पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११२६

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दगा, उत्साह कीजिए । जातीय गीत भी कुछ बनें और छपैं, मैं बहुत उद्योग करता हूँ किन्तु किसी ने न बनाकर भेजे। गुरु आपका हरिश्चन्द्र अनेक कोटि साष्टांग दण्डवत् ३-५-८३ प्रणामानंतर निवेदयति लघु र. क. मिली, धन्यवाद, नाटकादि जाते हैं. भारतेंदु बहुत अच्छी चाल से चला है किंतु तनिक कड़ाई विशेष है । लेख परिपाटी उत्तम है, क्या यह वही लाहौर वाला है ? मैं अब तक नहीं अच्छा हुआ, बड़ी ही सुस्ती है, प्राण बचैं तो कुशल हैं, हमारी सर्वस्य निधि जो आप संग्रह कर रहे हैं शीघ्र भेजिए, इस दुख में सर्व प्रकार सहायक होगी । श्री चरण सेवक हरिश्चन्द्र । श्रीकृष्ण हम लोगों का बड़ा दिन । अनेक कोटि साष्टांग दण्डवत प्रणामांतर निवेदयति महात्माओं ने जो पद बनाए हैं उनमें प्रिया पीतम का जो संवाद है वा अन्य सखियों की उक्त्ति हैं उन्हीं सबों के यथास्थान नियोजन से एक रूपक बनें तो बहुत ही चमत्कार हो अर्थात नाटक की और जितनी बातें हैं अमुक आया गया इत्यादि अंक दृश्य इत्यादि मात्र तो अपनी सृष्टि रहै किंतु संवाद मात्र उन्हीं प्रवीनों के पदों की योजना से हो । जहाँ कहीं पूरा पद रहै वहाँ पूरा कहीं आधा चौथाई एक टुकड़ा जितना आवश्यक हो उतना मात्र उनमें से ले लिया जाय । यह भी यों ही कि एक बेर पदों में से चुन चुन कर अत्यंत चोखे चोखे जो हो या जिनमें कोई एक टुकड़ा भी अपूर्व हो वह चिन्हित रहै फिर यथा स्थान उनकी नियोजना हो, ऐसा ही गीत गोविंद से एक संस्कृत में हो, बहुत ही उत्तम ग्रंथ होगा । आप परिश्रम करें तो हो मैं तो ऐसा निर्बल हो गया हूँ कि बरसों में सुधरूंगा। दासानुदास हरिश्चन्द्र (९) श्रीहरिः अनेक कोटि साष्टांग दण्डवत प्रणामानंतर निवेदनम् - आज के भारतेंदु में प्रथम पत्र आर्य समाजियों के विषय में जो है उसमें मेरी बुद्धि में यह बात आती है कि ब्राह्मणों को एक ही बेर छोड़ देने की अपेक्षा उनको सुधारना उत्तम है भारतेंदु टाइप में छपै तो बड़ी उत्तम बात है । २४ पेज में टाइटेल पेज के २५० कापी छपाई कागज समेत २५) में उत्तम छप सकता है, यहाँ छपे तो मैं प्रूफ आदि भी शीघ्र दिया करूँ। में इन दिनों महात्माओं के चित्रों की फोटोग्राफ में कापी करके संग्रह कर रहा हूँ, नागरीदास श्री महाप्रभु आदि कई चित्र तो हैं, कुछ यहाँ भी मिलेंगे? आगरे के उपद्रव का वृत्तांत मैंने विलायत कई मित्रों को लिखा है उसके प्रमाण के हेतु कई समाचार पत्र भी भेजे हैं। इस मास का मेजूंगा इससे इसकी एक कापी और दीजिए । अबकी इसमें समालोचना छोटी २ बहुत सुंदर हैं । शृंगारलतिका पर नकछेदी जी ने रजिस्टरी भी करा ली । यह मजा देखिए. राजा मानसिंह के मानों आप पोष्यपुत्र हैं । ललिता ना. चन्द्रवली की छाया पर बनी है, अस्तु, बिचारे वैष्णव मत का न भेद जानें न आप वैष्णव, वैष्णव पत्रिका के संपादक तो हैं - नाटकों में गवारी वैसवार की मेरी बुद्धि में उत्तम होगी क्योंकि इस प्रदेश में दूर तक बोली जाती है । प्रतिपदा दासानुदास हरिश्चन्द्र । भारतेन्दु समग्र १०८२