पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१४२

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MHI* -%AKA हाय निगोरी आँखन सुख सिरजीई नादी ।१६ । गिरिधर-धार्रािन क्यों न होत तुर्गन-ग्म-गोरे ।२०४ बिनु देखे अकुलाहि बावरी हवे हरे रोवै । उपरी उपरी फिरे लाज ताज सत्र सुख खोचे। नाज गही, काज कत घरि रहे घर जाँह । देखें 'श्रीहरिचन' नैन और लोन लिया। गो-रस वाहन फिरत ही गो-रस वाहन नाहि ॥१२॥ कठिन प्रेम-गति रहत सदा खिया ये नयाँ ।१६ गो-रस भाहन नाहि रूपांस मानभाने । सो रस पैही नाहि फिरत कार मंडराने । नाचि अचानक ही उठे बिन पाचस बन मोर । माँझ भई 'हार' जान घरह दहाई । जानात हौं नन्दित करी इहि कित नन्दकिसोर १४६९/ नांचा प्रोड भाइलाज कट गही कन्हाई ॥२१ इहि कित नन्दकिसोर स्याम पन भवहीं आए। प्रतित सियत गता वनिसरजमा माए। मकरानि गोपाग के कंगन मोहन कान । पद-रखा हरिनंद' चर्माक प्रकटत नट-बानक । धम्ची मनी हिय-सर समर इबौढी नासन निमान 12०३ स्थेत सुर्गान्धत पवन अन्ना इतनानि अचानक ।१७ इयोढ़ी गसन निसान मनौ तब गन प्रगटाचत ।। जेहि सुनि हरि अति विका कंज मोहि मुगन नाचन । प्रलय-करन परसन लगे जरि जलधर इक साथ । चान न क्यों 'हरिचंद' या नावन मित्र हन । सुरपति गरव हरयौ हरांत गिरधर गिरि धरि साथ 1५४ छोड़ मकर तुव बिना स्याम जल-बिन मकराकृत ।२२ गिरिधर गिरि घर हाथ सकल ब्रज लोग अचाये। अधर धरत हरि के परन ओठ-दीठि-पट-जोति । बरस सुधा-रस सात दिवस नर-नारि जियाये। हरित मांस की बांसरी इन्द्र-धनुष रंग होति ।४२० मिले नयन 'हरिचंद' तहाँ ताज गुरुजन की भव ।। इन्द्र-धनुष रंग होनि स्याम धन ह व पावत । इस ते रस बरसात करी उत वन जन-परणय ॥१८॥ याही से हरि सुधा-सार सम रस बरसावत । मुक्त-मारा बक-पति साँझ फूली माना मध । डिगत पानि गिजात गिरिनास सब प्रा बेहाल । विजूरीसम 'हरिनंदपीन पट रहयो गट प्रवा२३ कंप किसोरी-दरस के सरे नजाने गान 1६०१ खरे बजाने बाग जौ में भौह मरोरी। इंद्र-धनुष सी होति बधन विरही अवनागमन । सजग होइ गिरि धरी कोर करुना कार जोरी। विन बनमी ते भये इतो विष होइ कहाँ तन । लकट नाय 'हरिच' रहे नव गोपट हरि-डग । हम वाचनही रहत सा 'हरिनंद'जोक-एर । अरी खरी नु वाल नेक चितये हार गे डिग ।१९ हाय निगोरी यह बसी पीयन अधराधर ।२३ नोपे कोपे इंद्र नौ रोपे प्रलय काग। गिरिधारी राखे सका गो-गोपी-गोपाग ५२१ गो-गोपी-गोपाग भने सब गोवरधन तर । हरि गिरि लीन्ने हाथ नकत इक टक नुव मुख पर । 'हरीचंद्र गहि दया उनेही सरकर चोपे । नाही तो हरि चॉक गिरहे गिरि ब्रजजोपे ।२० इटी न सिसुता की झलक, झनक्यो जोधन अंग । दीनि देह दुहुन मिति दिन ताफना रंग 1७० दिपति ताफता रंग वसन विरची गुडिया सी। चतराई नहिं चढी नऊ कदमाज प्रकासी । दह निनम्यान भार श्रीकोट भने नटी नाह। जोबन आयो जऊनऊ मगधना पटो नहि ।२४ गो-गोपी-गोपाल पर्दाप गोपाल बचाये । पै तिन को निज वदन-मुधा देतही जिवाये । नाही तो 'हरिचंद सात दिन इक कर रोपे । क्रिमि हरि गिरि कर लिये रहत सगरो ब्रजसोपे ।२० दिति ताफता रंग मिगित बब सोभा बाढ़ी। कइनरुनाई चढ़ी जीय कणगावह गादी। आइ चली 'हरिचंद जाप जिय मैं कह रमना बलिहारी चणि जसो ननन इटी न सिमुला १२० है गो-गोपी-गोपाल राखि गिरिधर कहवाये। हाथन ही तू सदा तिन्हें सो रहल लगाये। बढ़े रहत 'हरिचंद' न दुग जिय हार चोपे। निय-तिथि नसांन-किसोर-बय पन्य-काल सम दोन 13 काह पुयान पाहयत पैस-सधि-संक्रोन ।२७०४ भैर-सौंध-संक्रोन समय सब दिन नहि आबन भारतन्द्र समग १००