पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११२८

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(१४) शतश: प्रणति के पश्चात् निवेदन ! क्या चित्रों की याद एक बारगी भुला दी ? इतने चिन्न है, श्री श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास जी, हरिवंश जी, नागरीदास जी, आनन्दघन जी और हमारे आचार्य और उनके द्वितीय पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ जी इनके अतिरिक्त और जिन महात्माओं के मिलें दीजिए । कष्ट देने को बारबार क्षमा कीजिए । दासानुदास हरिश्चन्द्र "भक्त्यात्वनन्ययालभ्यो हरिरन्यद्विडम्बनम्" “Heaven is love, and love is heaven" अनेक शतकोटि प्रणामानंतर निवेदयति, कृपा पत्र मिला, बच्चा को पत्र में लिख दिया है कि आप की सेवा में यात्रा से लौटकर आवे, मथुरा एजेंसी वालों को कह दीलिए कि उनके पास जिन २ महात्माओं की कापी बिकाऊ हों उनका एक सूची पत्र मेरे पास भेज दें। पुस्तकों का सूचीपत्र छापा तो है। दासानुदास हरिश्चंद्र (१६) पूज्य चरणेषु, श्री रूपसनातन गोस्वामि की जाति क्या थी ? श्री महाप्रभु का जीवन चरित्र एक बंगला से हिन्दी किया है उसमें यवन लिखा है । मैंने कायस्थ सुना है । हमारे निज संप्रदाय के ग्रंथों में भी कायस्थ लिखा है । इसका उत्तर अति शीघ्न दीजिए। श्री शचीदेवी और श्री विष्णु प्रिया कब तक जीवित रहीं यह भी लिखिएगा । अपने परम पूज्य पिता जी से मेरा साष्टांग प्रणाम कहिएगा। द्वितीया दासानुदास हरिश्चंद्र (१७) अनेक कोटि साष्टांग दण्डवत प्रणामानंतरं निवेदयति आपका कृपा पत्र मिला, आपने ऐसा क्यों लिखा है । अलौकिक और लौकिक दोनों संबंध से हमारे आप पूज्य हैं। चित्र जो मिलै अति शीघ्र यत्नपूर्वक भेजें । जितने चित्र जितने दिन के हेतु मँगनी आवे उनका वृत्त लिखिएगा कि उतने ही दिन में वे फेर दिए जायें । जो मूल्य पर मिलें उनका मूल्य लिखिएगा । आप अलौकिक चित्र पुस्तकादि मुझको भेजते हैं इसका मैं जन्मजन्म ऋणी रहूँगा । २४ डिसेम्बर १८८३ काशी दासानुदास हरिश्चन्द्र (१८) शतकोटि दण्डवत प्रणामानंतर निवेदयति बाबू राजेन्द्रलाल मित्र ने एक प्रबंध में इस बात का खंडन किया है कि महाप्रभुजी मध्वमतावलंबी थे इसमें प्रमाण, उन्होंने यह आज्ञा किया कि "यत श्रीधरविरुद्ध तन्नामात्माकमादरणीयम् !" वह कहते हैं कि भारतेन्दु समग्र १०८४