पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

जिनकों आयुस दई मदनमोहन गनि प्रभ. कनगुनि प्रभु-जन । । अन्य मारगी मित्र इक छन्त्री सेवक अति बिमल बाहिर मुहिं पधारउ काढिहाँ गुप्त इतै बन । । | अन्य मारगी भवन नेह बस गए एक दिन । मथुरा त निकसाइ तुरत बाहिर पधराये। किये पाक तेहि ठाकुर आगे नाथ अरपि तिन । पुनि श्री गोपीनाथ सिंहासन पै बैठाए। भोग सराये ताहि लिवाये लिय आपो पुनि । तातें दरसन करि सबै सहजहि अभिमत फल लाई। र माह आभमत फल लहे। भूषे ठाकुर ताहि जगाय कही सब सों सुनि । नरायनदास भाट जाति मथुरा में निवसत रहे ।१४७ परभाव जानि या पंथ को भयो सरन सोऊ विकल । नारिया नरायनदास मे सरन प्रभुन के अनुसरे। अन्य मारगी मित्र इक छत्री सेवक अति बिमल ।१५३ अन्य मारगा मित्र पातसाह ठट्ठा के ये दीवान हेत हे। चित लघु पुरुषोत्तमदास के गुरु ठाकुर मैं भेद नहिं । दसह दंड में परि नित पाँच हजार देत हे। श्री आचारज महाप्रभुन-पद रति रस-भाने । रूपये लाख पचास भरन लौ केद किये तिन । |आपै के गन प्रवन कीरतन सुमिरन कीने । इक दिन के द्वै गुर-भाइन को देइ दिये जिन ।। आपै कह आतम अरपे सेव पूजे जन । छटि पातसाह सो सांच कहि सहस मुहर प्रभ-पदधरे। | सषा दास आपहि के बंदे आपहि को इन । नारिया नारायनदास भ सरन प्रभुन के अनुसरे ।१४८ आपह जिनकों अति हो चहे भक्ति भाव धरि जीय महिं। छन्त्रानी एक अकेलियै सीहनंद मैं बसत ही। चित लघु पुरुषोत्तमदास के श्री नवनीत-प्रिया की करति अकिंचन सेवा । गुरु ठाकुर मैं भेद नहिं ।१५४ तरकारी हित सिसु लौ झगरत जासों देवा । कविराज भाट श्रीनाथ कों नित नव कबित सुनावते । माया विद्या अन-सषड़ी सषड़ी के त्यागी । तीनों भाई नाम पाइक किये निवेदन । भावहि भूषे घी चुपरी रोटिहि अनरागी। नाथ निकट बह कबित पढे पभु भये मुदित मन । माया विसिष्ट प्रगटत सदा प्रेमहि तें प्रभु तुरत ही। धनि धनि धनि वे कबित धन्य वे धन्य भगति जिन । छात्रानी एक अकेलिये सीहनंद मैं बसत ही ।१४९ | धनि धनि धनि श्री प्रभुन नाम उदारन अगतिन । कायथ दामोदरदास जिन श्री कपूररायहि भज्यौ । किय कबित अनेकनि प्रभुन के सदा प्रभुन मन भावते। जिनकी जुबती हुती बीरबाई प्रसूतिका । कविराज भाट श्रीनाथ कों नित नव कबित सुनावते।१५५ श्री ठाकुर-सेवा की सोई सुचि बिभूतिका । गोपालदास टोरा हुते अति आसक्त प्रभून पै। नई सतको में सवा चासो प्रभु पावन । मार्कण्डे पूजत ह प्रभु निज जन्मात्सव दिन । सेवक प्रभुन स्वरूप हात नहि कबहूँ अपावन । इक दिन आगे आये हे गाये पद तेहि छिना नहिं आतम सुद्धासुद कहुं सोह प्रभु सोइ सेवक सज्यौ। | सुनि माधव में वल्लभ हरि अवतरे दास मुष । कायथ दामोदरदास जिन श्री कपूररायहि भज्यौ ।१५० कृष्ण-भगति मुद मगन भये तकि ज्ञानादिक सूप । छत्री दोउ स्त्री पुरुष हे रहे आइ सिहनंद में। बहु छंद प्रबंध प्रवीन ये बारे रसिक दुहुन पै। निपटै लघु घर हुतो मेड़ ठाकुर पौढ़ाए । गोपालदास टोरा हुते अति आसक्त प्रभून पै ।१५६ जिनके डर सों सोवत निसि आँगन सचुपाए । जनार्दनदास छत्री भये सरन पून बिस्वास तें। पावस रितु में भीजत जानि पुकारि कही सुनि । दरसन करत प्रभुन पूरन पुरुषोत्तम जाने । घर मैं सोवहु भीजो मति न करो ऐसो पुनि । | करी बिनय कर जोरि सरन मोहिं लेहु सुजाने । तौऊ सांस न पावे वजन सोये जा आनंद में। आपोआज्ञा दई न्हाइ आवो ते आये। छत्री दोऊ स्त्री पुरुष हे रहे आइ सिहनंद में ।१५१ | पाइ नाम पुनि किये समर्पन अति चित चाये । ये सन्निधान श्रीनाथ के न्यारे हवै भव-पास तें। श्री महाप्रभुन सूतार घर श्रम पिछानि पग धारते । जनार्दनदास छत्री भये सरन पून बिस्वास तें ।१५७ प्रभुन दरस बिन किये रहे नहिं जे एको दिन । छुटे सकल गृह-काज भये घर के सब सुष बिन ।। गुडुस्वामी ब्रह्म सनोडिया प्रभुन सरन भे प्रभ करे। याही तें प्रभु आपै आवत हुते सदन जिन । | गये प्रभुन पैं न्हाइ दंडवत करी बिनय के ४ बहुत बारता करत हुते धनि जिनसों अनुदिन । | कही सरन मोहिं लेहु नाथ अब देहु अभय की * पै दिन चौथे पचयें कछु जननी रिस जिय धारते। | कही आप मुसिकाय कही स्वामी किमि सेवक Saश्री महाप्रभुन सूतार घर श्रम पिछानि पग धारते ।१५२ पुनि तिन बन्दन करी कही आज्ञा मुहिं देवकी " 48जमय क। उतराहर्द भक्त्तपाल ७७