहिं सराहत निरभर । अम्मा पे नित अनुकूल श्री बालकृष्ण ठाकुर प्रगट । भगवर-गीला सदा नित नव अनुभव करते। अम्मा चालक दोय ताहि करि प्यार पुकारे । तिलक सुबोधनि पाठ कीरतन चित हित धरते। | मरे एक के ता रोवत हरि दुख जिय धारें। पुरुषोत्तमदास सुवंस में अति अनुपम अवतंस मन । | रोवत रोवत मरो सोक सुत बहु विलाप कर । गोपालवास तिन तनय को सुमिरत श्री मोहन-मदन ।२३ श्री गोस्वामी सम्भावन हित आये तेहि घर । सारस्वत ब्राह्मण रामदास ठाकुर-हित नाकर भये । | मंदिर को टेरा खोलि के देषे पय पीवत निकट । देनो दियो चुकाई जासु नवनीत पियारे । | अम्मा पें नित अनुकूल श्री बालकृष्ण ठाकर प्रगट ।९५ श्री आनारज महाप्रभुन धनि धन्य उचारे । | गंजन भावन धनी हुते श्री नवनीत-प्रिया सुखद । बाल-भाव निज इष्टहि सेवत बालक पाये। जिन बिन ठाकुर महाप्रभू घर नहि रहते । सेवा में बसु जाम लीन तन धन बिसराय। जे ठाकुर विन अतिहि दुसह दुख सहस न कहते । नित सकल काम-पूरन परम इद विस्वास सरूप ये। हन बिछरत इन देह दहत जर वे न अरोगत । सारस्वत ब्राहमण रामदास ठाकर-हित चाकर भये ।९४ इन दोउन की प्रीति परस्पर कौन कहि सकत । गदाधरदास द्विज सारस्वत अतिहि कठिन पन चित धरे। सब भावहि बस नित ही रहे दिये जिनहिं निज परम पद। जजमानाय भोग मदन मोहन के रोपे। | गंजन धावन छत्री हुते श्री नवनीत-प्रिया सुखद ।१०० जो आये सो सकल तुरत अपने अभिलाये। ब्रह्मचारी नरायनदास जू वसत महाबन भजत-रत । जा दिन नहि कछ मिले हानि जल अर्पन करते। धन कई गुन्यो बिगार देखि निज सेज चहूँ किन । भूषे ही रहि आप वैष्णवनि हित अनुसरते।। दिय बोहारि फेकवाइ बहुरि लिपवायो हैसि हित । सागो स्वादित अति जासुधर भक्त भाव सों नहिं टरे। श्री गोकुल चन्द्रमा पीर साई जिनके घर । गदाधरदास दिज सारस्वत अतिहि ।

आरोगाई प्रभुन कही मति डरी जाति-डर । कठिन पन चित घरे ।२५ तबही ते सपड़ी खीर नहिं यह रीति या पुष्टि मत । बेनीदास माधवास दोउ श्री नवनीत-प्रिया निरत । ब्रह्मचारि नरायनवास जू यसत महामन भजन रत।१०१ बेनीदास महान भागवत बड़े भात हे। छत्रानी एक महाधनहि सेवत नित नवनीत-प्रिय । विषई माधवदास अनुव पे नहिं रिसान है। पृध्यि-परिक्रम करत महाप्रभु तहाँ पधारे । बाटि सका धन भए विलग कामिनि अनुकूले ।। पाये श्रुति-सरवस्व मुक्तमाल लिय मोल इष्ट हित आपुहि मूले।चार वेद के सार चार हरि विग्रह करे । आपने प्रान अधारे । didase भारतेन्दु ममग्र ७२