पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११३०

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नहीं जानते । कैसी हुडी केसा रुपया ? यहाँ मकान की रजिस्टरी की हर्ज होती है । न जाने उनको क्या मंजूर है । जो हो कानूनन तो उनपर खयानत और जालसाजी का दावा अच्छा खासा होगा । मगर वह हमारे निज का आदमी है वह कभी ऐसी बेईमानी न करेगा खाली माधवी से बुरा मानकर तंग करता है । आप फौरन खत पाते ही उसको बुलाकर या जाकर मिलिए और एक तार हमने आपके नाम दिया है, उसके मुताबिक अनजान बनकर पूछिए कि कौन से हुडी के रुपए के बिना बाबू साहब का हर्ज है वह भुगतान जल्दी कर दो । या तो अभी तार दो कि उनको रुपया मिल जाय या तुम कल बनारस चले जाओ । इस बखत तार उससे भिजवाइए, और एक तार हमारे नाम भी भिजवाइए । बरिक तार की खबर का खर्च भी आप दे दीजिएगा । हम आपके हिसाब में पाठक जी को दे देंगे । हमारा खत उसको मत दिखलाइएगा न कुछ हाल कहिएगा कि मैंने उसकी बुराई की है । अपना काम देखिएगा । जिसमें तार के खबर से चिट्ठी से गवाही से आपके सामने बयान से हर तरह से उसको पाबंद कर लीजिएगा । रुपए बिना बड़ा हर्ज है । कह दीजिए कि आज शाम तक तार का इन्तिजार देखकर वह खुद चले आवेंगे । बाहर ही से इस आदमी को रवाने किया है इसे खर्च नहीं दिया है दे दीजिएगा । व्यय मात्र कहिएगा । आपके यहाँ के नौकरों को या पाठक जी को दे दूँगा । बड़ी सावधानी से चटपट काम हो । शाम के भीतर हमको खबर दीजिएगा तार पर कि क्या जवाब दिया । खर्च सब मेरे जिम्मे । भवदीय हरिश्चन्द्र प्रियवरेषु - आपका कृपा-पत्र आया । यह संसार दु:ख का सागर है और अपनी अपनी विपत्ति में सब फंसे हैं पर मैं सोचता हूँ कि जितना मैं चारों तरफ से दु:ख में जकड़ा हूँ इतना और कोई कम जकड़ा होगा पर क्या करूँ खैर चला ही जाता है बाबू जी का यह तुक बहुत ही ठीक है -"है संसार का यह मजा, धन सरिस दुख तड़ित सम सुख मोह छाजन छजा ।' इन्हीं झंझटों से आजकल पत्र नहीं लिखा । क्षमा कीजिएगा । चित्त वैसा ही है । इसमें संदेह न कीजिएगा । "सौ युग पानी में रहै मिटै न चकमक आग ।" और सब कुशल है -आपका भी पचड़े में फंसना सुनकर बड़ा दुख होता है। ठीक है-खैर न वह रही न यह रहेगी। भवदीय हरिश्चन्द्र भारतेन्दु समग्र १०८६