पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

वैष्णव पर अति नेह सूअन सम नित अनुसरहीं । . भद्र गदाधर मिन गदाधर गंग गाला नाम-दान दै जगत जीव फिरि फिरि के तारे । कृष्ण-जिवन हरि लछीराम पद रचत रसाला । ठौर ठौर हरि सुजस भक्त्ति हित बहु बिस्तारे । जन हरिया घनश्याम गोविंदा प्रभु कल्याना । प्रिय कस धस के होइ के छत्रिहु वल्लभ बस भे। विचित्र-बिहारी प्रम-सखी हरि सुजस बखाना । काका हरिबस प्रसंस मति धरम परम के हंस भे ।१७० रस रसिकबिहारी गिरिधरन प्रभु मुकुंद माधव सरस। गंगा बाई श्रीनाथ की अतिहि अंतरंगिनि भई। | श्री ललितकिशोरी भाव सों जवन-उपद्रव जब श्रीप्रभु मेवाड़ पधारे । । नित नव गायो कृष्ण-जस ।१७६ मारग मैं यह साथ रहीं हिय भगति बिचारे । श्री वल्लभ आचारज अनुज रामकृष्ण कवि मुकुटमनि। जब रथ कहुँ अड़ि जात तबै सब इनहिं बुलावै।। बसत अजुध्या नगर कृष्ण सों नेह बढ़ावत । श्री जी के ढिग भेजि नाथ-इच्छा पुछवा३ । । कृष्ण-कुतूहल कहि गुपाल लीला नित गावत । श्री बिट्ठल गिरिधर नाम सों पद रचि हरि-लीला गई। दोऊ कुल को वृत्ति तिनूका सी तजि दीनी । गंगा बाई श्रीनाथ की अतिहि अंतरंगिनि भई ।१७१ | ब्याह कियो नहिं जानि सुखद हरि-पद मद भीनी । श्रीतुलसिदास-परताप तें नीच ऊंच सब हरि भजे । करि वाद पंथ थापन कियो ग्रंथ रचे नव तीन गनि । नंददास अग्रज द्विज-कुल मति गुन-गन-मंडित । श्री वल्लभ आचारज अनुज कवि हरि-जस-गायक प्रेमी परमारथ पंडित । रामकृष्ण कवि मुकुटमनि ।१७७ रामायन रचि राम-भक्ति जग थिर करि राखी । हरि-प्रेम-माल रस-जाल के नागरिदास समेर भे। थोरे मैं बहु कह्यौ जगत सब याको साखी । | बल्लभ पथहि दृढाइ कृष्णगढ़ राजहि छोड्यो । जग-लीन दीनहु जा कृपा-बल न राम-चरिर्ताह तजे । धन जन मान कुटुम्बहि बाधक लखि मुख मोड्यौ । श्रीतुलसिदास-परताप तें नीच ऊँच सब हरि भजे।१७२ केवल अनुभव सिद्ध गुप्त रस चरित बखाने । गोस्वामी बिट्ठलनाथ के ये सेवक जग में प्रगट । | हिय संजोग उच्छलित और सपनेहुँ नहिं जाने । भट्ट नाग जी कृष्णभट्ट पद्मा रावल-सुत । करि कटी रमन-रेती बसत संपद भक्ति कुबेर भे। माधोदास हिसार वास कायथ निज पितु सुत । हरि-प्रेम-माल रस-जाल के नागरिदास सुमेर भे।१७८ बिट्ठलदास निहालचंद श्रीरूपमुरारी । हिय गुप्त बियोगहि अनुभवत बड़े नागरीदास है । रूपचंद नंदा खत्री भाइला कुठारी । बार-बधू ढिग बसत सबै कठ्ठ पीयो खायो । राजा लाखा हारदास भाइ जलोट हरि नाम रट । | पै छनहूँ हिय सों नहिं सो अनुभव बिसरायो । गोस्वामी बिट्ठलनाथ के ये सेवक जग में प्रगट ।१७३ | सुनतहि बिट्ठल नाम भक्त-मुख श्रवन मंझारी । गोस्वामी बिट्ठलनाथ के ये सेवक हरि-चरन-रत । प्रान तज्यो कहि अहो तिनहिं सुधि अजहुँ हमारी । कृष्णदास कायस्थ नरायनदास निहाला ।। दरसन ही दै हरिभक्त अपराध कुष्ट जन दुख दहे । ज्ञानचंद्र ब्रह्माणी सहारनपुर के लाला । | हिय गुप्त बियोगहि अनुभवत बड़े नागरीदास हे ।१७९ जन-अर्दन परसाद गोपालदास पाथी गनि । | श्री वृंदाबन के सूर-ससि उभय नागरीदास जन । मानिकचंद मधुसूदनदास गनेस ब्यास पुनि। । निज गुरु हित हरिबस कृष्ण-चैतन्य चरन-रत । जदुनाथ दास कान्हो अजब गोपीनाथ गुआल सत । | हरि-सेवा में सुदृढ़ काम क्रोधादि दोषगत । गोस्वामी विट्ठलनाथ के ये सेवक हरि-चरन-रत ।१७४ अदभुत पद बहु किये दीन जन दै रस पोषे । हित रामराय भगवान बलि हठी अली जगनाथ जन । | प्रभ-पद-रति विस्तारि भक्तजन मन संतोषे । कही जुगल रस-केलि माधुरीदास मनोहर । दृढ़ सखी भाव जिय में बसत समनेहुँ नहिं कहुँ और मन। बिट्ठल बिपुल बिनोद बिहारिनि तिमि अति सुंदर । श्री वृंदाबन के सूर-ससि उभय नागरीदास जन ।१८० रसिक-बिहारी त्यौंही पद बहु सरस बनाए । इन मुसलमान हरि-जनन पै कोटिन हिंदुन वारियै । तिमि श्री भट्टहु कृष्ण-चरित गुप्तहु बहु गाए। आलीखान पठान सुता सह ब्रज रखवारे । कल्यानदेव हित कमल-दृग नरबाहन आनंदघन । सेख नबी रसखान मीर अहमद हरि-प्यारे । हित रामराय भगवान बलि हठी अली जगनाथ जन ।१७५ निरमलदास कबीर ताजखाँ बेगम बारी । श्री ललितकिशोरी भाव सों नित नव गायो कृष्ण-जस। | तानसेन कृष्णदास बिजापुर नृपति-दुलारी।। उतराहर्द भक्तमाल ७९