पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११८

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बालहि नाम सेवकनि सहित निज किये निवेदन मुद लहे। | प्रभ आयस् ते आरस-गत अति आनंद बाढ़े 15 गडुस्वामी ब्रह्म सनोडिया प्रभुन सरन भे प्रभु कहे।१५८ | ठाकर सेवक कह दंड दै बादि विरह मैं तन दहे ।। कन्हैया साल छत्री जिन्हें प्रभुन पढ़ाए ग्रंथ निज । गोपालदास जटाधारी नाथ खवासी करत हे ।१६४ श्रीमद्गोस्वामी जू जिन सों पढ़े ग्रंथ बहु । सति धर्म मूल तिय बनिक-गृह कृष्णदास पहुँचाइयो । इनकी कहा बड़ाई करिये मुख अति ही लहु । वैष्णव धर्म अकिंचनता तेहि प्रगटहि दिखाई। प्रम दास्य बिस्वास रूप ये नीके जानत । जिनकी तिय करि कौल बनिक सों सीधो लाई । श्री हरि गुरु की भगति भाव करिकै पहिचानत । करी रसोई भोग अरपि पुनि भोग सराये । निज गमन समय राख्यो इन्हें थापन को भवपंथ निज। | बहरि अनौसर करकै सब वैष्णवनि जिवाये । कन्हया साल छत्री जिन्हें प्रभुन पहाए ग्रंथ निज ।१५९ | लषि ज्ञानचन्द पै प्रभु-कृपा आपुहि कौल चिताइयो । गौड़िया सु नरहरदास जू प्रभु-न-कृपा पाये सुपद । सति धर्म मूल तिय बनिक-गृह जिन घर बैठे पाट मदन-मोहन पिय प्यारे । कृष्णदास पहुंचाइयौ ।१६५ सोये सहित सनेह जानि प्रेमहिं पर वारे । | श्री गोस्वामी के , श्री गोस्वामी के प्रान-प्रिय संतदास छन्त्री रहे । पुनि पधराये श्री गोस्वामी पैं यह गुनि जिय । श्री हरि-पदरा श्री हरि-पद अरबिंद मरंद मते मिलिंद में । ये सुष पैहैं यहीं लाल हैं इनहीं के प्रिय । | गावन में हरि-चरित गावन में हरि-चरित मौन में अति अमंद ये। पुनि गोस्वामी पधरायो श्रीरघुनाथ-सदन सुषद । | अन-आश्रय अस वैष्णव-धन विष जिनहि बिषह तें । गौड़िया सु नरहरिदास जू प्रभु न कृपा पाये सपद ।१६० याही तें ये हुते नियारे द्वंद दुपहु ते । बादा श्रीप्रभु की कृपा तें दास बादरायन भये ।। कौड़ी बेंचत हे ढाइयै पैसनि हित अधिक न चहे । आछे भट तें सुने भागवत नाम पाइ के । श्रीगोस्वामी के प्रान-प्रिय संतदास छत्री रहे ।१६६ जाते श्री रनछोर प्रभु न तहँ टिके आइ के । सुंदरदासहि के संग तें वैष्णव माधवदास भे । पाये प्रभु पैं नाम समर्पन किये गए सँग । माधवदास कृष्ण चैतन्य-सुसेवक दृढ़मति । दरसन करि पुनि आइ मोरबी रंगे प्रभुन रँग । जाको भोग समर्पित पावत प्रेत दुष्ट अति । पुनि रहे तहैं आयसु प्रभुन आपुन श्रीगोकुल गये। । पै तिहि दृढ़ बिस्वास जु श्री ठाकुरै अरोगत । बादा श्रीप्रभु की कृपा तें दास बादरायन भये ।१६१ श्री आचारज प्रभुन निदि सो लह्यौ दंड द्रुत । नरो सुता तिय आदि सब सद् मानिकचंद की ।। अपराध आफ्नो जानि के महाप्रभुन की आस भे । देवदमन जिन सदन पियत पय नरो पियावति । सुंदरदासहि के संग तें वैष्णव माधवदास भे ।१६७ जात कटोरो भूलि ताहि मुषियहि दै आवति । बिरजो मावजी पटेल दोउ वैष्णव ही हित अवतरे । मागि प्रभुन सों गाय नाम गोपाल धराये । । श्री गोकुल द्वै बेर साल में सदा आवते । निज प्रागट्य जनाइ प्रभुन तिन गृह पधराये । गाड़ा गाड़ा गुड़ घृत सौंजनि सहित लावते । प्रभु कृपापात्र सुचि भगवदी मूरति ब्रह्मानंद की। । एक पाष श्री गोकुल इक श्रीनाथद्वार रह । नरो सुता तिय आदि सब सद् मानिकचंद की ।१६२ | खिरक लिवावत भोग समर्पित सब ग्वालिनि कह । सन्यासी नरहरदास पै सुगुरु-कृपा अतिसय हुती । पुरुषोत्तम खेतहि वैष्णवनि सबै लिवाए मुद भरे । एक समै श्री महाप्रभू द्वारिका पधारे । बिरजो मावजी पटेल दोउ वैष्णव ही हित अवतरे।१६८ बेना कोठारिहु लै एऊ संग सिधारे । गोपालदास रोड़ा दिये नाम दान प्रभु के कहे । तहाँ विनय करि किये सुसेवक सरन प्रभुन के । एक समै गोपालदास श्रीनाथहिं आये । जिनके सरनागत पै बस नहिं चलत तिगुन के। आयो ज्वर = चारि भये लंघन दुष पाये । सेवा अपराधी तिगुन सिर भेद भगति यह दृढमती। | लागी प्यास कही गेवक सों सोइ गयो सो । सन्यासी नरहरदास 4 सुगुरु-कृपा अतिसय हुती ।१६३ आपुहि भारी प्याये जल दुष बिसरो सो । गोपालदास जटाधारी नाथ खवासी करत हे । श्री गोस्वामी की सीष सों प्रभुता मद रंच न रहे । ग्रीषम भोग अरोगि जामिनी जगमोहन में । गोपालदास रोड़ा दिए नाम दान प्रभु के कहे १६९४ पौढ़त जहँ श्रीनाथ स्वामिनी के गोहन में। काका हरिबंस प्रसंस मति धरम परम के हंस मे । ऑखि मींचि चहुँ जाम करत बीजन तहँ ठाढे। । श्री बिट्ठल-सुत जेहि काका सम आदर करहीं । भारतेन्दु समग्र ७८