पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कविवचन सुधा-जि. २ सं. ६ सम्बत १९२७ -सं० प्रिंस आफ वेल्स के भारत आगमन पर प्रकाशित विज्ञापन श्री महाराजाधिराजजी के ज्येष्ठ पुत्र युवराज श्रीयुत महाराजुकुमार आगत नवम्बर में हिन्दुस्तान में आवेंगे । इस के वर्णन में सब भाषा के कवियों श्री कविता एकत्र संग्रह कर के पुस्तकाकार छापी जायेगी । यह सब कविता श्री महाराणी वा कुमार वा उन के वंश की कीर्ति वर्णन में वा उन के आशीर्वाद में होगी । संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, अरबी, बंगला, गुजराती, महाराष्ट्री, तमिल, तेलंग इत्यादि सब भाषा की कविता इसमें सन्निवशित हो सकेगी । कविता में अत्युक्ति और निरा भाटपन न हो । यो तो बिना कुछ नमक मिर्च मिलाए कविता होती हो नही" । चौखम्बा, बनारस हरिश्चंद्र प्रिंस आफ वेल्स के भारत आगमन संबंधी कविता के लिए कविवचन सुधा में भारतेन्दु बाबू द्वारा छपवाया गया विज्ञापन। सं० "श्री महाराजाधिराजजी ज्येष्ठ पुत्र युवराज श्रीयुत महाराजकुमार प्रिन्स आफ वेल्स आगत नवम्बर में हिन्दुस्तान में आवेंगे, इसके वर्णन में सब भाषा के कवियों की कविता एकत्र संग्रह करके पुस्तकाकार छापी जाएगी । यह सब कविता श्री महाराणी के वा कुमार के वा उनके वंश की कीर्ति में वा उनके आर्शीवाद में होगी । संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, अरबी, बंगला, गुजराती, तमिल, तेलगु इत्यादि सब भाषा की कविता इसमें सन्निवेशित हो सकेगी । कविता में अत्युक्ति और निरा भाटपन न हो, यो तो बिना कुछ नमक मिर्च लगाए कविता होती ही नहीं । इसमें जिनकी कविता छपेगी एक-एक प्रति इस पुस्तक की मिलेगी और जो लोग सहायतापूर्वक वित्ता भिजवावेंगे वे भी पुस्तक पावेंगे । जो कोई कविता मेजे, वह स्पष्ट अक्षरों में भेजे । ३० अक्टोबर के बाद कोई कविता आवैगी तो वह न छापी जायगी । यदि पत्र बेरिंग भेजे तो लिफाफे पर "राजकुमार संबंधी कविता इतना लिख दें और कविता बहुत लम्बी चौड़ी भी न हो। कविता चुनने का अधिकार हमने अपने हाथ में रखा है । हरिश्चन्द्र काशी पश्चिमोत्तरदेशै "मार्गशीर्ष महिमा' पुस्तक के विषय में किया गया विज्ञापन -सं० चतुवर्ग को मोखादिक पाने का बहुत सहज उपाय:- हम लोग माघ, वैशाख, कार्तिकादि महीने को अति पवित्र जानकर स्नानादि करते हैं परन्तु हम लोग नहीं जानते कि एक महीना जो इन सबों से महापुनीत और थोड़े साधन में बहुत फल का देनेवाला है, बच गया है और उसमें हम लोग कुछ स्नानादि नहीं करते जिसकी प्रसिद्धि के वास्ते हम बड़े आनंद से यह इश्तहार देते हैं। "वह गोप्य मास जिसका माहात्म्य सब शास्त्रों में बड़े आदर से कहा गया है मार्गशीर्ष अर्थात अगहन का महीना है, जिस के गुण गान करने से महात्मा लोग तृप्त नहीं होते और यह महीना सब महीनों का राजा और भगवान का स्वरूप है जैसा कि आपने श्रीमद्भगवत गीता में और श्री भागवत एकादश स्कंध में आज्ञा की है । और श्री कुमारिकागणों ने इसी के स्थान से श्रीकृष्ण को पाया था और स्कन्दपुराण में इस की बड़ी स्तुति लिखी है यथा "सर्वयज्ञेषु यत्पुण्यं, सर्वतीर्थेषु यत्फल ।। सहसाप सहसाप्रीति तत्सर्वम्मार्गशीर्षे कृते सुन ।।१।। यथाध्ययनदानाद्यैस्सर्वतीर्थावगाहनैः । सन्यासेन च योगेन नाहम्वश्यो भवामि च ।।२।। स्नानेन दानेन च पूजनेन होमे विधाने तप आदितश्च । वश्यो यथा मार्गशिरे स्वमासि तथा न चान्येषुहि गर्ममुक्ता ।।३।। मार्गशीर्षन्न कुर्वन्ति ये नराः पापामोहिताः । पापरूपा हि ते ज्ञेयाः कलिकाले भारतेन्दु समग्र १०९६