पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११२२

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बाबू रामदीन सिंह को भारतेन्दु बाबू द्वारा दिया गया अपनी पुस्तकों को छापने का अधिकार पत्र। बाबू रामदीनसिंह साहब, मालिक व मुहर्तायन क्षत्रियपत्रिका, खंगविलास प्रेस बांकीपुर । आपको में इजाजत देता हूँ कि आप मेरे किताबों में से जिनको आप चाहें छापें और इस वास्ते कि जो किताब आप छापें उनमें आपको नुकसान न हो । यह भी आपको लिखा जाता है कि जो चीज आप छाप लेंगे, उसको और कोई नहीं छाप सकेगा, और अगर कोई छापे तो कानून हक तसनीफ के (कापी राइट) मुताबिक आप उस पर नुकसानी का दावा करने को मजाज होगें और मेरे किताब के सबब से आपको जो कुछ इनतिफाअ हो उससे मुझको कोई वास्ता नहीं है । वह कुल मुनाफा क्षत्रिय पत्रिका के पर्चे में लगाया जायगा जिसके की आप मालिक हैं। फकत मरकूम, २३ सितम्बर, १८८२ ई. (हस्ताक्षर अग्रेजी में) मुकाम बनारस हरिश्चन्द्र भारतेन्दू बाबू के पत्र रामदीन सिंह जी के नाम २३, सितम्बर प्रिय, आपका पत्र और तार मिला । आपने जैसा अनुग्रह इस समय किया वह कहने के योग्य नहीं चित्त ही साी है । आज शनिवार की दोपहर है अब तक बाबू सहिब प्रसादसिंह नहीं आये । साय तक या रात तक शायद आतें यद्यपि इस अवसर पर फिर कुछ आपको लिखना निराझक मारना है । किन्तु अत्यन्त कष्ट के कारण लिखता हूँ । हो सके एक सौ और भेज दीजिए । जो काम कमवत दरपेश है नहीं निकलता और मैं यहाँ किसी से उसका जिक्र तक नहीं किया चाहता इसी से फिर निर्लज्ज होकर लिखा है । किन्तु जाने दीजिए बहुत कष्ट हो तो नहीं । क्षमा इसके पीछे जो नोटिस है मेरे अनुरोध से क्षत्रिय पत्रिका में छाप दीजिएगा। भवदीय हरिश्चन्द्र सूचना मेरी बनाई वा अनुवादित वा संग्रह की हुई पुस्तकों को श्री बाबू रामदीन सिंह खंग विलास के स्वामी छाप सकते हैं जब तक जिन पुस्तकों को ये छापते रहे और किसी को अधिकार नहीं कि छापें । २३.१०.१८८२ हरिश्चन्द्र (२) प्रिय बाबू साहबसिंह का शिष्टाचार मुझे कुछ भी नहीं बन पड़ी मेरा स्वभाव आपने देखा होगा कि बिल्कुल बाहृयाडम्बर शून्य है इसी से मुझको जाहिरा कुछ नहीं आता । वह सब पत्र यहीं छापूंगा । यह फिर मैं किस मुंह से कहूँ कि हो सके तो शीघ्र एक और भेज दीजिए । भवदीय हरिश्चन्द्र भारतेन्दु समग्र १०७८