पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१३३

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गिरि घूमनि सुहरानि नींद-बस किंमोटी या खमाच कमठ रूप अति छाजै । जय.| कमला-उर धरि बाहु बिहारी । "कनक-नयन-बध रुधिर छीट मिलि कुंडल कनक गंड जुग-धारी ।। कनक बरन छबि छायो । ललित कलित बनमाल संवारी । रद आगे धर ससि कलंक मनु जय जय जय हरि देव मुरारी ।। रूप बराह सुहायो । जय जय जय दिनमनि तेज-प्रकासन । कर-नख-केतकिपत्र अग्न अलि जय जय जय जय भव-भय-नासन ।। कनककसिपु तन फार्यो । मनि-मन-मानस-जलज-विकासन । खभ-फारि निज जन-रच्छन-हित जय जय हरि केसव गरुड़ासन ।। हरि नरहरि-वपु धारयो । जय. जय कालिय विषधर बल-गंजन । अदभुत बामन बनि बलि छलिकै जय जय ब्रज-जुवती मन-रजन ।। तीन पैड़ जग नाप्यो। जदु-कुल-कमल-सूर दृग खंजन । दरसन मज्जन पान समन अघ जय जय हरि केसव भव-भजन ।। निज नख जल थिर थाप्यौ । जय, जय जय सुर-मधु-नरक-बिदारन । अभिमानी छत्रीगन बधि तिन पन्नगपति-गामी जगतारन ।। रुधिर सीचि धर सारी । जय जय सुर-कुल-सुख-विस्तारन । इकइस बार निछत्र करी भुव जय हरिदेव भक्त्त-भय-हारन ।। हरि भूगुपति-बपुधारी । जय. जय जय अमल कमल-दल लोचन । दस दिसि दस सिरमौल दियो जय जय भवपति भव-दव-मोचन ।। बलि सब सुरगन भय हारे । | त्रिभवन-गति ब्रज-तिय-मन-रोचन । सिय लछमन सह सोभित जय जय हरि सिर वर गोरोचन ।। सुंदर रामरूप हरि धारे । जय.| जय जय जनक-सुता कृत भूषण । सुंदर गोर सरीर नील पट समर विजित त्रिसिरा खर-दूषण ।। ससि मैं धन लपटायो । जय दसकंठ-वनज-बन-भूषण । करसन कर हल सों जमुना जल जय दृग-छटा कमल छबि भूषण ।। हलधर रूप सुहायो । जय. जय जय अभिनव जलधर सुन्दर । अति करुना करि दीन पसुन पैं जय धृत-पृष्ठ कठिन गिरि मंदर । ___ निदे निज मुख वेदा। | जय बिहरन गोबर्धन-कंदर । कलिजुग धरम कहे हरि ह्वै के श्रीमुख ससि रत गोप पुरंदर ।। बुद्ध रूप हर खेदा । जय. हम सब तुव पद-पंकज-दासा । म्लेच्छ बधन हित कठिन धार पूरहु निज भक्तन की आसा ।। तरवार धारि कर भारी । तिनको तुम दुख नितं नित नासा । नासे जवन सत्ययुग याप्यौ जिन कहँ तुव चरनन बिस्वासा ।। कलकि रूप हरि धारी । जय. श्री जयदेव रचित मन-भाई । नंद-नंदन जग-वंदन दस बपु __मंगल उज्ज्वल गीत सुहाई ।। धरि लीला बिस्तारी । | 'हरीचंद' गावत मन लाई । गाई कवि जयदेव सोई ताकी हरि नित करत सहाई ।।१५ 'हरिचंद' भक्त-भय हारी । जय.।१४ इति मंगलाचरन । Sxetter गीत गोविंदानंद ९३