पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१२०

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पिरजादी बीबी रास्ती पद-रज नित सिर धारिये। | हरि-मंदिर अति रुचिर बहुत धन दै बनवायो । इन मुसलमान हरि-जनन पै कोटिन हिंदुन वारियै ।१८१ | साधु-संत के हेत अन्न को सत्र चलायो । बाबा नानन हरि-नाम दे पंचन दहि उदार किय। जिनकी मृत दहहु सब लखत नव-रज लाटन फल लह। ए बार बार निज सौंज साधुचन लखत लुटाई। लाला बाबू बंगाल के बूंदाबन निवसत रहे ।१८६ बेदी बस प्रसंस प्रगटि रस-रीति दृढ़ाई । कुल अग्रवाल पावन-करन कुंदनलाल प्रगट भये । गुप्त भाव हरि प्रियतम को निज निज हिये पुरायो । | प्रथम लथनऊ बसि श्री षन सों नेह बढ़ायो । गाइ गाइ प्रभु-सुजस जगत अघ दूरि बहायो । तह श्री युगल सरूप थापि मंदिर बनवायो । जग ऊंच नीच जन करि कृपा एक भाव अपनाइ लिय। | द्वापर को सुखरास कलियुग में कीनी। बाबा नानक हरिनाम दे पंचनदहि उद्धार किय ।१८२ | सोइ भजन आनंद भाव सहचरि रंग भीनी । कवि करनपूर हरि-गुरु-चरित करनपूर सबको कियो । । लाखन पद ललित किशोरिका नाम प्रगटि बिरचे नए। सेन बस श्री शिवानंद सुत बंग उजागर । कुल अग्रवाल पावन-करन कुंदनलाल प्रगट भए ।१८७ सुर-वानी मैं निपुन सकल रस के मनु सागर । गिरिधरनदास कवि-कुल-कमल वैश्य वंश भूषन प्रगट। अति छोटे तन गुरु महिमा करि छंद बखानी । भाषा करि-करि रचे बहुत हरि-चरित सुभाषित । जननि गोद सों किलकि हँसे निज गुरु पहिचानि । दान मान करि साधु भक्त मन मोद बढ़ायो । परमानंद सों चैतन्य ससि नाम पलटि दूजो दियो । सब कुल-देवन मेटि एक हरि-पंथ दवायो कषि करनपुर हरि-गुरु-चरित करनपुर सबको कियो।१८३ लक्षावधि पंधन निरमये श्री वल्लभ विश्वास अट। गिरिधरनदास कवि-कुल-कमल । बनमाली के माली भए नाभा जी गुन-गन-गथित । वैश्य वंश-भूषन प्रगट ।१८८ नाम नरायनदास विदित हनुमत कुल जायो ।। अग्र कीलह गुरु-कपा नयन खोयोह पायो । | यह चार भक्त पंजाब में चार बेद पावन भए । गुरु आयसु धरि सीस भक्त-कीरति जिन गाई। | श्री रामानुज बूद हरिचरन बिन सब त्यागी। भक्तमाल रस-जाल प्रम सों गुथि बनाई। भाई सिंह दयाल भजन मैं अति अनुरागी । नित ही नव-रूप सुबास सम सुमन-संत करनी कथित । | कविवर दास अमीर कृष्ण-पद मैं अति पागी । बनमाली के माली भए नाभा जी गुन-गन-गथित १८४] मयाराम रसरास ललित प्रेमी बैरागी । ये भक्तमाल रस-जाल के टीकाकार उदार-मति । | श्री हरि के प्रम प्रचार-हित जिन उपदेस बहुत दये । कृष्णदास बंगाल कृष्ण-पद-पदुम रत। यह चार भक्त पंजाब में चार बेद पावन भए ।१८९, प्रियादास सुखदास प्रिया जुग चरन कुमुद नत । ललितलालजी दास एक औरहु कोउ लाला । श्रीभक्त रत्नहरिदास जू पावन अमृतसर कियो । लाल गुमानी तुलसिराम पुनि अग्गरवाला । क्षत्रिय बंश गुलाबसिंह-सुत मत रामानुज । परतापसिंह सिधुआपती भूपति जेहि हरि-चरन-रति। मानिट हरि-चान-रति। | रामकुमारो-गर्भ-रत्न त्यागी-मंडल-धुज । ये भक्तमाल रस-जाल के टीका उदार-मति १८५ सुबसु बेद बसु चंद आठ कातिक प्रगटाए । श्री हरि-महिमा ग्रंथ ललित बत्तीस * बनाए । लाला बाबू बंगाल के बृदावन निवसत रहे। छोडि सकल धन-धाम बास ब्रज को जिन लीनो । रणजीत सिंह नप बहु कयौ तदपि नाहिं दरसन दियो। मागि मागि मधुकरी उदर पुरन नित कीनो। श्री भक्त्त रत्नहरिदास जू पावन अमृतसर कियो ।१२०

  • श्री रघुनाथ के परम भक्त अति रसिक विद्वजन मान्य महानुभाव श्री रत्नहरिदास जी ने ३२ ग्रंथ नवीन बनाये हैं । तिन ग्रयों में प्रति पद जमक अनुप्रासादि अलंकार भरे है और वर्णमैत्री की तो प्रतिज्ञा है कि एक पद वर्णमैत्री बिना नहीं होगा । तथा उनके पढ़ने से अत्यानंद प्रगट होता है कि कथन में नहीं आता । जो पुरुष सुनते हैं, वही मोहित हो जाते हैं । १. रामरहस्य । चौथाई जेहादि, छंदों में बाल्यलीला रघुनाथजी की श्लोक ५०००।२. प्रष्णोत्तरी । दोहा ४० शुक्र-प्रोक्तप्राणोत्तरी की भाषा है ।३. रामललामललित पद छदों में रामायण है । श्लोक ६००० राम कलेवा प्रथवत् । ४. सार संगीत - उक्त छंदों में श्लोक ६००० भागवत की कथा । ५. नानक-चंद्र-चद्रिका - चौपाई दोहादि छेदों में श्री नानक शाह का जीवन चरित वर्णन ।६. दाशरथी दोहावलीदोहा ११०० रामायण है अति चमत्कार युत । ७. जगकदमक दोहावली - दोहा १२५ प्रति दोहा में ४ जमक हैं । ८. गूढार्थ दोहावली - दोहा १०० फुटकर है। २. एकादशस्कंध-भागवत काचौपाई दोहा में । १०. कौशलेश कवितावली-कवित्त १०८ रामायण क्रम से । ११. गुस-कीरति कवितावली -१०८ नानक शाह का चरित्र है । १२. कुसुमक्यारी-कवित्त ३६,

र CHAR भारतेन्दु समग्र ८०