पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११२३

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Asoka (३) प्रिय वरेषु ! आपका पन आया व्याकरण और "विहारदर्पण" आने पर मैं अपनी राय लिख भेजूंगा । काशीनाथ के मुकदिम में विलम्ब मेरे विन्ध्याचल चले जाने से हुआ था । वह सब कुछ तै हो गया आप खातिर जमा रखिए । भक्तिसूत्र विना ॐ के छापिये। मेरे एक मित्र ने मुझसे बड़ा विश्वासघात किया । मेरा कुछ रुपया किसी कारण से उसके नाम रहता था । वह बेईमान होकर मिर्जापुर चला गया । वरच में इसी वास्ते विन्ध्याचल गया था । अब वह साफ इनकार कर गया खैर दिवानी फौजदारी जो कुछ होगी देखी जायगी । अब एक गुप्त बात आपको लिखता हूँ कि रु० सब एक साथ हाथ से निकल जाने से मैं बहुत ही तंग हो गया हूँ वालिश दीवानी फौजदारी सभी करनी है । महाराज से मांगा तो कहा कि दूसरे महिने में देंगे । यदि हो सके तो शीघ्र सहायता कीजिए। वह याँ कि मैं अपनी पुस्तकों में से जिसका आप चाहें स्तत्व हकतसनीफ मैं आपके हाथ बेच डालू । वा और जैसे उचित समझिए । ४०० रु. कि मुझको जरूरत है इसमें आपका किया जितना हो सके जो कुछ हो तार द्वारा समाचार दीजिएगा । आदित्यवार तक रु. हमको यहाँ पहुँच जाना चाहिए । यहाँ अन्धेर नगरी विद्या सुन्दर इत्यादि का लोगों ने ५५ रु. प्रति पुस्तक लगाया किन्तु लज्जा के कारण मैंने नहीं बेचा । वहाँ होगा तो जो वस्तु १ की बिकेगी वह आप नोटिस में ४ की लिखिएगा । तब हमारी आपकी और पुस्तक की प्रतिष्ठा रहेगी । वा यह जो आप न चाहें तो जो कुछ हो लिखिएगा । सिद्धान्त यह समझिए कि इस विषय को मैं विशेष नहीं लिख सकता इस समय सहायता कीजिएगा । तो अगले जनम भर एहसान मानूंगा । और किसी बात से आपसे बाहर नहीं हूंगा । जो कुछ हो नहीं थोड़ा बहुत मंजूर हो शीघ्र तार दीजिए । मैं किसी विशेष कारण से यहां कुछ उपाय न करने के हेतु ये भुगतान चाहता हूँ । बड़ी घबड़ाहट में हूँ उत्तर शीघ्र । यह पत्र आपको गुरुवार को मिलेगा उसी क्षण तार में जबाव दीजिएगा हो सके तो उस दिन डाक द्वाग पत्र भेजिएगा । ४०० रु. हो सके अत्युत्तम नहीं जितना भेज सकिए । फेर भेजने लिखिएगा तो दो एक सप्ताह में फेर भेजूगा । इति भवदीय हरीश्चन्द्र प्रियवर, आपका पत्र आया, पुस्तके भी पहुंची, दीपनारायण सिंह ने अपने ताश के खेल में मेरा नाम नहीं दिया है यह अनुचित किया है जब कि उन्होंने स्वयं एक वस्तु को उलट पुलट कर छापा है तो फिर रजिस्टरी कराके दूसरों को क्यों निषेध करते हैं ? आप जानते है कि मेरी पुस्तके लाभ के लिए नहीं छपतीं, मुझे इस में कुछ ख्याल नहीं है परन्तु कृतज्ञता मनुष्य के शरीर का रत्न है । भला और कुछ नहीं तो कृतज्ञता तो स्वीकार करना था । उदेपुर की बंशावली मेरे पास बिल्कुल नहीं लिखी है । टाड राजस्थान अंग्रेजी में और उर्दू में छप गया है और थोडासा बंगले में भी छपा है । वह बहुत अच्छा है उसमें और भी कई जगह से उसने मिलान कर के लिखा है कुछ कागजात उदेपुर के मेरे पास है और एक उदेपुर को तवारीख खास दर्वार में को लिखी हुई है कुछ मेरर लिखी हुई है । यदि आप उन सबों को इकट्ठा करके आप लिखना चाहै तो मैं भेज दूंगा। आपको राजस्थान लेना होगा क्योंकि यह मेरे पास नहीं है। इस विषय में आपको क्या सम्मति है ? पुरानी पुस्तकों के विषय में जो आपने लिखा है पहिले यह लिखिए कि किस शास्त्र की पुस्तके आपके पास पहिले भेजी जाये? आपको जो कुछ पूछना हो लिखिऐ उत्तर बराबर जायेगा । अंधेर नगरी चौपट राजा" जाता है इसे शीघ्र ही छाप दीजिए, इस की आवश्यकता है। भक्तलाल" आप अवश्य छाप दीजिए परन्तु आपके पास जो भक्तलाल है वह भी मुझे देखने को भेज दीजिए। KOM पत्र साहित्य १०७९