पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

-More कामी हरि 'हरिचंद' करी बेबस करि घायल । भोडर राख्यो सीस जरयौ रतनन लै पायल ।४३ wepkite ताहि देखि मन तीरान बिकट न जाइ बलाय । । जा मृगनैनी के सदा बेनी परसत पाय । बेनी परसत पाय जमुन सी लोल कलोले । मोतिन मिस तिमि गंग संग लागी ही डोले । । चरन महावर सरिस सरस्वति मिलति जौन छन ।। तिय तीरथति होत लहत फल जाहि देखि मन ।३८ नीको लसत लिलार पर टीको जटित जराय। बिहि बढ़ावत रवि मनौं सास-मंडला मैं आय ।१०५ ससि-मंडल में आइ सूर सोभाहि बनवत । मोती-लर तारागन सी तिमि अति छवि पावत । तिय-सोभा 'हरिचंद' कियौ सौतिन मुख फीको ।। लखौ लाल र्चाल कुंज आजु प्यारी-मुख नीको १३९ चति तिया के भान पिया-मन सुख उपजाति । कोटि रतन रबि-ससिहूँ सों बढि सोभा पावति । मूरतमान सुहाग-बिंदु लखि कवि-मति कायल । यातें यह अनमोल जदपि नवलख की पायल ।४३ चढ़ति तिया के भाल तेसही तू गरबानी । सुनत सखिन की बात न पीतम को पतियानी । रहति मान करि बृथा कोप मैं करि मति मायल । पियहि लुठावति चरन तर परसावति पायल ।४३ सबै सुहाए ही लसैं बसत सुहाई ठाम । चढ़ति तिया के भाल सबै सुंदर कह सोहत । गोरे मुख बेंदी लसैं अरुन, पीत. सित, स्याम ।२७१ तासों करु न सिंगार बेंदुली ही मन मोहत । असन, पीत. सित, स्याम. खुलें सबही मन मोहैं । चलु 'हरिचंद' निकुंज दूज तजि माल हिमालय । साँच क्हत जग लोग सबै सुंदर कहँ सोहें। उत्त पिय तुव बिन व्याकुल इत तू पहिरीत पायल ।४३ बिनु सिंगार ही जेल जौन मन सहज लुभाए । क्यौं न लगै सिंगार ललन तेहि सबै सुहाए ।४० चात तिया के भाल सदा निज मान बढ़ायत । कहत सबै, बेंदी दिये आँक दस-गुनो होत । तैसहिं नूपुर बोलन सों आदर नहिं पावत । तित-लिलार बेंदी दियें अगनित बढ़त उदोत ।३२७ सूचति रति अभिसार सबन कहँ बाजि उतायल । अनित बढ़त उदोत तीस, अस्सी, नब्बे-गुन । याही सो मनि-जटितहु राखत पद तर पायल ।४३ तीन, आठ, नव, सत, सहस्र 'हरिचंद' बढ़त पुन । बंदी बेना बैंदी भौं लहि बनत रुपा जब ।। | भाल लाल बैंदी ललन आखत रहे बिजि । मोती-जर ते होत मुहर लखि थकित रहत सब ४१ | इंदु-कला कुज में बसी मनों राहु-भय भाजि ।६९० मनौ राहु-भय भाजि इंदु कुज-मंडल आयो । अगनित बढ़त उदोत न सो काब 4 गिनि आवै । ताह पै तिन बाहर ही निज जोर जमायो । निरखत मन हर लेत तिहारे मन अति भावै । पूजि देव-तिय न्हाइ खरी बाढी अति सोभा । सा सोभा 'हरिचंद' बरनि नहिं जात कछ अब । बिथुर केसनि तिलक अखत लखि पिय मन लोभा ४४ बलि निरखौ चलि स्याम सहज छवि जाहि कहत सब ।४१ पिय-मुख लाख पन्ना जरी बेंदी बढ़े बिनोद । भाल लाल बैंदी छए छटे बार छवि देत । सुत-सनेह मानौ लियो बिधु पूरन बुध गोद 1७०७ गहयो राहु अति आहु करि मनु ससि सूर-समेत ।३५५ बिधु पूरन बुध गोद मोद भरि के बैठार्यो । मनु ससि सूर-समेत इकत गहि राहु दवावत । होइ उच्च के जिन सोहाग को चौचंद पारौ। स्वेद-कना मिस अमृत निकसि तब ससि तें आवत । सेंदुर केसर पान दिठौना बेसर कच सुख । बारिध औ पिय नाते तब गाह जुगल कमल बर। | औरहु ग्रह मिलि बसे इकत लाख सुंदर तिय मुख।४५ निरुवारत तकि तमहिं परसितिय भाल लाल कर १४२ पायल पाय लगी रहै लगे अमोलक लाल । गढ़-रचना बरूनी अलक चितवनि भौंह कमान । भोडरहू की बेदुली चढ़ति तिया के भाल ।४४१ / आघ बंकाई ही ब? तरुनि तुरंगम तान ।३१६, चढ़ति तिया के भाल तिमिहिं सो तिय गरबानी । तरुनि तुरंगम तान बँकाइहि ते छबि पावत । हम सब कुल की होय फिरत रहि मंडरानी। । ताही तें तू सदा मान की मति उपजावत । . भारतेन्दु समग्र १०४