पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

USTOMet भारतेन्दु को पढ़ने के बाद भारतेन्दु अपने वक्त की बेमिसाल अभिव्यक्ति थे । शायद ही हिन्दी का कोई ऐसा रचनाकार हो जिसने अपने युग की चेतना को इतनी सशक्त वाणी दी हो । भारतेन्दु का व्यक्तित्व लगभग उस सूरज जैसा है, जो शीत से ठिठुरते कुहरे भरे भोर में तह पर तह ढके बादलों को चीरता हुआ निकलता है, जिससे धरती अपना अंधेरा भी पोछती है और अपना बदन भी सेकती है । जिससे हवारों धरती पुत्र उस जान लेवा शीत से जूझने और अंधेरे से लड़ने के लिए कमर कसने में समर्थ होते हैं। भारतेन्दु के आविर्भाव के समय देश का राजनीतिक क्षितिज कुछ ऐसा ही था । आर्थिक धुंधलका और सामाजिक रुढ़िअंधता की छटपटाहट का परिणाम था भारतेन्दु और उनका प्रभा मंडल, जिसने उस व्यग्रता को वाणी दी थी, तत्कालीन राजनीतिक समझ और राजनीतिक चेतना को स्वर दिया था और जातीय स्तर पर घर कर गये पराधीनता बोध को झकझोरा था । भारतेन्दु ने अपने ७ वर्षों की मासूम आँखों से भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम देखा था और अपनी उन्हीं आंखों से उसका कातिलाना दमन भी देखा था । कम्पनी बहादुर के जालिमाने राज्य की समाप्ति और महारानी विक्टोरिया के मधुर आश्वासनों तथा लुभावने सपनों से भरे घोषणा पत्र को भी सुना था । एक ओर जुल्म सितम का अन्त और दूसरी और सुखचैन की बहाली । इतना जुल्म की जान ब्राइट को भी इस काल को "ए हंड्रेड यीअर्स आफ क्राइम" कहना पड़ा । इसी अनाचार युग के सम्बन्ध में सरजार्ज कार्नवस लीविस ने हाउस आफ कामन्स में १२ फरवरी १८५८ को कहा था, "मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ कि धरती पर आजतक कोई भी सभ्य सरकार इतनी भ्रष्ट, इतनी विश्वासघाती और इतनी लुटेरी नहीं पाई गयी।" ऐसे शासन के अंत में भारतवासियों का सुख की सांस लेना और महारानी विक्टोरिया की सराहना करना स्वाभाविक था । परिणामत: भारतेन्दु के कवि दरबार में 'पूरी अमी की कटोरिया सी चिरजीवी सदा विक्टोरिया रानी ।' जैसी समस्याओं की पूर्तिया की गयी। यातायात में रेलों की शुरुआत पर लिखा गया - धन्य सहबा जौन चलाइस रेल । मानो जादू किहिस दिखाइस खेल । किन्तु शीघ्र ही यह सुख स्वप्न टूट गया । महारानी के आश्वासन कोरे वादे निकले । लोगों ने देखा कि रेले अकाल पीड़ितों को अन्न पहुंचाने के लिए नहीं वरन् बन्दरगाहों तक कच्चा माल होने के SReckin