पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१३२

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mo . गीत-गोविंदानंद [हरिश्चन्द्र चन्द्रिका खं. ५-६.नवम्बर १८७७ से अक्टूबर १८७८ के बीच प्रकाशित ] गीत-गोविंदानंद | जी हरि सुमिरन होइ मन, जो सिंगार सो होत । दोहा तो बानी जयदेव की, सुनु सब सुगुन-निकेत ।११ भारत नेह तव नीर नित बरसत सुरस अथोर । । सवैया जर्यात अलौकिक घन कोऊ लाख नाचत मन मोर 18| बेद-उधारन मंदर-धारन भूमि उबारन हबै बनचारी । रसिक-राज बुध-वर विदित प्रेमी प्रिय-पद-सेव । दैत बिनासी बलि के छलि राधा-गुन-गायक सदा मधु-बच जिय जयदेव ।२ छय-कारक छत्रिन के असुरारी । कह कविवर जयदेव-बच कह मम ति अति हीन । | रावन-मारन त्यों हल-धारन पै दोउ हरि-गुन-गामिनी ह हित यह सम कीन ।३ | वेद निवारन म्लेच्छ-सुदारी । रसिकरात्र जयदेव की कविता को अनुवाद । यो दस रूप-विधायक कृष्णाह कियो सबन पै नहिं लड्यौ तिनमें तीन सवाद ।४] कोटिन्ह कोटिप्रनाम हमारी ।१२ मेटन को निज जिय खटक उर धरि पिय नंदनंद ।। तिनहीं के पद-बल रच्यौ यह प्रबंध हरिचंद ।५ राग सोरठ जय जय राधा हरि-राधा-रस-केलि । १० जिमि बनिता के चित्र में नहिं कछु हास-बिलास । । तरनि तनूजा-तट इकत में बाहु बाहु पर मेलि । ध्रुव पै जेहि सो प्रिय सो लहत वाहू मै सुखरास ।। एक समैं हरि नंदराय संग रहे बाट मैं जात । सहि गीत-गुविंद अति सरस निरस मम गीत । तितही श्री राधा सुख-साधा आइ कढ़ी हरखात । पै जिन कहँ प्रिय तौन ते करिहैं यासों प्रीत ।७ हरि-माया करि मेघ बुलाए छाए घेरि अकास । मंगलाचरण साँझ समय भुव लहि तमाल तरु भई श्याम सुखरास। मेघन तें नभ छाय रहे. देखि नंद भय कार श्यामा सों बोले बैन रसाल । बन भूमि तमालन सों भई कारी । यह डरपत लखि कै अँधियारी बारो मेरो लाल । साँझ समै डरिहै, घर याहि आगे हौं ले जाइ सकत नहिं भई भयानक साँझ। कृपा कारकै पहुँचावहु प्यारी । राधे करिके दया याहि तुम पहुँचाओ घर माझ । यों सुनि नंद-निदेश चले दोउ इमि सुनि नंद-निदेस चले दोउ बिहरत जमुना-तीर । कुंजन में बृषभानु-दुलारी । 'हरीचन्द' सों निरखि जुगल-छबि सोइ कलिंदी के कुल इकंत की, कैलि हरै भव-भीति-हमारी ।८ राग मालव दोहा जय जय जय जगदीश हरे। वाणी चारु चरित्र सों, !ित्रत जो पिय भीति । पद्मावति पद दास जो, जानत कविता-रीति ।९| प्रलय भयानक जलनिधि जल सि पभ सोई कवि जयदेव यह, गीत-गोविंद रसाल । | कार पतवार पुन्छ निज बिहरे मीन सील रच्यौ कृष्ण कल केलिमय, नव प्रबंध रस-जाल ।१०' कठिन पाठ मदर मथन किन छिति भर तिला रातभर तिल सम राजै। - हरी दृगन की पीर १३ प्रलय भयानक जलनिधि जल सि प्रभु तुम बेद उधारे। १ इस मंगलाचरण में बारहो रस हैं । इससे यथाक्रम शृंगार, अद्भुत, वीर, रौद्र, भयानक. हास्य वात्सल्य, करुणा, वीभत्स, सख्य, माधुर्य और शांत है! (चंद्रिका) २ ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्का-जन्म खंड की यह कथा है । (चंद्रिका) Rad भारतेन्द ममग्र ९२