पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१३१

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होइ कुल-नारी ऐसी बात क्यों बिचारी यामें देखि कै काली कराली महा डरि प्रति अघ भारी यह कहत पुकारी हौं । बुद्धि न ता पद माहि धंसी है। यही करनी है जो तो खोजी कोऊ धनी बली लक्ष्मी के बहु वैभव चाहि न हो तो निज नारि के बियोग में दुखारी हौं । लालच में अति मेरी फंसी है। 'हरीचंद' याही सों सुदामा बतरात इमि त्यों 'हरीचंद' सरस्वति सेइ न ___ छाँडौ मेरो हाथ ना तो दैहों शाप भारी हौं । ज्ञान के ध्यान न मैं हुलसी है । द्वारिका में जाइ कै पुकारिहौं हरिहि मोहि चाकर हैं ब्रज साँवरे के काहे दुख देत मैं तौ बाम्हन भिखारी हौं ।६९ जिन टेंटिन ऊपर फेट कसी है ।७३ कितै गई हाय मेरी कुटिया परन छाई जो बिनु नासिका कान को ब्रह्म है साढ़े तीन पादहू की खटियौ कहा भई । ता दिसि बुद्धि न नेकु धंसी है। कितै गए जनम के जोरे माटी-भाँड मेरे निर्गुन जौन निरंजन है छबि ताकी ____ सहसन ट्रक की कथरिया कितै गई। न या जिय माहिं धंसी है। हरीचंद' कहत सुदामा बिलखाई इत त्यों 'हरिचंद जू' सीस सहन के लाई किन राशि मनि-कंचन महामई । देव मैं इच्छा न नेक गैसी है। और जो गयो तो सहि जैहों कोऊ भाँति पै चाकर हैं ब्रज साँवरे के जिन बताओ कोऊ हाय मेरी बाम्हनी कहाँ गई ।७० टेटिन ऊपर फेट कसी है ।७४ परन-कुटीर मेरी कहाँ बहि गयी इत छोटे हैं छोटिहि बात रुचै मोहि कंचन महल ऊँचे ठाढ़े हैं महा विचित्र । यासों न जाल में बुद्धि फंसी है। मृत्तिका के भाँडद्र बिलाने मेरे कंथा सह गुंज हरा परे देखि नरामधि टूटी पटरी मैं धरी पोथी हु गई पवित्र । दृष्टि तहीं मम जाय धंसी है। 'हरीचंद' नारिह को खोज ना मिलत कहूँ त्यो 'हरिचंद जू' मोर-पखौअन रोअत सुदामा हाय कैसो भयो है चरित्र । गौअन देखि महा हुलसी है। | मिलन सों रह्यौ-सह्यौ घरह उजारौ वाह चाकर हैं ब्रज साँवरे के जिन द्वारिका के नाथ भली मित्रता निबाही मित्र ।७१ टेटिन ऊपर फेट कसी है ।७५ फल दियो भीलनी अजामिल उचार्यो नाम लोचन चारु चकोरन को सुख-दायक गिद्ध कियो बुद्ध, गज कलिका चढ़ाई है। नायक गोप ससी है। गोपी-गोप नेह कीनो केवट चरन धोयो होत हियो हरियारो बिलोकत सेवा करी भील कपि रिपु सों लराई है। कंठ हरा हरि के तुलसी है। 'हरीचंद' पद को परस मुनि-नारि लह्यो पालक हैं 'हरिचंद' को तौन जो ___गनिका पढ़ावत सुवा को नाम गाई है।। नंद को बालक लोक जसी है। इनके न एकौ गुन औगुन सबै के मोमैं चाकर हैं ब्रज साँवरे के जिन एतेह पै तारौ सबै आपु की बड़ाई है ।७२ टेटिन ऊपर फेंट कसी है ।७६ Santee प्रेम-प्रलाप ९१