पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१२७

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of तुम जागे हमहूँ निसि जागे तिय सँग जोहत बाट । | श्रीवल्लभ-बिट्ठल बिनु दुजो नेह निबाहन हार नहीं । खरे बिताई निसि हम दोउन मनवत पकरि कपाट । | साधन बृथा न करू मन लपट भूलि बुद्धि क्यों जात बही।। सिथिल बसन तुमरे औ हमरे भोगत पछरा खात । कोऊ कछ काम नहिं ऐहै क्यों डोलत करि मही-मही। थाकी गति दोउन की आलस इत उत आवत जात । दीनन के हित नाहिंन दूजो यहै बात करि सपथ कही। असनारे दुग अंजन फेल्यो विलसत होइ हरास । 'हरीचंद' ये अधम-उधारन अरे यही इक यही-यही ।५० टूटे बन्द कहा कंचुकि के लपटत लेत उसास । चिर जीयो मेरो श्रीवल्लभ-कुल । हम तुम एक प्रान मन दोऊ यामैं कछु न भेद । माया मत खर तिमिर दिवाकर 'हरीचंद' देखहु बिन श्रम सों दोऊ के मुख स्वेद ।४४ प्रेम अमृत पय रस सागर-पुल । कलि खल-गन-उद्धरन रसिक-जन ईमन सरन-करन विरहिन बिरहाकुल । 'हरीचंद' दैवी जन प्रियतम गोरी-गोरी गुजरिया भोरी कान्हर नट के संग पतित-उतरन महिमा अन-तुल ।५१ ____ ललित जमुन-तट-नव बसंत करि होरी । श्रीवल्लभ प्रभु मेरे सरबस । सोभा सिन्धु बहार अंग प्रति दिपति देह दीपक सी छबि अति मुख सुदेस ससि सोरी। | पचौ बृथा करि जोग जाय कोउ हमको तो इक यहै परम रस । आसा करि लागी पिय सों रट पंचप सुर गावत ईमन हट मेच बरन 'हरिचंद' बदन अभिराम करी बरजोरी। | हमरे मात पिता पति बंधू सारँगनैनि पहिरि सुहा सारी भयो कल्यान हरि गुरु मित्र धरम धन कुल जस । मिले श्री गिरिधारी छवि पर जन तन तोरी ४५| 'हरीचंद' एकहि श्रीवल्लभ तजि सब साधन भए इनके बस १५२ प्यारे की छबि मनमानी सिर मोर मुकुट ___नट भेख धरे मेरे घर आए दिलजानी । गीत चतुर खिलारी गिरिधारी हँसि हँसि गर लाए बना मेरा ब्याहन आया बे। मन भाए 'हरिचंद' न सुरत भुलानी ।४६ बना मेरा सब मन-भाया बे। प्यारी जू के तिल पर बलि बलिहारी । बना मेरा छैल छबीला बे । जा मिस बसत कपोल न अनुछिन लघु बनि पिय गिरधारी। बना मेरा रंग-रंगीला बे। पिय की दीठ चीन्ह मनु सोहत लागत अति ही प्यारी । बनरा रंगीला रँगन मेरा सबन के दृग छावना । 'हरीचंद' सिंगार तत्व सी लखि मोहन मनवारी ।४७ सुंदर सलोना परम लोना श्याम रंग सुहावना । कहु रे श्रीवल्लभ-राजकुमार। अति चतुर चंचल चारु चितवन जुवति-चित्त-चुरावना। दीन-उधारन आरति-नासन प्रगट कृष्ण अवतार । व्याहन चला रंग-रस-रला जसुमति-लला मन-भावना। काहे तु भरमायो डोलत साधन करत हजार । बना के मुख मरवट सोहै बे। यह भव-रुष क्यौंह नहिं जेहे बिना चरन-उपचार । बना देखन मन मोहै बे। कौन पतित सो प्रेम निबहिहै जो बहु अघ-आगार । बना केसरिया जामा बे। अति-पुरान कछु काम न ऐहें यह तोहिं कहत पुकार । बना लखि मोहत कामा बे। बरे दिनन को साथी नहिं कोउ मात-पिता-परिवार । लखि कान मोहै श्याम छबि पर लखत सुंदर जेहरा । हरीचंद' तासों बिट्ठल भजु अरे यहै श्रुति-सार ।४८ | सिर जरकसी चीरा भुकाए खुला तिस पर सेहरा । - जौ पैं श्रीवल्लभ-सुतहिं न जान्यौ । कटि ललित पटुका बंधा सूहा सुभग दोहरा तेहरा । कहाँ भयो साधन अनेक मैं परिकै बृथा भुलान्यौ। जियमें हमारी नवल दुलहिन-हेत धरे सनेहरा । बादि रसिकता अरु चतुराई जौ यह जीअ न आन्यौ । बना के नैना बाँके बे। मरयो बूथा बिषया रस लंपट कठिन करम मै सान्यौ । बने दोनों मद छाके बे। सोई पुनीत प्रीति जेहि इनसों बृथा बेद मथि छान्यौ । बना की भौंह कमानै बे। 'हरीचंद' श्रीबिट्ठल बिनु सब जगत भूठ करि मान्यौ।४९ बनी का हिअरा छानै बे। पतित-उघारन नाम सही। छाने बना का नवल हिअरा भौंह बाँकी प्यार की। 034K प्रम-प्रलाप ८७