पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११२७

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अनेक कोटि साष्टांग दडवत प्रणामानंतर निवेदयति आप का कृपापात्र पाया, बृहद्गौर गणोद्देश दीपिका वा वृहदगणोद्देश दीपिका जो जो जितनी मिलैं मेजिएगा । जो पुस्तकें वहाँ मिलती हैं, यदि आप कृपापूर्वक उनका एक सूचीपत्र भेज दें तो बड़ा उपकार हो । कीर्तन की पुस्तक आप दो भेज दें एक नित्य पद की दूसरी उत्सव की पद । मुक्तावली लोग क्यों नहीं देते ? कदम्ब की लकड़ी श्री.... जी के वेणु निर्माण के हेतु चाहिए मयूरपिच्छ चन्द्रिका मात्र ही भेजिएगा हम आपसे किसी बात से बाहर नहीं जिस प्रकार आप भेजिएगा हम को शिरसाधार्य है। रासोत्सव व्यवस्था जो कल के पत्र में छपेगी वह श्रीवन के पंडितों को दिखलाइएगा देखिए लोग क्या कहते हैं और सब कुशल है भवदीय रविवासरे हरिश्चंद्र आज आज सबेरे से यहाँ घनघोर वृष्टि हो रही है। (११) अनेक कोटि साष्टांग दंडवत प्रणामानंतर निवेदयति. निस्संदेह आप मुझसे व्यर्थ रुष्ट हुए. इस वर्ष के पहिले ही नम्बर में आपका प्रतिवाद छपा है, भला इसमें मेरा क्या दोष है, जिसने आपकी निंदा किया है उसको दो हजार आप गाली दीजिए देखिए छपता है कि नहीं । चंद्रिका के भेजने का प्रबन्ध आदि सब अब पं.गोपीनाथ जी के जिम्मे है । मैं उनसे पूछंगा कि क्यों नहीं गई और भिजवा दूंगा । संसार में भले बुरे सब प्रकार के लोग है कोई किसी की निंदा, कोई स्तुति करता है । हम तो केवल तटस्थ हैं, कोई हमारे चित्त में कल्मष तो तब आप को प्रतीत करना था जब आप का प्रतिवाद न छपता। श्रीवन से हमें कई पुस्तकें मैंगाना है आप कृपापूर्वक उसका प्रबन्ध कर दें तो हम नामादिक लिख भेजें । और सर्व कुशल हैं। आपका दासानुदास शनि हरिश्चंद्र (१२) श्रीहरिः। प्रिय पूज्य चरणेषु ! होली मंगल क्या आप चित्रों का विषय भूल गए ? क्या अभी तक एक भी नहीं बने ? तनिक ध्यान रहै । मेरे योग्य सेवा हो सो लिखिएगा। दासानुदास हरिश्चंद्र (१३) श्रीकृष्णायनम: । अनेक कोटि दंडवत प्रणामानन्तरं निवेदयति पूर्व में एक पत्र आपको लिखा था, उसमें चित्रों के विषय में आप को जो लिखा था उसका कुछआपको पता लगा ? व्यास जी, श्री अद्वैत प्रभु, श्री नित्यानन्द प्रमु, श्री गोपालभट्ट जी या और किसी महात्मा की मी तस्वीरें मिलें और दस दिन के वास्ते भी मैंगनी मिल सके तो मैं कपी करा लूं। कष्ट क्षमा - दासानुदास हरिश्चन्द्र Foltik

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