पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१५६

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जब लौ रवि ससि भूमि समुद ध्रुव तारागन थिर कियो। कोऊ परी आनि अब लाग । 'हरीनंद' तब लो तुम पीतम अमृत पान नित पियो।४७ / मिल्यो आह मोहिं दाँध निकालूंगी अंतर को अनुराग । होली डफ की 'हरीचंद' बनमालिहि सौगी निधरक जोवन-बाग ।५५ मैं तो रंगोगी अवीरी रे पिया की पगिया । ठुमरी केसर सो सब बागो गहों ले जैहीं बाबा की बगिया । झूम-झूम के मोरे आए पियरवा । रंग उडाइ के गारी गैहौ भागि कहाँ है कांगया । दौरि-दौरि लागे मोरे गरवा । 'हरीचंद' मनमानी करिहौ प्रान पिया के गर लगिया ।४८ | 'हरोचद' लटकीनी चाल चाल कैसे आऊँ मेरी पायल झुनक बजे कैसे आऊँ रे रे। गर द्वारे मोतियन को हरया ।५६ जागत है सब सास ननदिया चूम-चूम के मख भागै संवलिया । ऐसी लाव कहो कोन तजे।४५ धूम-धाम के आवै मेरी ही लिया । सोरठा 'हरीचंद' मोहिं गरवा लगायें मन भावे मेरे छल-बलिया ।५७ जीती सब बरसाने-वारी । दर दर चला जा तू भवरवा । आँख अंजाइ पहिरि कर नूरी हारे मोहन गिरिधारी । अउ छली मत मेरे निरवा । फगुआ हा हा करि छूटे भरू अनेक खाई गारी । 'हरीचंद' नाहक तू 'हरीनद' कोड बिधि घर आए डारत प्रम-फांस अबलन के गरवा 1५८ तन मन धन सरबस हारी ।५० कि-कांक रही कारी कोरिया । ईमन कल्यान फॉक-क बिरह-दरिया । मोहि मति बरजे री चतुर ननदिया होरी खेलन जाऊँ। 'हरीचंद' पिय ऐसी समै मैं फिर ये दिन सपने से वे पाऊँ कै ना पाऊँ। दूर असे हरि बिरह-करिया ।५५ ऐसो सगुन बताउ जो पिय को द्वारहि पै गर लाऊँ। भूमि-भूमि राते नयनयाँ । 'हरीचंद जनमन की प्यासी कछु तो प्यास बुझाऊँ।११ आओ करो अब प्यारे सपनयाँ । होरी खेलन दै मोहि पिच सो नदिया नाहक रोकेरी। 'हरीनंद' सब रात जगे तुम सब जग तो बरजहि तुह क्यों बरवस येकै री। निकसत नहि मुख पूरे बयनयाँ ।६० एक नारि इजे मरमिन रखें कि दुख में झोंके री। उडि जा पंछी खबर ला पी की। 'हरीचंद' कहवाइ सुपर क्यों बढ़वति सोकेरी ।५२ जाय बिदेस मिलो पीतम से कहो विथा धिरहिन के जी की। अब मैं धर न रहूँगी बहू के रोके. सोने की चोच माऊँ मैं पंछी मोहिं मति बरजो कोय । जो तुम बात करो मेरे ही की। ऐसो पिय लाहि या प्ठागुन को मरै अभागिन रोय । 'माधवी' लामो पिय को संदेसवा जाऊँगी जहँ पिय होरी खेलत मिलूंगी उगत-भय चोय। जरनि बुझाओ बियोगिन ती की ।६१ निधरक पिय के अपर पिऊंगी भेट्रंगी भरि भुज दोय । होली मेट्रंगी सब साथ उपर के लोक-गाव-भय धोय । "हरीचंद पाऊँगी जनम-फल होनी होय सो होय ॥५३ फिर दुरलभ चेहे फागुन दिन आउ गरे लगि जाओ । | मेरे जिय की आस पुजाउ पियरवा होरी खेलन आओ। लाल गुलाल लाल गालन में अति ही मन से मोहे । मुंदर मुख भयो औरह सुंदर भूल जात जिव जो है। गाइ बजाइ रिझाइ रंग करि अबिर गुलाल उड़ानों । सहि मले को भलो लगत है सोहे को सब सो है। 'हरीनद' दुख मेटि काम को घर तेहवार पनाओ ।६२ 'हरीचंद तजि प्यारी को मुखमलन जोग अरु को है।५४ पिया विनु होरी लगी मेरे मन में । नहि मानूंगी काहू की यात सूनो जगत दिखाल श्याम बिनु घिरह-बिधा बढ़ी तन में। पिया बिनु होरी लगी मेरे मन में। मोहिं घर के बरजो पिन काम कठोर दवारि लगाई जिय दहकत छिन-छिन मैं सिंद्वग होरी नाहक खेलूं में बन में, मैं पिय सँग आबु खेलोंगी पाग । Eskort SUS भारतेन्दुसमय ११६