पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१५१

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RANE बिनु बोले वह चलो गयो क्यों बिना किये कछु प्यार । कहा करो कछ न अनत कर मीरत सो पार । 'हरीनंद' पछितात रांड गई खोह गले को हार ।१७ असावरी धमार धनाश्री मन-मोहन की नगवार गोरी गुजरी। मगन भई हार-रूप में सच कल की लाज विसारी । नंद-सवन को नाम हो कोऊ बाके आगे लेइ । सुनहि तन थरथर कंपे मुख उत्तर कडून दई । श्याम सुंदर को चित्र हो चाहि जो कोऊ देत देखाई। नैनन सो असंवा चाह मस पनन कायौ नहि जाइ । जो कोऊ वासो पृष्ठई मुख बोगन धान की आन । जिय को भेद न खोलई वह नागरि चतुर सुजान । इग को जल सबै नहीं हो मन जमुना बहि जाइ । गोरो मुख पीरो परयो मन् दिन में चंद लखाइ । नित गुरुजन खीजन रहे हो लरत ससुर अरू सास । तिनकी सब बातें सह नहि छोडे प्रेम की फांस । सन अति ही दुसरो भयो मन फूल-छरी की नाल । भयो मुख नित नित घटे भर सूखे अधर रसाल । जो कोऊ कहि हो मन-मोहन निकसे आइ। सुनहि उठि धावै अरी गृह-काज सबै विसराइ । मग मैं जो मोहन मिलें होनाह देखत भरि नैन । पूंघट पट की ओट में हो करत कछ इक मैन । वह मन-मोहन पग पर तह की रख सीस चढ़ाइ। सखियन को सँग छोडिकै वह पीछे लागी जाइ । या बृज की सब ग्वालिनी हो ज्यौं ज्यी करत चवाव । त्यौं त्यों वाके चित्त में हों बढ़त चौगुनो चाव । जो बैठे एकांत में हो जपत उनहिं को नाम । ध्यान करे नंदलाल को नहि भावे कछु धन-धाम । खान-पान सब छोड़िके हो पति को सुख विसराइ । कोउ मिस सों ब्रजराज के वह घर के मारग जाइ । बातन मैं बहराइके हो पूछत उनकी बात । जो हमहूँ कछु पूछी तो बातन में फिरि जात । नैन नींद आये नहीं थाके लगे स्याम सों नेन । भावे नहिं कोउ भोग हो वाने त्याग्यो सब सुख चैन । जो कोऊ समुझावही तो औरह व्याकुल होइ । हरीचद' हरि में मिशिही हो जल पय सम सब खोइ।१५ राग देश सखी हमरे पिया परदेश होरी मैं कासों खेली। जिनके पीतम घर है सबनी तिहि की है होरी । हम अपने मोहन सो बिछी चिरह सिंधु में बोरी । नोक्ष चंदन विर अरगजा और सुख के सात्र । 'हरीचंद' पिय बिनु सब हमको विख से लागत आज।१६ सिंदूरा आज कहि कोन उठायो मेरो मोहन पर । तुम मम मानन ने प्यारे हो, तुम मेरे ओसन के नारे हो। प्राननाथ हो प्यारे लाल हो आयो फागुन मास । व तम बिन कैसे रहोगी नामों जीय उदास । प्राननाथ हो प्यारे लाल हो यह होरी न्यौहार । हिणि मिलि भुरमुट वणिये हो यह बिनती सौ बार । प्राननाथ हो प्यारे लाला हो अब तो छोड़ी लाज । निपरक विहरी मो संग प्यारे श्रच याको कहा कात्र । माननाथ हो प्यारे लाल हो जो रहिहो सकृचाय । तौ कैसे के जीवन बाँच है यह मोहि देह बताय । प्राननाथ हो प्यारे लाल हो जग में जीवन थोर । तो क्यों भुज भरिकै ना पिहरी प्यार नकशोर । पाननाथ हो प्यारे लाल हो तुम बिनु जिय अकृताय ता मैं सिर 4 फागुन आयो अब तो रह्यो न जाय प्राननाथ हो प्यारे लाल हो तुम बिनु तलफै प्रान । मिलि जेथे हो कहत पुकारे एहो मीत सुजान । प्राननाथ हो प्यारे लाल हो यह अति सीतल छाँह बमुना-कुन कदंब तर किन बिहरी दे गलबार । प्राननाथ हो प्यारे लाल हो मन कह वै गयो और । देखि देखि या मधु रितु मैं इन फूलन को बे-तौर । प्राननाथ हो प्यारे लाल हो लेहु हु अरज यह मान । 13 छोडह मोहि न हकली प्यारे मति तरसाओ प्रान । प्राननाथ हो प्यारे लाल हो देखि अकेली सेज । मुरछि मुरछि परिही पाटी मैं कर सों पकरि करेज । प्राननाथ हो प्यारे लाल हो नींद न ऐहै रैन । अति व्याकुल करवट बदलौगी स्वेहै जिय बेचैन । प्राननाथ हो प्यारे लाल हो करि करि तुम्हरी याद । चौकि चौंकि चहुँ दिसि चितओंगी सुनै कोउ फरियाद। प्राननाथ हो प्यारे लाल हो दुख सनिह नहि कोय अपने स्वारथ को लोभी बादन मरिहौं रोय । प्राननाय हो प्यारे लाल हो सुनर्ताह भारत बैन । ठि धाम्रो मति वितम लगानो सुनो हो कमल-दल नेन। प्राननाथ हो प्यारे लाल हो सब छोड़यो जा काज । सोऊ छोड़ि जाइ तौ कैसे जी फिर ब्रजराज । प्राननाथ प्यारे लाल हो मति कई अनते जाहु । मिति कैजय भरि लेन देह मोहि अपनो जीवन-लाह। प्राननाथ हो प्यारे जान हो इनको कौन प्रमान

होली १११