पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११३४

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'कविवचन सुधा के २२ दिसम्बर के अंक में लिखा देश की आर्थिक स्थिति के सन्दर्भ मे- "चाहे कैसे भी द्रव्य एकत्र किया हो अन्त में सब जायेगा विलायत में, क्योंकि हमारी शोभा की सब वस्तुएं वहां से आवैगी, कपड़ा, झाड़ फानूस, खिलौने, कागज और पुस्तक इत्यादि सब वस्तु बिलायत से आवैगी उसके बदले यहा से द्रव्य जायेगा तो परिणाम यह होगा कि चाहे किसी उपाय से द्रव्य लो अन्त में तुम्हारे देश से निकल जायेगा ।" डेढ़ दो महीने बाद ९.२.१८७४ कविवचन सुधा में लिखा स्वदेशी का नारा- "अब भी हम लोगों को कला कौशल्य की ओर ध्यान देना चाहिए । लोगों को तो अंगरेजी वस्तुओं की रुचि लगी है तो अंगरेजों के समान सब पदार्थों के कारखाने यहां नियत किये जाये पर अभी यहा के व्यापारियों में इतना सामर्थ्य नहीं है कि अंगरेजों के समान लोहा पीतल इत्यादि मौल्यवान पदार्थ लेकर मट्टी के वस्तु तक बनावें जैसे कि अंगरेजी व्यापारी माल भेजने लगे देखो बढ़ई आदि छोटे छोटे व्यापारियों को काम मिलना कठिन हो गया है यहां तक कि घर की खिड़कियां दरवाजे आदि सब विलायत से बन कर आते हैं । इस घोके का मुख्य कारण यही है जो अंगरेजों ने सबों के चित्त को अंग्रेजी भाषा की तरफ खीचा जो यथार्थ है कि हम लोगों ने कला कौशल्य की ओर ध्यान नहीं दिया और उन्होंने तो इसी मिस से हम लोगों को "बहाली दी" और द्रव्य सब विदेश के ले गये । अब हम लोग इस बात की ओर कुछ चित्त लगाकर अपने लाभ के विषय में विचार करने लगे हैं और उसका कुछ फल भी दृष्टिगोचर होने लगा है परन्तु यथार्थ में यहां का माल तैयार करने के निमित्त जो लोग एकत्र हुए है वे कुछ भी नहीं है क्योंकि जब तक देश भर के व्यापारी इस विषय में उद्योग न करेंगे तब तक कार्य सिद्ध भली भांति नहीं हो सकता । जिस लिए केवल इतने ही से एतददेशीय वस्त्र आदि की वृद्धि होनी कठिन है और अंग्रेजों के समान वस्तु तैयार करना बिना सबों की सहायता के नहीं हो सकता ।" "जानि सके सब कछू सबहि बिबिध कला के भेद कल की इतै मिटै दीनता खेद" और "अंगरेजी पहिले पढ़े पुनि विलायतहिं जाय या विद्या को भेद सब तो कछु ताहि लखाय" बनै वस्तु १६.२.१८७४ कविवचन सुधा "जाने को तो यहां से तत्व खिंचकर जाता है और आने के शीशा खिलौना और कलम पिन्सिल आती है । बड़े बड़े एम. ए. और बी. ए. अब इस दुर्भिक्ष में किस काम आवैगे, एक राजा अच्छा पढ़ा लिखा और एक बंसफोड़ कमी दोनों एक जंगली टापू में छोड़ दिये गये थे वहां के लोग उनकी बोली नहीं समझते थे और थे राजा का सौन्दर्य बुद्धि विद्या वहां कुछ काम न आई और उस बंसफोड़ ने बांस और लकड़ी लेकर माला बनाई उसे देख कर जंगली लोग बड़े प्रसन्न हुए और उसी लकड़ी के माला की कृपा से उन दोनों को भोजन मिला । तो है देशवासियों तुम भी इस निद्रा से चौको इनके न्याय के भरोसे मत फूले रहो । ये विद्या कुछ काम न आवेगी यदि तुम हाथ के व्यापार सीखोगे तो तुम्हे कभी दैन्य न होगा नहीं तो अन्त में यहां का सब धन विलायत चला जायेगा तुम मुंह बाये रह जाओगे ।" हरिश्चंद्र की जागरूकता का प्रमाण यह भी है कि वह विज्ञान की उन्नति चाहते थे।"कविवचन सुधा" में इस विषय पर लेख भी निकले।९ मार्च १८७४ के अंक में लिखा- सं० "(विलायत में) एक लक्ष बइलर है, माप के यंत्र है और एक एक की शक्ति ४० घोड़ों की है। एक घोड़े की शक्ति आठ मनुष्यों के बराबर है तो इस हिसाब से चलीस लाख घोड़े अर्थात तीन करोड़ बीस भारतेन्दु समग्र १०९०