पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११३२

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BIEF यही कारण हुआ कि पीछे हिन्दी कविता में ब्रजभाषा और बुंदेलखंडी बोली समभाव से मिल गई । इस समय के प्रसिद्ध कवियों में देव बड़ा कवि हुआ जिसके बाबन ग्रंथ अथवदि मिलते हैं और इसने अपनी भाषा में कठोर शब्द मी नहीं मरे । इस काल में कविता का चरचा ऐसा था कि मुसलमान लोग भी हिन्दी कविता करने लगे नेवाज नवी सेख आलम जहान पीतम रहीम जैनददी महम्मद, लालखा और ताज इत्यादि अनेक उत्तम कवि मुसलमानों में हुए और इन लोगों ने कई ग्रंथ भी बनाये । कहते हैं कि सेख और ताज ये दो स्त्रियों के उपनाम है वह कविता स्त्रियों की है । उस समय में अनेक हिन्दू स्त्री भी कवि हुए जैसा गंगावाई, मीरावाई, चतुरकुंअर, सोनादासी, और रामदासी इत्यादि । मुसलमानों में गाने के प्रबन्ध बनाने वाले भी उस समय से बहुत लोग हुए जैसा मिया तानसैन इत्यादि पर उस काल में क्या हिन्दू क्या मुसलमान किसी कवि ने कविता की रीति सुधारने और शब्दों के नियम बनाने में चित्त न दिया । नाटक का तो ये नाम भी जानते थे दो नाटक उस समय के बने है पर वे दोनों कथा की भांति है नाटकपन उसमें नहीं है। उनमें एक तो प्रबोध चन्दोदय भाषा में है और दूसरे में बाज कवि या शकुन्तला है । इस समय के कवियों का चित्त स्वाभावोक्ति पर तनिक नहीं जाता था । केवल बड़े-बड़े शब्दाडम्बर करते थे और इन शब्दाडम्बरों का पदमाकर राजा है और इसने वैन मैची के हुते अनेक व्यर्थ शब्द अपनी काव्य में भर दिये है और फारसी के भी बहुत शब्द मिला दिये और इसकी देखा देखी और कवि भी ऐसा करने लगे । केशवदास ने तब मी कवि की मर्याद बांधी और उसकी मर्याद को बहुत लोग अब तक मानते हैं । उस समय में श्रीवृदावन में अनेक कवि अच्छे हुए और उनकी कविता सीधी स्वाभोवोक्ति लिए और रसमरी होती थी। जिनमें नागरीदास जी इत्यादि कई लोग बहुत अच्छे हुए जिनकी कविता बहुत उत्तम है परन्तु नाटक बनाने में किसी ने जोर न लगाया । इस काल में नाटक एक दो बने जिनमें एक हास्यार्णव था यधपि यह शुद्ध नाटक की चाल से नहीं है तथापि कुछ नाटक की चाल छूकर बना है पर बहुत असभ्य शब्द से भरा है इसी से कवि ने उसमें अपना नाम नहीं रक्खा पर अनुमान होता है कि रघुनाथ कवि का है नाटक सब के पहिले जो हिन्दी भाषा में पुरानी ठीक नाटक की रीति से बना वह नहुष नाटक श्री गिरिधरदास कवि का है और इसके पीछे आजकल तो अनेक नाटक बने और अब तो भाषा के अनेक व्याकरण और प्रबन्ध की पुस्तक बन गई । साम्प्रत काल के कवियों में श्री गिरिधरदास महान कवि हुए क्योंकि व्याकरण और कोष और नाटक हिन्दी में पहिले इन्हीं ने बनाये और इस काल पजनेस ठाकुर रघुनाथ इत्यादि अनेक कवि पहिले पर किसी ने नई बात नहीं की वही लीक पीटते चले गये । अब भी बहुत कवि हैं और इस भाषा की अच्छी वृद्धि है पर अब हिन्दी खड़ी बोली में पप कविता नहीं वर्ना पर जो ऐसी वृद्धि है तो आशा है कि यह भाषा सुघर जायेगी। हिन्दी भाषा कविवचन सुधा कार्तिक कृष्ण ३० सं. १९२७ वाराणसी न.४ में प्रकाशित सम्पादकीय लेख। -सं० H प्राय लोग कहते हैं कि हिन्दी कोई भाषा ही नहीं है । हमको इस बात को सुनकर बड़ा शोच होता है यदि कोई अंग्रेज ऐसा कहता तो हम जानते कि वह अज्ञान है इस देश का समाचार भली भांति नहीं जानता । पर अपने स्वदेशियों को हम क्या कहैं । हम नहीं जानते कि उनकी ऐसी हत बुद्धि क्यों हो गई कि वे अपने प्रीचन माषा का तिरस्कार करते हैं । क्या भारतखंड निवासी महाराज विक्रमादित्य और मोज के समय में भी लखनऊ की सी बोली बोलते थे । एक महाशय लिखते हैं कि "यवन लोगों के आगमन के पूर्व इस देश में प्राकृत भाषा प्रचलित थी परन्तु उसके अनन्तर उस भाषा में विशेष करके अरबी और फारसी शब्द मिश्रित हो गये । अब उस नवीन भाषा को चाहै हिन्दी कहो, हिन्दुस्तानी कहो, वृजभाषा कहो, खड़ी बोली कहो, चाहे उर्दू कहो ।" परन्तु वही यह भी कहते हैं कि "मुसलमान लोगों ने अपने मारतेन्दु समग्र १०८८