पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११५१

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wkams WAON और महानुभाष) १३ मित्र रामदास (2) १४ वाया जी ( १) १५ विट्ठल भट्टजी (बड़े विद्वान और भावुक 40 वक्ता थे) १६ गोरजी (प्रसिद्ध तीर्थोद्धारक गोरजी दीक्षित) १७ रामचन्द्र पंत (१) १८ रघुनाथ जी (जम्बू राजगुरु बड़े विान और गुणी थे) १९ शीतल जी (काशी गवर्मेण्ट कालिज के सुप्रसिद्ध अध्यापक, पण्डित मण्डली में मुख्य और संस्कृत हिन्दी के कषि) २० बेचनजी (गपन्र्मेण्ट कालिज के प्रधानाध्यापक, पण्डित मात्र इन्हें गुरुषत् मानते थे और अग्नपूजा इनकी होती थी, महान विज्ञान और कवि थे) २१ वीसूजी (काशी के प्रसिद्ध रईस, परम वैष्णव और सत्संगी) २२ चिन्तामणि (कवि-वचन-सुधा के सम्पादक) २३ राघवाचार्य (बड़े गुणी थे) २४ ब्रह्मदत्त (परम विरक्त आइमण थे) २५ माणिक्यलाल (अथ डिप्टी कलकटर है) २६ रामायण शरण जी (बड़े महानुभाव थे, समग्न तुलसीकृत रामायण कठ थी, पचासो चेले लिए रामायण गाते फिरते थे, बड़े सुकठ थे, काशिराज बड़ा आदर करते थे, काशी के प्रसिद्ध माहत्माओं में थे) २७ गोपालदास २८ धन्दापन जी २९ बियरी शाल जी ३० शाह फुन्दन लाल जी (शाह कुन्दन लाल जी के भाई, बड़े महानुभाव थे) ३१ पण्डित राधाकृष्ण लाहौर (पञ्जाब केशरी महाराज रजीत सिंह के गुरु पण्डित मधुसूदन के पौत्र, लाहोर कालिज के चीफ पण्डित) ३२ ठाकुर गिरिप्रसाद सिंह (बसयों के राजा, बड़े विज्ञान और पैष्णव थे। ३३ श्री शालिग्रामदास जी लाहौर (पञ्चाय में प्रसिद्ध महात्मा हुए हैं. सुकवि थे) २४ श्री श्रीनिवासदास लाहौर ३५ परमेश्वरी दत्त जी (श्रीमद्भागवत के प्रसिद्ध वक्ता थे) २६ षायू हरिकृष्णदास (श्री गिरिधर चरितामृत आदि ग्रन्थों के कता) ३७ भ्री मोहन जी नागर ३८ श्री बलवन्त राव जोशी ३९ व्रजचन्द्र (सुकवि है) ४० छोटू लाल (हेड मास्टर हरिश्चन्द्र स्कूल) ४१ रामजी । तदीय समाज ने भारतेन्तु को तदीयनामांकित' "अनन्य वीर वैष्णव' की पदवी दी थी जिसके लिन्हें उन्हें नीचे लिखा प्रतिज्ञा पत्र भी लिखना पड़ा था। -सं० ५. वैष्णव में ६. "हम हरिश्चन्द्र अगरवाले श्री गोपालचन्द्र के पुत्र काशी चौखम्भा महल्ले के निवासी तदीय समाज के सामने परम सत्य ईश्वर को मध्यस्थ मानकर तदीय नामांकित अनन्य वीर वैष्णव का पद स्वीकार करते हैं और नीचे लिखे हुए नियमों का आजन्म मानना स्वीकार करते है। १. हम केवल परम प्रेम मय भगवान श्री राधिका रमण का भी भजन करेंगे। बड़ी से बड़ी आपत्ति में भी अन्यानय न करेंगे हम भगवान से किसी कामना के हेतु प्रार्थना न करेंगे और न किसी और देवता से कोई कामना चारो ४. जुगल स्वरूप में हम भेद दृष्टि न देखेंगे । में हम जाति बुद्धि न करेंगे वैष्णव के सम आचार्यों में से एक पर पूर्ण विश्वास रक्खेंगे परन्तु दूसरे आचार्य के मत विषय में कभी निन्द वा खण्डन न करेंगे किसी प्रकार की हिंसा वा मांस भक्षण कभी न करेंगे किसी प्रकार की मादक वस्तु कभी न सायगे न पीयेंगे श्री मदभगवद्गीता और श्री भागवत को सत्य शास्त्र मानकर नित्य मनन शीलन करेंगे । महाप्रसाद में अन्न बुद्धि न करेंगे अपने प्रभु और आचार्य पर दृढ़ विश्वास रखकर शुद्ध भक्ति के फैलाने का उपाय करेंगे। १२. वैष्णव मार्ग के अविरुद्ध सब कर्म करेंगे और इस मार्ग के विरुद्ध प्रौत स्मात वा लौकिक कोई कर्म न करेंगे। 03 १३. यथा शक्ति सत्य शौच दयादिक का सर्वच पालन करेंगे। ९. १०. हम आमरणान्त ११. विविध ११०५