पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११४

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BeRally माधवभट कसमीर के मरे बालकहि ज्याइयो । भई स्वरुपासक्ति तुरत भूली सुधि सगरी। भई स्वरुपासात तुरत मूला सराव अतिहि दीन हवे लिणी सुबोधनि महाप्रभुन पैं। पुनि मागि भेट की मुहर प्रभु लिए सरन दोउन तही। सेवा में आराध परवी अनजाने उनपैं। जननी नरहर जगनाय की महाप्रभुन-छवि छकि रही ।११०% लबु बाधा में तजी चोरनि सर लागे। श्री आचारज महाप्रभुन-पद रति-रस पागे। नरहर जोसी जगनाथ के भाई बड़े महान हे । श्रीनाथी जिनकी कानि ते निज पासहि पथराइयो । भोग अरोगन आये सिसु हवे अपन बिसारी। पै इन प्रभु की कानि रचको चित न विचारी । माधवभट कसमीर के मरे बालकहि ज्याइयो ।११४ | सावधान में सुनत अनुज सा प्रभु की करनी। गोपालदास पे सदन बहु पथिकान के बिनाम हित ।। गोस्वामी के सरन किये जजमान स-धरनी। आवत श्री द्वारिका पदारावल निवसे वह । तेहि जरत बचाये आगि ते ऐसे ये सुषदान है। सुनि गोपालदास सेवा सो पहुँच गए तहै। नरहर जोसी जगनाथ के भाई बड़े महान हे ।१२० पूछि कुसल पि द्वारिकेस दरसन अभिलापी । कही प्रगट रनछोर अडेल लषी निज ऑपी। सनि बिरजो माव पटेलले आइदरसलहि मे मुदित । | साँचोरा राना व्यास दुज सिद्धपुर निवसत रहे। गोपालचास पै सपन पद् पचिकनि के विनाम हित ।११५ | जगन्नाथ जोसी गर मुदगर तपित साइके । ह्यकित पैं अविकारी इनको किये जाइके । दुज साँचोरे रावला पदुम श्री रनछोर कही करी। जिनकी मति यहि राजपुतानी सती भई नहि। परमारथी गुपालदास सिषये ये आये । शुद्ध होइ आई ताको तिन दिवे नाम तहिं । महाप्रभुन दरसन करि निज अभिमत फल पाये । पुनि सरनागत करि प्रभुन के पर-उपकारी पद लहे । ले प्रभु-पद चंदन चरनामृत भे विद्याधर । सांचोरा राना व्यास दुव सिद्धपूर निवसत रहे ।१२१ श्री ठाकुर आयसु ते गये कोऊ सेवक घर । धनि राजनगर-बासी हुते रामदास दुज सारस्वत । पथ बहु रोटी घरपन करी घी चुपरी न रूपी परी । श्री नटवर गोपाल पादुका गुरु सेयो इन । दुज सांचोरे रापला पदम श्री रनछोर कही करी ।११६ | श्री रनडोर सु कहे ग्रहन किय निज नारिहु जिन । ठाकुर ही आयसु से तिय को नामहु दीने । पुरुषोत्तम जोसी दुज हुते कृष्णभट्ट 4 अति मुदित । तब ताके कर महाप्रसाद मुदित मन लीने । आये ये उज्जैन पद्यरायल के सूत-घर । पुनि नाम निवेदन प्रभुन पैं करवाये कहि कानि सत । रहे तहाँ पे तिन सब इनको कीन अनादर । धनि राजनगर-यासी हुते रामदास दुल सारस्वत ।१२२ बड़े पुत्र लिन कृष्ण भट्ट निज वर पधराये । रासे तह दिन चारि प्रसादह भले लियाये । गोविंद दूबे सांचोर द्विज नवरत्नहि नित पाठ किय । सुनि सतसंगी हरिबस के गोस्वामी मुष भगत हित । श्री गोस्वामी-पत्र पाइ मीरहि दूत त्यागी । पुरुषोत्तम जोसी दुज हुते कृष्णभट्ट अति मुदित ।११७ श्री ठाकुर रनछोर-वारता-रस-अनुरागी । प्रभुन थार के महाप्रसाद दिये नहिं इक दिन । ऐसे भूले रजपूत को जगन्नाथ लीने सरन । सकल वैष्णवनि सहित उपास किये तिहि दिन तिन । श्री ठाकुर अर्पित अशुद्ध गुनि अति दुख. पाये। सुनि भूखे श्री रनछोर सो थार महापरसाद दिय । ताती पीर समर्पि सिषे जो प्रभुन सिपाये । गोविंद दुवे सांचोर दिन नवरत्नहि नित पाठ किय ।१२३ चार भोग अनकट 4 पेट कपीर उपाई । इरषा सो दुरजन इन 4 तरवार चलाई। राजा माधो दुबे हुते दोउ भाई सांचोर दुन । तेहि श्री कर सो गहि के कही मारे मति ये महतजन । रामकृष्ण हरिकृष्ण बड़े छोटे दोउ भाई। ऐगे भूले रजपूत में जगन्नाथ लीने सरन ।११८ बड़े पढ़े बहु कथा कहें लघु मूढ सवाई। जननी नरहर जगनाथ की पहा प्रभुन-छवि अकि रहीं। भावन की कटु सुनि वे के सरनहि आये । इक इक मुहर भेट हित दै पठये दोउ माइन। अष्टोत्तर सतनाम बार दै जपि सब पाये। बनाम निवेदन हेतु प्रभून पै अति चित चाइन। पुनि पाइनाम श्रीप्रभुन पें भेनिज करके कलस-भुज । मिले कृपा करि दियो दरस पुरुषोत्तम नगरी। । राजा माधो वे हुते दोउ भाई साँचोर दुज ।१२ Diler भारतेन्दु समग्र ७४ Hassette