पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१५७

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off 40KE "हरीनंद' विनु विकल विहिनी विलपति वालेपन मैं । चलि न सकी किरही ठौरही पिया विनु होरी लगी मेरे मन में ।६३ डोशी नेक न डोलन सों 'वन में आगि लगी है फले देख फरवास । 'हरीचद' सुधि परी फेर पिय कैसे बचिहै वाल पियोगिन देखि बसत-विलास । प्यारे के घट खोलन सो ७० चलत पौन हौ फूल-पास तन होत काम परकास । पीरो पार गई रसिया के बोलन सो। 'हरीनद' विनु श्याम मनोहर पिरहिन लेय उसास ।६४ आयो जानि छैल होरी को डरी लाज के खेलन सों। चई दिसि धूम मची है हो हो होरी सुनाय । एक प्रीति जे होरी सिर पर कैसे बचिहौ ठठोलन सों। जित देखो तित एक यहै धनि जगत गयो बौराय । "हरीचंद सब कोउ जानेंगे मेरी गलियन डोलन सो७१ उड़त गुलाल नलत पिचकारी बाजत अफ पहराय । डफ की 'हरीचंद' माते नर नारी गायत लाज गंवाय ६५ अरे गुदना रे-गोरी तेरे गोरे मुख पे बहुत खुल्यौ गुदनारे। मोहन गोहन रगग्योई डोले छोड़े छिनई न साथ। - अरे रसिया रे-गोरी वर्षे घायल मानल होय रत्यौ । धर अंगना करि डार्यो मो घर सब छिन जोरे हाथ । | अरे दुपटा रे-गोरी तापे सुरस अधीरी और फव्यौ । झांकत द्वार चलत पाछे लांग गावत मम गुन-गाव । अरे मोहना रे-गोरी तेरे संग फिर घर-बार तज्यो ।७२ 'हरीनंद' में केसी करूं मेरे चरन हावत माय ।६६ गोरी कौन रसिक संग रात बसी । इकताला भरी खुमारी नैन खुलत नहि सर ते सारी जात बसी । पिया प्यारे में तेरे पर बारी भई । बेरी सिथिल चासत तेरे भरन सहज सलोनी सदर सूरत निरखत ही लिहारी भई । चलत डगमगी अधिक लसी। अब ना रही घर लाख कहो कोऊ "हरीचंद' पिय संग निसि जागी सबकी भाति तुझारी भई । चोली दीजी भई कसी ७३ 'हरीनंद' सँग लागी डोलौं सुदर रूप-भिखारी भई।६७ काफी पीलू तेरी बेसर को मोती थहरे । या लटकन में मेरो मन पटकै खटकै धीरज नहिं ठहरे। बीती जाती बहार री पिय श्रबह न आए । 'हरीचंद तेरी सुरुच लहरिया देखत मेरो मन गहरे ७४ केस के मै दिन बितवी आली जोबन करत उभार री, तेरे श्याम बिनिया बहुत खुली। पिय अभई न आए। गोरे-गोरे मुख पर श्याम बिदलिया कहा करों कित जाओ बताओ यह समयो दिन चार री। नैनन में प्यारे की चुली। अनी 'माधवी पिय-पिनु व्याकुल कोउ न सुनत पुकार री। ताह पै सांवरो गुदना सोहे पिय अबह न आए ।६८ मंवर रहयो मनो कमल कली । होली खेमटा 'हरीचंद' पिय रीभन्यो तेरो संग नछाडै गोलय गती ७५ | खेलन मै कि भूल भुलनियाँ । मैं तो चौंक उठी डफ पाजन सों। अगिया लाल लाल रंग सारी सोपत रही अपने आँगन में जागी गारी गाजन सों। देख्यौ तो दारे मोहन ठाढ़े सजे छल सब साजन सों। गावै सै बजाह रिभावे गाल "हरीचंद' मेरे नाम लियो नित गारी दई विन लाजन सौ १७६ "हरीचंद रंग मस्त पिया के फिरै प्रेम-माती मततिनियाँ १६९ बस कस अब ऊधम बहुत भयो । मोलि गई रंग सों मेरी सारी होली डफ की अबीर गुलालन बसन छयो । पीरी पार गई रसिया के बोजन सों । झकझोरन में कर मेरो मुरक्यो याद परी सब रस की बाते कंकन बाबू टूट गयो । कारी जट शटकाए नगिनियाँ । जाये अपनी शिगुनियाँ। बढ़ि गयो विरह उठोशन सो' । होली ११७